Monday, October 26, 2015

सेने से नफरत, सनातन पर इनायत? [ सुभाष गाताडे ]

सेने से नफरत, सनातन पर इनायत?

[ सुभाष गाताडे ]

[ देशनबंधु ]
23, OCT, 2015, FRIDAY 09:17:15 AM
पिछले दिनों देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी गोवा सरकार के उपरोक्त फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी और 'नैतिक पहरेदारी और उसके नाम पर महिलाओं पर हमले करने' की भर्त्सना की थी। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के शब्द थे ''आखिर आप नैतिक पहरेदारी क्यों करते हैं? क्या आप यही करना चाह रहे हैं? आप नैतिकता के नाम पर महिलाओं पर हमले करते हैं। उम्मीद की जा सकती है कि भाजपा का अग्रणी नेतृत्व अपनी ही सरकार के इस दोहरे रवैये को लेकर अपनी समझदारी स्पष्ट करेगा और संविधान की रक्षा के लिए कारगर कदम उठाएगा।
उत्तरी गोवा में स्थित बण्डोरा गांव के पंचायत का एक फैसला पिछले दिनों मुल्क के पैमाने पर सूर्खियां बना।
न उन्होंने किसी नए सड़क की मांग की थी और न किसी स्कूल की मांग की थी, उनकी एक छोटी सी मांग थी कि उनके गांव पंचायत में बसी एक संस्था पर सरकार पाबंदी लगा दे, और उसका मुख्यालय वहां से हटे, जिसके चलते उनके गांव की बदनामी हो रही है। आए दिन पुलिस एवं गुप्तचर एजेंसी के लोग वहां पहुंचते रहते हैं। उनका कहना है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो उसके लिए वह जल्द ही आन्दोलन शुरू करेेंगे। गौरतलब है कि कुछ साल पहले भी उन्होंने इस मांग को उठाया था, जिस पर तवज्जो नहीं दिया गया था।
दरअसल हाल के दिनों में नए सिरे से सूर्खियों में आई 'सनातन संस्था' का मुख्यालय उपरोक्त गांव में स्थित है। वही संस्था जिससे 1998 से सम्बद्ध सांगली के समीर गायकवाड़ को पिछले दिनों कामरेड गोविन्द पानसरे की हत्या की साजिश में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और इस साजिश में संलिप्तता को लेकर उसके चन्द अन्य साथी भी पकड़े गए। खबरों के मुताबिक पुलिस को उसके अन्य कार्यकर्ताओं रूद्र पाटिल और सारंग अकोलकर की भी तलाश है, जिन्हें अक्टूबर 2009 के मडग़ांव बम विस्फोट में फरार घोषित किया गया है। इन गिरफ्तारियों के बाद सूबा महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि लम्बी निगरानी के बाद ठोस सुरागों के आधार पर ही यह गिरफ्तारियां हुई हैं। कामरेड पानसरे की हत्या की जांच के आगे बढ़ते ही इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि 2013 में हुई डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या तथा पिछले दिनों कर्नाटक में हुई प्रोफेसर कुलबर्गी की हत्या में भी आपसी रिश्ता रहा है।
रेखांकित करने वाली बात यह है कि आध्यात्मिकता की बात करने वाली मगर साथ-साथ उसके कार्यकर्ताओं की हिंसक घटनाओं में संलिप्तता के चलते विवादास्पद बनी 'सनातन संस्था' पर पाबंदी की मांग कांगे्रस तथा आम आदमी पार्टी, कम्युनिस्टी की तरफ से भी की गई है। फिलवक्त भाजपा का नेतृत्व इस बात को लेकर अधिक असहज है कि संस्था पर पाबंदी की मांग को लेकर भाजपा के अपने विधायक विष्णु वाघ ने जो मुद्दा उठाया है, उसका वह किस तरह जवाब दे। जनाब वाघ ने अतिवादी संगठनों पर पाबन्दी को लेकर अपनी ही सरकार के दोहरे रुख को उजागर किया है। उन्होंने न केवल सनातन की तुलना प्रतिबंधित संगठन 'सिमी' अर्थात स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेण्ट आफ इंडिया से की बल्कि यह भी जोड़ा कि सनातन पर अगर बाहर के कई देशों में पाबन्दी लग सकती है, तो यहां पर क्यों नहीं?
जनाब विष्णु वाघ का प्रश्न है कि प्रमोद मुतालिक की अगुआई वाली श्रीराम सेने जिसने खुद गोवा के अन्दर उत्पात नहीं मचाया है, उसकी गतिविधियों पर अगर गोवा में पाबन्दी लगाई जा सकती है, फिर सनातन संस्था जिसके कार्यकर्ता कई आतंकी घटनाओं में लिप्त पाए गए हैं, उनके प्रति इतना मुलायम रवैया क्यों?
ध्यान रहे कि प्रमोद मुतालिक की अगुआई वाली श्रीराम सेने पर गोवा सरकार ने पिछले साल से पाबन्दी लगा रखी है। यह फैसला उन दिनों का है जब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर गोवा के मुख्यमंत्री थे। न केवल श्रीराम सेने गोवा में प्रतिबंधित है बल्कि उसके नेता प्रमोद मुतालिक के प्रवेश पर भी पाबन्दी है। पिछले दिनों देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी गोवा सरकार के उपरोक्त फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी और 'नैतिक पहरेदारी और उसके नाम पर महिलाओं पर हमले करने' की भर्त्सना की थी। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के शब्द थे ''आखिर आप नैतिक पहरेदारी क्यों करते हैं? क्या आप यही करना चाह रहे हैं? आप नैतिकता के नाम पर महिलाओं पर हमले करते हैं। उम्मीद की जा सकती है कि भाजपा का अग्रणी नेतृत्व अपनी ही सरकार के इस दोहरे रवैये को लेकर अपनी समझदारी स्पष्ट करेगा और संविधान की रक्षा के लिए कारगर कदम उठाएगा।
इसकी वजह यही है कि कामरेड पानसरे की हत्या में उसके कार्यकर्ताओं की कथित संलिप्तता का मामला कोई अपवाद नहीं है। अप्रैल 2008 में इसके कार्यकर्ताओं की ठाणे, पनवेल और वाशी जैसे स्थानों पर बम विस्फोट कराने की योजना का खुलासा करने वाले चर्चित पुलिस अधिकारी हेमन्त करकरे ने भी अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट में संस्था पर ही कार्रवाई करने की बात कही थी।
जांच में पुलिस के सामने यह तथ्य भी आए थे कि उपरोक्त संस्था एक तरफ जहां 'आध्यात्मिक मुक्ति' की बात करती है 'सदाचार/धार्मिकता की जागृति' की बात करती है, एक ऐसी दुनिया जो 'साधकों और जिज्ञासा रखने वालों के सामने धार्मिक रहस्यों को वैज्ञानिक भाषा में पेश करने का मकसद रखती है' और 'जो साप्ताहिक आध्यात्मिक बैठकों, प्रवचनों, बाल दिशानिर्देशन वर्गों, आध्यात्मिकता पर कार्यशालाओं आदि का संचालन करती है, मगर दूसरी तरफ वहां 'शैतानी कृत्यों में लगे लोगों के विनाश' को 'आध्यात्मिक व्यवहार' का अविभाज्य हिस्सा समझा जाता है। (देखें, 'साइन्स आफ स्पिरिच्युआलिटी' जयन्त आठवले, वाल्यूम 3, एच -सेल्फ डिफेन्स टे्रनिंग, चैप्टर 6, पेज 108-109)और यह विनाश 'शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर' करना है। गौरतलब है कि इस 'धर्मक्रान्ति' को सुगम बनाने के लिए साधकों को हथियारों - राइफल, त्रिशूल, लाठी और अन्य हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
अक्टूबर 2009 में उपरोक्त संगठन से सम्बद्ध दो आतंकी-मालगोण्डा पाटिल और योगेश नायक- मडग़ांव बम विस्फोट में तब मारे गए जब वे दोनों नरकासुर दहन नाम से समूचे गोवा में लोकप्रिय कार्यक्रम के पास विस्फोटकों से लदे स्कूटर पर जा रहे थे और रास्ते में ही विस्फोट हो जाने से न केवल उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा बल्कि उनकी समूची साजिश का भी खुलासा हुआ। यह आतंकी उसी दिन मडग़ांव से 20 किलोमीटर दूर वास्को बन्दरगाह के पास स्थित सान्काओले में एक अन्य बम विस्फोट की कोशिश में भी शामिल थे। ट्रक में बैग में रखे टाईमबम की तरफ उसमें सवार लोगों की निगाह गई थी जिन्होंने उसे अचानक बाहर खेतों में फेंक दिया था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा इस मामले में दायर आरोपपत्र में जहां इस बात को साफ लिखा गया है कि उपरोक्त आतंकी 'सनातन संस्था' से जुड़े थे, वह इस बात का भी विशेष उल्लेख करती है कि आश्रम में ही बम विस्फोट की साजिश रची गई।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ जब महाराष्ट्र के अग्रणी दैनिक लोकसत्ता में लिखे लेख में /28 सितम्बर 2015/ उपरोक्त संस्था द्वारा मराठी में प्रकाशित पुस्तिका 'क्षात्राधर्म' के अंक में दिए गए हैं, जो इस संस्था के चिन्तन और कार्यप्रणाली पर और रौशनी डालते हैं।  पिछले  दिनों 'मुंबई मिरर' नामक अखबार को दिए साक्षात्कार में संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी वीरेंद्र मराठे ने खुल्लमखुल्ला कहा कि हम 'हथियारों का प्रशिक्षण देते हैं।' सवाल उठता है कि अपने आप को आध्यात्मिक संस्था कहलाने वाली संस्था को हथियारों का प्रशिक्षण देने की जरूरत क्यों पड़ती है?
उपरोक्त संस्था द्वारा मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में प्रकाशित अखबार 'सनातन प्रभात' भी अक्सर सूर्खियों में रहता आया है क्योंकि उसमें अन्य समुदायों के खिलाफ बहुत अपमानजनक बातें लिखी गई होती हैं। एक बार ऐसे ही लेख के प्रकाशन के बाद मिरज शहर में दंगे की नौबत तक आ गई थी।
2008-2009 की आतंकी घटनाओं में संलिप्तता और अब 2015 की हत्या का खुलासा, आखिर सरकार कब तक इंतजार करने वाली है ताकि ऐसा संगठन जो आध्यात्मिकता के आवरण में अनुयायियों को अतिवादी बनाता हो, उस पर अंकुश लगे।

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