Saturday, October 24, 2015

सात सौ हेक्टेयर में खड़े साल वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ कर केरेबियन पाईन रोपा गया था


सात सौ हेक्टेयर में खड़े साल वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ कर केरेबियन पाईन रोपा गया था परन्तु पाईन रोपण के 38 साल बाद भी बस्तर में न कागज कारखाना लगा न ही लोगों को चिलगोजा खाने मिला।
[  नईदुनिया ]
जगदलपुर (ब्यूरो)। बस्तर की जलवायु पाईन के अनुकूल है। यहां उत्पादित पाइन से बेहतर गुणवत्ता का कागज बनाया जाएगा, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं ग्रामीणों को चिलगोजा भी खाने मिलेगा। यह कह कर वर्ष 1971 से 1979 के मध्य करीब सात सौ हेक्टेयर में खड़े साल वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ कर केरेबियन पाईन रोपा गया था परन्तु पाईन रोपण के 38 साल बाद भी बस्तर में न कागज कारखाना लगा न ही लोगों को चिलगोजा खाने मिला।
केन्द्र सरकार की अनुशंसा पर वन विकास निगम व्दारा वर्ष 1971 से 1979 के मध्य जगदलपुर वन परिक्षेत्र के लामनी, माचकोट वन पऱिक्षेत्र के कुरंदी और गणेश बहार नाला क्षेत्र , भानपुरी के घोड़ागांव में तथा गीदम वन परिक्षेत्र में करीब सात सौ हेक्टेयर में पाईन रोपा गया था। योजना के तहत साल के वृक्षों को जड़ सहित उखाड़ा गया और जमीन समतल किया गया था। विशेष तौर पर कैरेबिया से मंगवाए गए पाईन बीजों से पौधे तैयार कर इन्हे रोपा गया था। उन दिनों स्थानीय ग्रामीणों और शहर के प्रबुध्द जनों ने साल वृक्षों को गिरा कर पाईन रोपण का विरोध किया था।
बस्तर प्रकृति बचाओ समिति के संरक्षक एस सी वर्मा बताते हैं कि वन विकास निगम के अधिकारियों ने लोगों को बताया था कि पाईन में लॉग फाईबर होता है। इसलिए अच्छी गुणवत्ता वाला कागज तैयार होता है। पाईन रोपण के बाद बस्तर में कागज कारखाना स्थापित किया जाएगा। लोगों को रोजगार तो मिलेगा वहीं पाईन फल से चिलगोजा नट भी खाने मिलेगा।
बस्तर में साल काट कर पाईन रोपण विरोध विरोध सुंदर लाल बहुगुणा ने भी दिल्ली में किया था। वर्ष 1984 में दामनजोड़ी में स्थापित नेल्को एल्यूमिनियम कंपनी के एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी कुछ समय के जगदलपुर के वनविश्राम गृह में रूकी थीं। उन्होने पाईन रोपण का विरोध करते हुए कहा था कि प्राकृतिक समृध्द वनों को काट कर दोहन गलत है। श्रीमती गांधी के इस व्यक्तव्य के बाद पाईन प्रोजेक्ट बंद कर दिया।
इधर पाईन रोपण के 38 साल बाद भी बस्तर की वनभूमि पर खड़े हजारों पाईन वृक्षों का कोई उपयोग नहीं हो पाया । करीब आठ साल पहले कुरंदी और लामनी के कुछ पाईन वृक्षों को काट कर वन विभाग ने बेचा था वहीं शेष वन स्थल को लामनी पार्क के रूप में विकसित किया गया है।
कोई प्रोजेक्ट नहीं
बस्तर वन वृत्त के सीसीएफ एमटी नंदी बताते हैं कि 38 साल पहले रोपे गए पाईन को लेकर वन विभाग के पास फिलहाल कोई प्रोजेक्ट नहीं है।
-एमटी नंदी, सीसीएफ बस्तर वन वृत्त
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