Saturday, October 24, 2015

छत्तीसगढ़: कोल स्टाम्प शुल्क विवाद

छत्तीसगढ़: कोल स्टाम्प शुल्क विवाद

Saturday, October 24, 2015
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स्टांप ड्यूटी
रायपुर | बीबीसी: छत्तीसगढ़ सरकार ने कोल ब्लॉक कंपनियों को स्टाम्प शुल्क में छूट देने का फ़ैसला किया है जिसका विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने विरोध किया है. कांग्रेस ने शनिवार से इस मामले को लेकर धरना-प्रदर्शन भी शुरू किया है.
असल में राज्य सरकार ने इसी महीने एक अध्यादेश लाकर भारतीय स्टाम्प नियम में संशोधन किया है. इस संशोधन के तहत खनन पट्टों पर लगने वाली स्टाम्प ड्यूटी में छूट दी गई
भारत का कुल 17.24 प्रतिशत कोयला भंडार छत्तीसगढ़ में है. राज्य के कोरबा, रायगढ़, कोरिया और सरगुजा ज़िले में 49 हज़ार 280 मिलियन टन कोयला ज़मीन के नीचे है. देश के कोयला उत्पादन में छत्तीसगढ़ हर साल 21 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है.
छत्तीसगढ़ में 130 चिन्हित कोयला खदाने हैं. इनमें से 42 कोयला खदानों का आवंटन यूपीए सरकार ने किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था.
बाद में नरेंद्र मोदी सरकार ने इनमें से 9 कोल ब्लॉकों की नीलामी की जिसे वेदांता की बालको, जिंदल, एसीसी, हिंडालको और मोनेट ने बोली लगाकर हासिल किया.
हालांकि जिंदल के 3 और वेदांता के एक कोल ब्लॉक का मामला विभिन्न आरोपों के कारण अभी अदालत में लंबित है.
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि छत्तीसगढ़ में नीलामी में कोल ब्लॉक हासिल करने वाली इन्हीं चार कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये छत्तीसगढ़ सरकार ने स्टाम्प शुल्क से संबंधित अध्यादेश पारित किया है.
इन चारों कंपनियों को इस अध्यादेश के बाद 3000 करोड़ रुपये का लाभ होगा.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल कहते हैं, “सरकार ने नए सिरे से यही कहते हुये कोल ब्लॉक की नीलामी की थी कि इससे सरकार को अधिक से अधिक आमदनी होगी. अब छत्तीसगढ़ सरकार इस अध्यादेश से सरकार को हज़ारों करोड़ का चूना लगा रही है.”
बघेल का कहना है, ”राज्य सरकार को यह जन-विरोधी अध्यादेश वापस लेना ही होगा.”
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और विधायक श्रीचंद सुंदरानी इस अध्यादेश को क़ानूनी तौर पर सही बता रहे हैं. सुंदरानी कहते हैं, “हमने इस बारे में राज्य के महाधिवक्ता से राय ली है और उसके बाद ही यह अध्यादेश लाया गया है.”
लेकिन कोल ब्लॉक के मामले पर लगातार आंदोलन करने वाले छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला इस तर्क को हास्यास्पद मानते हैं.
वे कहते हैं, ”प्राकृतिक खनिज संसाधन समाज की संपदा है. राज्य सरकार ने स्टाम्प शुल्क परिवर्तन से पहले ना तो जनता से कोई राय ली और ना ही विधानसभा में चर्चा कराई है.’

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