Tuesday, May 12, 2015

जल स्त्रोतों का जमकर दोहन, खतरे में पड़ सकता है रायगढ़ में मांड का अस्तित्व


जल स्त्रोतों का जमकर दोहन, खतरे में पड़ सकता है  रायगढ़ में मांड का अस्तित्व 

खतरे में माण्ड 

[ नईदुनिया ]
जिले में स्थित औद्योगिक कल कारखानों द्वारा जल स्त्रोतों का जमकर दोहन किया जा रहा है। जिले की मांड नदी की बात करें तो इससे एसकेएस पावर जेनरेशन कंपनी द्वारा 1.83 मिलियन क्यूविक मीटर पानी ले रहा है। आगे चल कर इस नदी से 35 हजार मिलियन क्यूसेक पानी लेने की अनुमति मिल चुकी है। जिस तरह से नदियों के पानी का विदोहन किया जा रहा है इससे आने वाले समय में नदियों के अस्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
दरअसल जिस तरह से लाखों क्यूसेक मीटर पानी एक नदी से लिया जा रहा है, इससे नदी के जलस्तर पर प्रभाव पड़ने के साथ भूजल स्तर पर भी प्रभाव पड़ना लाजिमी है। जिले मुख्यालय से सटे गांव दर्रामुड़ा बिंझकोट में स्थित एसकेएस पावर जेनरेशन कंपनी द्वारा मांड नदी से वर्तमान में 12 हजार क्यूसेक मीटर पानी हर दिन लिया जा रहा है।
मांड नदी से इतने बड़े पैमाने पर पानी लिए जाने से मांड नदी के तट के किनारे बसे ग्रामीण अंचलों की स्थिति आने वाले समय में गंभीर रूप धारण कर सकता है। मामले में नदी नालों से बड़े पैमाने पर उद्योग कारखानों द्वारा जिस तरह से पानी लिया जा रहा है आने वाले दिनों में इसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। बड़े पैमाने पर नदी से पानी लिए जाने को लेकर जिले में जल जंगल और जमीन को लेकर लड़ाई लड़ने वाली संस्थाएं इसके खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने की तैयारी कर रही हैं।
घटेगा भूजल स्तर
मांड नदी से इतने बड़े पैमाने पर उद्योग द्वारा अंधाधुंध तरीके से पानी लिया जा रहा है। आने वाले दिनों में नदियों के जलस्तर के साथ भूजल स्तर पर भी गहरा असर पड़ेगा। जिस तरह से मांड नदी से वर्तमान में प्रतिदिन 12 हजार घन मीटर पानी लिया जा रहा है और आगे चलकर 1 लाख 8 हजार घन मीटर पानी प्रतिदिन लिया जाएगा। तब नदी के पानी के जल स्तर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा साथ ही नदी के आसपास के इलाकों में भी जल स्तर की गिरावट आएगी।
मांड तट के ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ेगा प्रभाव
जिस तरह से प्रतिदिन हजारों घन मीटर पानी मांड नदी से लिया जा रहा है। आने वाले दिनों इसका प्रभाव मांड के तट किनारे ग्रामीण बाशिंदो को भुगतना पड़ेगा। दरअसल मांड के तटीय इलाकों के रहवासी मांड के पानी पर आश्रित रहते हैं। खेती किसानी से लेकर साग सब्जी की पैदावार भी इसके पानी से की जाती है। इसका जिले में बहने वाली मांड पर ही नहीं पड़ेगा, अपितु जहां-जहां से मांड नदी होकर बहती है पूरे इलाके में इसका प्रभाव पड़ेगा।
सिर्फ बरसात में लेते हैं पानी
एसकेएस कंपनी प्रबंधन का कहना है कि हम मांड से सिर्फ बरसात में पानी लेते हैं। हालांकि उनके पास जल संसाधन विभाग से यह तय हुआ है कि वे जुलाई से दिसंबर तक 1.8 मिलियन घनमीटर पानी ले सकते हैं, लेकिन उतना पानी हम ले भी नहीं पाते। यह पानी हम अपने निर्माण कार्यों के लिए लेते हैं। वैसे उत्पादन शुरू होने के बाद हमें महानदी से 35 हजार घनमीटर पानी लेने की अनुमति मिली है। हमारे पानी से नदी में कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि हमें ओवर फ्लो का ही पानी मिलता है।

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