Wednesday, May 6, 2015

वीरपुर लच्छी के आदिवासियों पर खनन माफिया के जुल्म के विरोध में जंतर मंतर हुए प्रदर्शन पर आनंद स्वरूप वर्मा की टिप्पणी

                                आलोचना, आत्मालोचना और सबक - आनंद स्वरूप वर्मा की टिप्पणी
प्रिय मित्रों,

‘दमन विरोधी संघर्ष समिति’ की ओर से कल 5 मई 2015 को ग्राम वीरपुर लच्छी (रामनगर) के निवासियों पर खनन माफिया द्वारा किए जा रहे जुल्म के विरोध में जंतर मंतर पर हम सारे लोग इकट्ठा हुए थे। इस सभा में वीरपुर लच्छी गांव के और उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों से लगभग डेढ़ हजार लोग आए थे और सभा बहुत शांतिपूर्ण ढंग से चल रही थी। मैं अपने साथियों को लेकर एक फैक्ट फाइंडिंग टीम के साथ वीरपुर लच्छी गया था और जब मैं मंच पर पहुंचा तो इसी रूप में मेरा परिचय भी कराया गया और लोगों ने तालियों के साथ स्वागत किया। कुछ ही देर बाद मुझसे ‘उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी’ (उपपा) के अध्यक्ष पी.सी.तिवारी ने, जो मेरे बगल में बैठे थे मुझसे धीरे से कहा कि ‘हमलोगों के आंदोलन को सतपाल महाराज ने अपना समर्थन दिया है’। जवाब में मैंने कहा कि ‘यह अच्छी बात है’। लेकिन कुछ ही देर बाद एक व्यक्ति आया और उसने मंच पर मेरे सामने कपड़ों का एक ऊँचा सा आसन बनाया और फिर सतपाल महाराज आकर उस आसन पर बैठ गए।

मैंने पी.सी.तिवारी की ओर देखा और कहा कि यह व्यक्ति मंच पर कैसे आ गया लेकिन पी.सी.तिवारी काफी प्रफुल्लित नजर आ रहे थे। मंच के नीचे से भूपेन लगातार पी.सी.तिवारी और कुछ साथियों से कह रहे थे कि ऐसा नहीं होना चाहिए। सतपाल महाराज के बैठते ही विरोधस्वरूप मैंने मंच का बहिष्कार कर दिया और मेरे साथ बहुत सारे लोग नीचे आ गए। कुछ देर बाद सतपाल महाराज नीचे उतरे और उन्होंने विभिन्न चैनलों की कैमरा टीम को अपना इंटरव्यू आदि दिया और फिर मंच पर वापस जाकर बैठ गए। नीचे पी.सी.तिवारी आकर हमलोगों से अपनी सफाई देते रहे लेकिन मैं वहां से बाहर आ गया और घर चला गया।
इस पूरे प्रकरण में आलोचना के जो विन्दु हैं उन पर मैं आप सबका ध्यान दिलाना चाहता हूँ:
आलोचना
  1. सतपाल महाराज उसी राजनीतिक जमात के व्यक्ति हैं जिनकी वजह से पिछले 15 वर्षों के दौरान, उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से ही, यह राज्य विभिन्न तरह के माफिया गिरोहों का क्रीड़ा स्थल बन गया है।
  2. जब से उत्तराखंड राज्य का निर्माण हुआ राज्य की जनता कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के शासन का स्वाद चखती रही है और सतपाल महाराज जैसे लोग अपनी अवसरवादिता के चलते कभी इस पार्टी में तो कभी उस पार्टी में घूमते-फिरते रहे हैं। ऐसे लोगों को हमें अपने मंच से दूर रखना चाहिए। अगर किसी मुद्दे पर वह समर्थन देते हैं तो अच्छी बात है लेकिन उन्हें अपने साथ नहीं लेना चाहिए।
  3. सतपाल महाराज सभा में आते, एक सामान्य समर्थक की तरह व्यवहार करते और भाषण देते तो एतराज करने का कोई कारण नहीं है। लेकिन जिस तरह से उनको सम्मान देकर मंच पर आसीन कराया गया वह आपत्तिजनक है।
  4. सबसे बड़ी बात यह है कि 3 मई को प्रेस क्लब में संयोजन समिति के सदस्यों की बैठक में ऐसा कुछ भी तय नहीं हुआ था कि किसी राजनीतिक दल के व्यक्ति को मंच पर आने दिया जाय। ऐसी स्थिति में सतपाल महाराज का मंच पर आना किसकी रजामंदी से हुआ इस पर बाकायदा छानबीन की जानी चाहिए।
  5. सतपाल महराज के मंच पर आने के प्रसंग में पी सी तिवारी का यह कहना कि ‘आंदोलन किताबी तरीके से नहीं चलते’ घोर आपत्तिजनक है।
आत्मालोचना
  1. यद्यपि सतपाल महाराज के आने से मैं बहुत रोष में था और मुझे मंच से उतर कर अपना विरोध व्यक्त भी करना चाहिए था लेकिन कुछ देर बाद मुझे सभा में शामिल हो जाना चाहिए था।
  2. मुझे लगता है कि सभा का पूरी तरह बहिष्कार करके मैंने उन ढेर सारे लोगों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा जो इतना कष्ट उठाकर रामनगर से दिल्ली तक आए थे।
  3. मुझे बहिष्कार के बाद सभा को संबोधित करना चाहिए था और जो बात सोचकर मैं गया था कि जनता के अंदर एक राजनीतिक विकल्प की सोच पैदा करने का प्रयास करूं, वह मुझे करना चाहिए था।
  4. उत्तेजना में मैंने वह अवसर खो दिया जिससे वहां आए लोगों के साथ मेरा एक सीधा संवाद हो सकता था।
  5. इस तरह की घटना न तो पहली बार हुई है और न आखिरी बार होने जा रही है। जाहिर है कि सार्वजनिक जीवन और राजनीति में आए दिन इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और ऐसे में पूरी ताकत के साथ विरोध व्यक्त करने के साथ ही अपनी बात कहने का कौशल हमारे अंदर होना चाहिए जिसकी कमी मैंने खुद में महसूस की।
सबक
  1. इस घटना का सबसे बड़ा सबक वही है जो अनेक दशकों से हम झेलते रहे हैं लेकिन कुछ सीख नहीं सके। सारी मेहनत हमारे साथियों ने की और इस आंदोलन का श्रेय टीवी चैनलों के माध्यम से सतपाल महाराज ले गया। यह ठीक वैसे ही हुआ जैसे उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए सारा संघर्ष हमारे साथियों ने किया और जो लोग इसका विरोध करते थे अर्थात कांग्रेस और भाजपा वे ही राज्य बनने के बाद इसके भाग्य विधाता बन गए।
  2. हमारे संघर्षशील नेताओं के अंदर आत्महीनता की जो ग्रंथि है उससे अगर वे छुटकारा नहीं पा सके तो कभी सतपाल महाराज तो कभी हरीश रावत के पीठ थपथपाने भर से गदगद हो जाएंगे।
  3. हमें हर हाल में मंच संचालन आदि के बारे में उन फैसलों का पालन करना चाहिए जो सभा से पूर्व संचालन समिति ने तय किए हों।
  4. किसी एक घटना मात्र से व्यापक उद्देश्य से विमुख नहीं होना चाहिए। यह प्रवृत्ति अगर बनी रही तो कभी भी दुश्मन खेमे की तरफ से कोई व्यक्ति आकर उत्तेजना का ऐसा माहौल पैदा कर सकता है जिसमें अपने ही साथी मूल उद्देश्य के प्रति उदासीन हो जायं।
  5. हमें हर हाल में न केवल वीरपुर लच्छी की जनता पर जुल्म ढा रहे सोहन सिंह ढिल्लों जैसे खनन माफिया के खिलाफ बल्कि समूचे उत्तराखंड में फैले सोहन सिंहों के खिलाफ लड़ाई को जारी रखनी है। इसके साथ ही उत्तराखंड की जनता को कांग्रेस और भाजपा से अलग किसी संघर्षशील राजनीतिक विकल्प की दिशा में आगे ले जाना है। जहां तक मेरा सवाल है, इस घटना के या भविष्य में होने वाली इस तरह की घटनाओं के बावजूद मैं उत्तराखंड की जनता के हित में किसी विकल्प की दिशा में कार्य करने के लिए प्रयासरत रहूंगा। यह मेरा संकल्प है।
आनंद स्वरूप वर्मा
6 मई, 2015
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