नरकंकालों पर खड़ा होता कनहर बांध
By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
कैसे केवल उत्तर प्रदेश की ही नहीं, झारखंड और छत्तीसगढ़ की भी सरकारें आदिवासियों की समस्याओं को मुआवज़े की कीमत पर तौल रही हैं? क्या होगा कनहर बांध बनने से और राज्यों के बीच किस तरह तनाव पसरा हुआ है...
सोनभद्र: कनहर सिंचाई परियोजना पर ज़मीनी हकीकत को लेकर बहुत सारी सचाईयां उजागर हो चुकी हैं. विकास के नाम पर उत्तर प्रदेश की सपा सरकार जिस तरह से किसानों और आदिवासियों की अमूल्य संपदाओं से खेल रही है, ज़रूरी है कि पार्टी के रिपोर्ट कार्ड में वह भी शामिल हो.
इस मामले को लेकर जिस बात की ओर सरकार के साथ-साथ मीडिया का ध्यान नहीं जा रहा है, वह है इस बाँध के साथ दो और राज्यों का जुड़ाव. छत्तीसगढ़ और झारखंड से जुड़ा होने के कारण कनहर बांध का डूब क्षेत्र पूरी तरह से भरने के बाद इन राज्यों के सीमावर्ती गांवों को भी ले डूबेगा. और चूंकि कनहर पहाड़ी नदी है, इसलिए ज़ाहिर है कि बारिश के दिनों में बाढ़ आने पर स्थिति और भयावह हो जाएगी.
ऐसा नहीं है कि हम अपनी रिपोर्ट के माध्यम से उत्तर प्रदेश की डूब क्षेत्र को कमतर अंक रहे हैं, बल्कि हम यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस कदर उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपालसिंह यादव समाजवादी पार्टी के तुष्टिकरण के लिए सारे मानवीय मूल्यों के खिलाफ़ कदम उठा रहे हैं. इसे इस तरीके से सोचना होगा कि यदि बारिश के दिनों में कनहर बांध के जलाशय से छत्तीसगढ़ और झारखंड के गांवों में बाढ़ आ जाएगी, उस स्थिति में भी उत्तर प्रदेश सरकार अपनी परिस्थिति के हिसाब से बांध के फाटक खोलने या बंद रखने का निर्णय लेगी.
कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर दूसरे राज्यों की सरकारें बस बांध को ही फटी निगाहों से देख रही हैं. उनका न ज़मीनी सचाईयों से कोई स्पष्ट सम्बन्ध मालूम होता है, न ही आदिवासियों की समस्याओं से. छत्तीसगढ़ के सिंचाई मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से बातचीत में राज्य सरकारों की वही असलियत सामने आती है, जो उत्तर प्रदेश सरकार की तस्वीर बयां करती है. वे कहते हैं, ‘देखिए, इस बांध के बनने से छत्तीसगढ़ के कुछ गांव डूबेंगे. ज़्यादा नहीं हैं.’ हम उन्हें बताते हैं कि ज़मीनी हकीकत तो यह है कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा तक पानी चला जाएगा. वे इस बात से इनकार कर देते हैं, ‘नहीं ऐसा नहीं है. हालत इतनी ख़राब नहीं होगी. सीमा पर स्थित कुछ गांव ज़रूर डूबेंगे. हम उनके लिए उपाय कर रहे हैं.’ लेकिन इस बांध के बनने से छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के 39 गांव डूबेंगे. इन गांवों में त्रिशूली, तेमना, सेलिया, सल्वाही, मानकरी, जयनगर, सेमारवा, सोनावल, गुआदा और दुगारू जैसे कई सारे प्राकृतिक संपदा से संपन्न गांव पानी के भीतर आ जाएंगे. इसके साथ-साथ छत्तीसगढ़ के बीस हज़ार से भी ज़्यादा लोग इस बांध के बनने के कारण विस्थापित होंगे.
बांधों को लेकर मची एक वैश्विक बहस के बरअक्स जब हमने मंत्री जी से पूछा कि क्या आप बांध के खिलाफ़ नहीं हैं? तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया, ‘नहीं, हम किसी भी हाल में बांध के खिलाफ़ नहीं हैं. बांध विकास के साधन हैं. उसके खिलाफ़ खड़े होने का कोई सवाल ही नहीं उठता.’ मुआवज़े और भूमि के आवंटन को लेकर पूछे गए सवालों के बाबत बृजमोहन अग्रवाल ने कहा, ‘हम चाहते ही हैं कि किसानों को पूरा और उचित मुआवज़ा मिले, इसके लिए हमने सर्वे शुरू करवा दिया है.’ हमने पूछा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्माण भी शुरू करा दिया है, आप अभी मुआवज़े के लिए सर्वे पर ही हैं. इस पर उन्होंने कहा, ‘कहां? कोई काम नहीं शुरू हुआ है. अभी तो उत्तर प्रदेश की सरकार भी सर्वे ही कर रही है. उन्होंने कोई काम नहीं शुरू किया है.’ जबकि हकीकत तो यह है कि पिछले साल दिसम्बर में काम शुरू करने के कारण ही यह पूरा आंदोलन इस स्थिति में आया.
छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में बात करें तो हालिया परिस्थिति यह है कि बृजमोहन अग्रवाल ने 17 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर बाँध के बारे में सही-सही जानकारी माँगी है. बृजमोहन अग्रवाल ने इस पत्र में यह कहा है कि बाँध के निर्माण का कोई भी कार्य छत्तीसगढ़ में नहीं होना चाहिए. लेकिन हास्यास्पद लेकिन तथ्यात्मक सचाई यह है कि बांध के निर्माण को प्रतिबंधित करने से न जंगलों का डूबना रुकेगा और न घरों का.
जब हमने मानवीय आधार पर बृजमोहन अग्रवाल से पूछा कि क्या कोई अंदाज़ है कि छत्तीसगढ़ का कितना नुकसान होगा? इस पर उन्होंने कहा कि नहीं, कोई अंदाज़ नहीं है.
इसके बाद हमने झारखंड के कृषि व सिंचाई मंत्री रणधीर कुमार सिंह से बात की. रणधीर कुमार सिंह को यह समझाने में एक अच्छा ख़ासा वक्त लग गया कि हम किस परियोजना के बारे में बात कर रहे हैं. दरअस्ल कनहर सिंचाई परियोजना के तहत झारखंड के गढ़वा जिले के भी गाँव डूब क्षेत्र में आते हैं. इसके बारे में पूछने पर रणधीर कहते हैं, ‘मैं सबसे पहले एक बात बता दूं कि बांध बनने चाहिए और ज़रूर बनने चाहिए. इनसे किसान भाईयों के लिए विकास के रास्ते खुलते हैं. उनके खेत-खलिहानों को पानी मिलता है.’
रणधीर कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘चूंकि परियोजना अभी शुरू नहीं हुई है, इसलिए हम अभी सर्वे का काम कर रहे हैं. ताकी आदिवासी परिवारों को मुआवज़ा और ज़मीन मिल सके.’ यह एक छंटा हुआ सरकारी रवैया है, जहां मानवीय मूल्यों की कम से कम सुनवाई और पैरवी होती है. किसान और आदिवासी सिर्फ़ राजनीतिक ज़रूरत पूरा करने का हथियार बनते हैं.
बांध के बारे में आगे बात करते हुए रणधीर कुमार सिंह कहते हैं, ‘अब देखिए, झारखंड में नई-नई सरकार बनी है. समझने और चीज़ों को रास्ते पर लाने में समय तो लगेगा. हम चाहते हैं कि विकास हो, झारखंड का भी हो.’ तीन राज्यों के बीच का मुद्दा होने का सवाल रखने पर उन्होंने कहा, ‘अब देखिए, किसी न किसी तरह से हम सहयोग तो करेंगे ही.’
कनहर के निर्माण के शुरू होने के वक्त भी इन तीनों राज्यों में आपसी असहमति के कारण ही परियोजना ठप्प पड़ गयी थी. दरअस्ल उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी के गांव के आदिवासियों को तो डूब की खबर दे दी थी, लेकिन छत्तीसगढ़ और झारखंड को इसकी खबर नहीं दी गयी थी. इसी गलती के चलते आज तक कनहर परियोजना लटकी रही. अब उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक घोर असहमति का दौर आ चुका है. छत्तीसगढ़ सरकार ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश का प्रशासनिक अमला और पुलिस गैर-कानूनी ढंग से छत्तीसगढ़ की सीमा में घुस रहे हैं. ऐसा सच भी है क्योंकि किसी भी व्यक्ति को निर्माण-स्थल तक पहुँचने से रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार हरेक कदम उठा रही है. छत्तीसगढ़ के कुछ विधायकों ने यूपी पुलिस पर उनकी सीमा के भीतर उन्हें रोकने का आरोप लगाया है. इसे देखते हुए अब छत्तीसगढ़ सरकार ने इन सीआरपीएफ को राज्य की सीमा की ओर भेज दिया है. ऐसे में छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश एक ‘फ़ेस ऑफ़’ की स्थिति में आ चुके हैं.
इसे लेकर एक गैर-पुख्ता खबर यह भी है कि प्रशासन ने सिंचाई की नीयत से बन रहे इस बांध के पानी के उपयोग के लिए कई निजी कंपनियों से सांठ-गांठ भी कर ली है. इन कंपनियों को बांध बनने के बाद पानी इस्तेमाल के लिए दिया जाएगा.
बांध बनाने का जिम्मा एचईएस इन्फ्रा को दिया गया है. मूलतः आंध्र प्रदेश की कमपनी एचईएस इन्फ्रा एक लंबे समय तो इस किस्म की टनल और बांध जैसी परियोजनाओं का ठेका लेती रही है. उत्तर प्रदेश सरकार के साथ-साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, भारतीय रेलवे जैसे बड़े-बड़े नाम इनके कांट्रैक्ट-दाताओं की सूचियों में आते हैं.
सोनभद्र जाते हुए जब आप सोन नदी पार करते हैं, तो नदी एक छिछली नहर की तरह दिखती है. नदी में कई जगहों पर रेत के टीले उभर आए हैं, जो अपने क्षेत्रफ़ल में कई-कई बार कई हज़ार वर्गमीटर के हैं. सोन नदी में पानी का जितना भी बहाव बचा है, वह सिर्फ़ कनहर की वजह से बचा है. रिहन्द बनने के बाद सोन खत्म हो ही गयी थी, अमवार में कनहर पर तीन किलोमीटर लंबा बांध बन जाने के बाद सोन नदी पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. इसका सबसे बड़ा असर गंगा पर भी पड़ेगा क्योंकि सोन गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है. कनहर पर 290 किलोमीटर लम्बी नहर का भी निर्माण होना है, जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश का लगभग 50,000 वर्ग किलोमीटर इलाका प्रभावित होगा. आगे इस इस बाँध के जलाशय को रिहंद से भी जोड़ा जा सकता है, जिसकी वजह से बांध की ऊंचाई और 15 मीटर बढ़ा दी जाएगी.
यह वैश्विकता और विकास की होड़ ही है, जो सभ्यता और मानवीय तत्त्वों को उनकी जगहों से दूर धकेल देती है. इस खबर के लिखे जाने तक सोनभद्र के जिलाधिकारी ने परियोजना निर्माण-स्थल पर एक अस्थायी पुलिस चौकी के निर्माण को मंजूरी दे दी है ताकि विकास के नाम पर ज़रूरी समीकरण बनाए जा सकें.
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