Thursday, October 15, 2015

इक छोटी सी इल्तज़ा है आपसे -रवीश कुमार

इक छोटी सी इल्तज़ा है आपसे - 

दोस्तों,
मैं सोशल मीडिया से किसी के डर के कारण नहीं गया हूँ । मैं ऐसा न अपने साथ कर सकता हूँ और न आपके साथ । यह बात दिमाग़ से निकाल दीजिये कि चार लोग हैंडल बनाकर इधर उधर टैग कर कुछ लिख देंगे तो मैं डर जाऊँगा । मैं सिर्फ इसी बात को लेकर डरा रहता हूँ कि मुझसे कोई ग़लती न हो जाए और हो भी गई तो जान नहीं देने वाला । कुछ लोग और समूह हैं जो मुझसे डरते हैं । मेरी किसी रिपोर्ट या लिखावट से इतना डर जाते हैं कि इन्हें लगता है कि कहीं दुनिया ने उस पर यक़ीन कर लिया तो क्या होगा । ऐसा न हो सकता है और न किसी पत्रकार को यह मुगालता पालना चाहिए। पर उनका दाँव बहुत ज्यादा है इसलिए वे डर कर मुझे डराने के नाम पर अनाप शनाप लिखते हैं । तो उस तरफ डरपोकों की फौज है जो दिन रात अफवाह फैला रही है । ट्वीटर और फेसबुक पर नक़ली पेज बनाकर सांप्रदायिक किस्म के भी अफवाह फैलाये जा रहे हैं ।
मुझे डराने के नाम पर कुल ख़ानदान का पता करने लगे हैं । मुझे अब हँसी भी नहीं आती । मेरे कुल खानदान में हर तरह के लोग मिल ही जायेंगे जैसे उनके कुल खानदान में हैं । मैं खुद के लिए जवाबदेह हूँ । मुझे लेकर कुछ नहीं मिला तो लोग गाँव तक पहुँच गए हैं । मेरी जाति का भी पता करते हैं ।  मैं फिलहाल जानबूझ कर नहीं लिख रहा । वो ज़िद्दी तो मैं भी ज़िद्दी । लिखूँगा लेकिन अपने वक्त और मन के हिसाब से । बस देख रहा हूँ कि वे कहाँ तक जा सकते हैं । चोरों की बारात है । कानाफूसी से डराने चले है । सुना है और पता चला है से बात नहीं बनेगी उनकी । मैं लिखना नहीं चाहता कि वे कितना डरे हुए हैं । ल्युटियन दिल्ली के चाटुकारों को आजकल मुझे लेकर गुदगुदी हो रही है । होने दीजिये । आकाओं के दरबार से लौटकर लिखने की आदत है तो वो मेरे लिख देने से जाएगी नहीं । इंतज़ार कर रहा हूँ कि वे कितना लिख सकते हैं । जब दंगाई इस समाज में सर झुका कर नहीं घूमता तो मैं डर कर छिपने से रहा ।
सोशल मीडिया पर मेरे बारे में तरह तरह के अभियान चल रहे हैं । आप लोग मुझे एस एम एस कर रहे हैं । गाँवों में भी नौजवान स्मार्ट फोन पर दिखा देते हैं कि ये आपके समर्थन में अभियान चल रहा है और आप पत्रकारिता मत छोड़िये । फिर विरोध में अभियान चलने लगता है । मुझे उनकी चिन्ता नहीं है  लेकिन आप चाहने वालों की चिन्ता है । बिल्कुल मत सोचिये कि किसी ने डरा दिया और मैं चला गया । मेरे बारे में न तो लिखने की जरूरत है न किसी प्रकार का टेम्प्लेट बनाकर व्हाट्स अप पर घुमाने की । ऐसा मत कीजिये । इससे सारा मक़सद फ़ेल हो जाएगा । आप मेरे समर्थन में बिल्कुल मत लिखिये । हाँ ये जो प्रवृत्ति है उसके बारे में लिखिये लेकिन ध्यान रहे कि आप बिल्कुल वैसा न करें जैसा करने वालों के विरोध में आपको लिखना है । ऑनलाइन गुंडागर्दी से लड़िये । अपने भीतर की उस निष्ठा से लड़िये जिसके कारण आप या हम चुप हो जाते हैं ।
मुझे अकेला छोड़ दीजिये । अकेला चलने का आदी रहा हूँ । मैं पत्रकारिता छोड़ कर नहीं जा रहा । हाँ यह सही है कि मैं इनदिनों घोर अंतर्द्वन्द से गुज़र रहा हूँ । भीतर से बेचैन हूँ । भावुक आदमी हूँ तो थोड़ा जल्दी असर हो जाता है और देर तक रहता है । सबके जीवन में ऐसा क्षण आता है । मुझे मन नहीं लगता अब इस पेशे में । नेताओं से मिलकर पत्रकार ही पत्रकार का भीतरघात कर रहे हैं । कई कई दिनों तक अख़बार भी नहीं पढ़ता । चैनल नहीं देखता ।शायद यह वक़्ती बेचैनी हो सकती है । काम की थकान भी हो सकती है और निरर्थकता भी । रात रात भर नींद नहीं आती । कभी दो बजे रात को उठ कर लिखने लगता हूँ तो कभी रात भर पढ़ते रह जाता हूँ । मेरे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है ।
मेरी परेशानी सिर्फ उन चिरकुटों के गरियाने से नहीं है । कुछ और है । रोज़ कोशिश करता हूँ इस उदासी से उबरने की । रोज अपने आप से लड़ रहा हूँ । बहुत देर तक गहरी नींद सोना चाहता हूँ मगर जल्दी जाग जाता हूँ । लगता है दिमाग़ में मच्छर भनभना रहा है । मैं भयंकर जद्दोजहद से गुज़र रहा हूँ । चूँकि आप मुझे लेकर चिन्तित हैं तो लिख रहा हूँ । ये लड़ाई मेरे भीतर की भी है लेकिन सिर्फ अपने आप को लेकर नहीं है । आपके लिखने या हौसला बढ़ाने से कुछ समय के लिए फ़र्क तो पड़ता है मगर थोड़ी ही देर में उसी मनस्थिति में पहुँच जाता हूँ । रास्ता मुझी को खोजना है । मुझे अकेला छोड़ दीजिये ।
पत्रकारिता के अलावा कुछ आता भी नहीं ।आता तो वाक़ई चला गया होता ।यह पेशा घटिया हो गया है । इसमें कोई शक नहीं । पर मैं कुछ और कर नहीं सकता । आता भी नहीं है । उन लोगों का अनादर नहीं कर रहा जो अभी भी खुद को बचाकर लिख रहे है । लोगों के बीच जा रहे हैं । पर आपको यह भी जानना चाहिए कि अज्ञात शक्तियां लिखने वालों को डरा रही हैं ।अख़बार ख़रीदते समय और चैनल देखते समय आप इस बात की चिन्ता जरूर करें । जो अख़बार लेते हैं उसे बीच बीच में बंद भी किया कीजिये । एकदम से गुलाम की तरह किसी का पाठक और दर्शक मत बनिये । चैनलों के साथ भी यही कीजिये । मेरे साथ भी । नागरिक समूह बनाकर चाटुकारिता करने वाले अखबारों या चैनलों को अपने मोहल्ले में कुछ समय के लिए बंद करवाइये लेकिन ज़ोर ज़बरदस्ती से नहीं । आपसी चर्चा और सहमति से । पत्रकारिता को लेकर छोटे छोटे नागरिक सत्याग्रहों की जरूरत है ।
इसके बाद भी आपके लिए नई नई कहानियाँ खोजने में लगा रहता हूँ ।फ़र्क ये है कि उन कहानियों तक ख़ुद को खींच कर ले जाता हूँ ।पहले अपने आप चला जाता था । आपने अभी तक मुझे बहुत प्यार दिया है । इसका कुछ कुछ अहसास हो रहा है । कभी मेरे लिखने बोलने से ठेस पहुँची हो तो माफ कीजियेगा । ग़ुस्से में बोल देता हूँ । लिखते समय यह भी ख़्याल आ रहा है कि मैं हूँ कौन जो अपील जैसा लिख रहा हूँ । खुद पे हँसी भी आ रही है ।
मैं सोशल मीडिया पर भी आ जाऊँगा । यह कह कर गया भी नहीं था कि कभी नहीं आऊँगा । मैं अच्छा दामाद हूँ । ससुराल में रूठता नहीं हूँ । इसलिए आपको मनाने की ज़रूरत नहीं है । मैं चाहता ही हूँ अकेला चलना । किसी एकांत से आपको देखना और किसी एकांत में अपने भीतर झाँकना । कुछ कमज़ोरियाँ हैं । कुछ बेचैनियां हैं । कुछ मजबूरियाँ भी हैं । काश मैं थोड़ा सख़्त होता । दोस्त ठीक ही कहते हैं यार तुम नाज़ुक बहुत हो । पर क्या नाज़ुक होना अच्छा नहीं ! मैं कस्बा पर तो लिख ही रहा हूँ वहाँ भी लिखूँगा जहाँ आप चाहते हैं । बस ये सब समर्थन वाला फार्वर्ड करना बंद कर दीजिये । गाली और ताली, एक फूल दो माली । छोटी सी इल्तज़ा लंबी हो गई इसके लिए माफी ।
आपका
रवीश कुमार

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