Thursday, October 8, 2015

वन अधिकार अधिनियम और पैसा कानून का उलघंन कर आदिवासी ग्रामीणों को डरा कर BSP के टाउन शिप के लिये जमीन अधिग्रहण कराया गया पारित



वन अधिकार अधिनियम 2006 और पैसा कानून का उलघंन कर जबरन आदिवासी ग्रामीणों को डर-भय का वातावरण निर्मित कर BSP के टाउन शिप के लिये जमीन अधिग्रहण कराया गया पारित

        कांकेर जिले के अंतागढ़ ब्लाक के  ग्राम कलगाव के ग्रामवासियो ने जनदर्शन में शिकायत करते हुये शासन-प्रशासन पर आरोप लगाया कि ग्रामीणों के जमीन अधिग्रहण के असहमति को लेकर ग्राम सभा की बैठक में SDM द्वारा बड़ी संख्या में सुरक्षा बल (फ़ोर्स) को बुला कर प्रशासन द्वारा भय व दहशत का माहौल निर्मित कर BSP के टाऊन शिप के जमीन अधिग्रहण में ग्रामीणों के असहमति के बावजूद जोर-जबरदस्ती दबावपूर्ण ग्राम सभा में जमीन अधिग्रहण के लिये प्रस्ताव पारित करा कर ग्रामीणों के हस्ताक्षर लिये गये।
जानकारी के अनुसार 40 साल से भी ज्यादा काबिज आदिवासी ग्रामीणों ने अपनी आजीविका चला रहे भूमि के अधिग्रहण पर शांति पूर्वक तरीके से अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे। लेकिन प्रशासन द्वारा जोर-जबरदस्ती फ़ोर्स का डर पैदा कर प्रस्ताव पारित करा लिया गया।


                      आदिवासी ग्रामीण 40 वर्षो से उक्त भूमि पर खेती - किसानी कर आनाज पैदा कर अपना जीवन -यापन चला रहे है । ग्रामीणों ने बताया कि उक्त भूमि को ग्राम सभा ने राजस्व पट्टा के लिये 21/08/2012 को सर्व सहमति से प्रस्तावित कर दिया है । वही वन अधिकार कानून 2006 की धारा 5 के अन्तगर्त ग्राम सभा ने सामुदायिक वन अधिकार एव व्यक्तिगत वन अधिकार दावा प्रक्रिया शुरू करने हेतु प्रस्ताव पारित कर दिया गया गया था। ग्रामीणों के अनुसार टाऊनशिप के लिये जैसे ही उन्हें जमीन को अधिग्रहण की खबर मिली तो ग्रामीणों ने असहमति, आपत्ति दर्ज कराते हुये लिखित में तहसीलदार को कई ज्ञापन भी सौपे थे।
जनदर्शन में कलगाव के ग्रामीणों ने कलेक्टर से फ़रियाद की कि ग्राम सभा में फ़ोर्स का बल दिखाकर ग्रामीणों के मन में डर पैदा कर फर्जी तरीके से जमीन अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाये।

              ज्ञात हो की आदिवासी बाहुल्य बस्तर में उद्योगपतियों को जमीन देने के लिये शासन -प्रशासन अधिग्रहण के तहत ग्राम सभा में फर्जी तरीके से प्रस्ताव पारित करा लिया जाता है। कई मामले ऐसे भी है जिसमे अधिग्रहण की जानकारी ग्रामीणों को भी नही होती है, और न ग्राम सभा होता है और अगर होता भी है तो इसी तरह प्रशासन द्वारा ग्रामीणों के मन में फ़ोर्स, जमीन नही देने पर जेल होना बता कर प्रस्ताव पारित करा लिया जाता है । बस्तर में जमीन अधिग्रहण के कई मामले ऐसे भी है जिसमे जो ग्रामीण विरोध करता है उन्हें फर्जी नक्सल मामलो में लिप्त कर दिया जाता है।
                         बस्तर में आदिवासियों के हित के लिये बने वन अधिकार अधिनियम 2006 एवं पैसा कानून का उलघंन कर जबरन ग्रामीणों में डर पैदा कर जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है | 
तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट ) 

[कमल शुक्ल की की पोस्ट से आभार  सहित ]

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