Wednesday, November 30, 2016

संघर्ष की पत्रकारिता: बस्तर से निर्वासित पत्रकार मालिनी को इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम अवॉर्ड

संघर्ष की पत्रकारिता: बस्तर से निर्वासित पत्रकार मालिनी को इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम अवॉर्ड

न्यूयार्क @ भारतीय पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नक्सल प्रभावित बस्तर में आदिवासियों के मानवाधिकारों पर लगातार रिपोर्टिंग कर सुर्खियों में आई पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम को कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) ने प्रतिष्ठित इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम अवॉर्ड से सम्मानित किया है। मालिनी को यह सम्मान नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र से रिपोर्टिंग के लिए दिया गया है। भारत से यह सम्मान पाने वाली वह दूसरी पत्रकार हैं।
अमेरिका के न्यूयार्क सिटी के एक होटल में 22 नवम्बर को मालिनी के साथ दुनियाभर के चार पत्रकारों को यह सम्मान मिला| दुनिया भर में पत्रकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए काम करने वाली अन्तराष्ट्रीय संस्था “कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट” द्वारा यह सम्मान दिया गया| उनके अलावा समिति ने अल सल्वाडोर के रिपोर्टर ऑस्कर मार्टिनेज और तुर्की के दैनिक समाचार पत्र कम्हुरियत के संपादक केन डुंडर को भी सम्मानित किया है। जेल में बंद मिस्र के स्वतंत्र फोटोग्राफर मोहम्मद अबू जैद को उनकी अनुपस्थिति में यह सम्मान दिया गया है।
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सम्मान समारोह के दौरान पत्रकार कमल शुक्ला और मालिनी सुब्रमण्यम
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर में पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता कर रहीं पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम को जेलों में बंद गरीब आदिवासियों के लिए आवाज उठाने के बदले बस्तर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने पुलिस और सुरक्षा बलों के अत्याचार, यौन हिंसा, किशोरों की गिरफ्तारी, सुरक्षा के नाम पर होने वाली हत्याएं और पत्रकारों को मिलने वाली धमकी को उजागर किया है। मानवाधिकार हनन और राजनीति का नकाब उतारने के कारण मालिनी से पूछताछ की गई।
मालिनी न्यूज वेबसाइट स्क्रॉल के लिए काम करती हैं। वह बस्तर में आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों व पुलिस ज्यादतियों की रिपोर्टिंग करती रही हैं। मालिनी ने बस्तर में पुलिस अत्याचारों के खिलाफ लगातार रिपोर्टिंग की है। उनकी रिपोर्ट से दुनियाभर की मीडिया का ध्यान बस्तर की नक्सल समस्या की ओर गया। जान जोखिम में डालकर नक्सल इलाकों से सच्चाई बाहर लाने की वजह से वे पुलिस के निशाने पर भी रहीं। पुलिस और निगरानी दस्ते ने उनका पीछा भी किया। इतना ही नहीं पुलिस ने उन्हें बदनाम करने का प्रयास भी किया और उन्हें माओवादियों का एजेंट बताया था। इसी साल फरवरी में पुलिस समर्थित सामाजिक एकता मंच के लोगों ने जगदलपुर स्थित उनके निवास पर हमला बोल दिया था। उनके घर पर पथराव किया गया और उन्हें धमकियां दी गईं। इसके बाद मालिनी को बस्तर छोड़ना पड़ा।

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