Tuesday, May 12, 2015

आदिवासी महा सभा का एलान डिलमिली स्टील प्लांट का अंतिम साँस तक विरोध करेंगे ,कहा कलेक्टर ,विधायक और सरकार की साजिश ,65 गॉव होंगे प्रभावित।

आदिवासी महा सभा का एलान डिलमिली स्टील प्लांट का अंतिम साँस तक विरोध करेंगे ,कहा कलेक्टर ,विधायक  और सरकार की साजिश ,65 गॉव होंगे प्रभावित। 





प्रधानमंत्री के 24 हजार  करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा और उसके एम ओ यू के बाद आदिवासी महासभा ने अपनी पदयात्रा के डिलमिली पहुचने के बाद सभा में  इस अल्ट्रा मेघा स्टील प्लान्ट का इसके विरोध करना शुरू कर दिया ,आदिवासी हित और भूमिअधिग्रहण के खिलाफ  चार सूत्रीय मांग को लेके पदयात्रा पे निकले राष्ट्रीय संयोजक मनीष कुंजाम कुंजाम ने सीधे ग्रामीणो को सम्बोधित करते हुए कहा की स्टील प्लांट सोची समझी चाल हैं ,उन्होंने कहा की भूमिअधिग्रहण कानून माँ समझी जाने वाली जमीन  हड़पने की कोशिश हैं ,  हम लोग अपनी जमीन बचने के लिए अपनी जान देने की बात करते हैं ,लेकिन जहा सरकार ने स्टील प्लांट प्रस्तावित किया है उसके आसपास ही सैकड़ो एकड़ जमीन मंत्री केदार कश्यप , पूर्व मंत्री लताउसेंड़ी ,संसद केदार कश्यप ,विधायक बैदूराम कश्यप ,लखेश्वर  र्कावासी लखमा विधायको की है ,ये लोग अपन एलोगो के नाम से आजमीन खरीद रह हैं ,यही नहीं टाटा की स्थापना के समय कलेक्टर रहे एमएस परस्ते  की भी जमीन रही हैं। रेकार्ड बताते है की हजारो एकड़ जमीन इनके नाम कर ली गई हैं। हम अपनी थोड़ी सी जमीन के लिए सड़को पे लड़ाई लड़ रहे हैं ,लेकिन जिनकी सैकड़ो एकड़ जमीन यही वे क्यों चुप हैं,स्टील प्लांट की स्थापना एक सोची समझी साजिश हैं ,. 
कुंजाम ने कहा की छठवी अनुसुची होती तो ऐसा नही हो पाता ,बस्तर के आदिवसियो के अधिकार का हनन किया जा रहा हैं ,हमने पहले भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के विरोध किया था ,और बस्तर को बचाया था ,आज भी हम ऐसा ही करेंगे ,बस्तर के पुरे क्षेत्र में पेसा कानून लगी है ,यह पूरा एरिया पांचवीं अनुसूची में आता हैं ,जिसमे आदिवासियों को अधिकार है की उनसे बिना अनुमति के बिना एक इंच  भी भी जमीन  नहीं ली जा सकती हैं। यदि छटवी अनुसूची लागु होती तो ऐसी कठिनाई आदिवासियों को नहीं होती। 

प्रधानमंत्री का का   प्रवास कलंकपूर्ण अध्याय 
कुंजाम ने कहा की बस्तर में  मोदी का प्रवास 24 हजार करोड़ का निवेश नहीं बल्कि  जो भी आदिवासी के पास है उसके भी छीनने की आसंका हैं ,जब भी विकास की बात होती यही तो आदिवासी बही रह जाता हैं ,इस समय आदिवासी के संसाधन चीन जाते हैं। बस्तर में मोदी का आना उनक एविनाश की पूर्व सूचना है। इसका सबसे बड़ा उदहारण एनएमडीसी  भी भृत्य तक को उसका अधिकार नहीं मिला हैं , एक भी जज आदिवासी वहा नहीं बना हैं। दस से बारह करोड़ कमाने वाली एनएमडीसी से स्थानीय आदिवासी को आजतक क्या कभ हुआ वो सबके सामने हैं। मोदी का प्रवास पेसा ,वनाधिकार ,पांचवी अनुसूची के अधिकार के हनन के रूप में देखा  जायेगा और कुछ नहीं। 

65 गॉव होंगे प्रभावित 
प्रस्तावित सयंत्र से 12 पंचायत 65  गॉव  की जमीन  इसमें जाएगी , जो नक्शा दर्शाया जा रहा है उसमे करीब 10 अजर एकड़ जमीन जाने की संभावना हैं इससे प्रभावित होने वाले गॉव डिलमिली ,मावलीभाटा ,केलाउरा ,बुरुंगपाल , नेननार, अलवा ,डोंडारे पाल ,कटेनार ,तुरथुम,कुमापारा ,कोडेनार ,कलेपार ,सिलकजोड़ी ,पंचायत  आने की संभावना हैं। ये सभी गॉव हाईवे और रेलवे ट्रेक के आसपास हैं। 

140 किलोमीटर की पदयात्रा 
भूमिअधिग्रहण और चार सूत्रीय मांग को लेके बैलाडीला के कुमलानर से पांच मई को  निकली पदयात्रा 14 मई  जगदलपुर पहुंचेगी ,इस दौरान ये पदयात्रा धुरली ,दंतेवाड़ा ,डिलमिली ,लोहण्डीगुड़ा के टाकुरगुड़ा होते हुए यहाँ पहुंचेगी ,दूसरी यात्रा दरभा से  रामा सोढ़ी के नेतृव में जा रही हैं ,


No comments:

Post a Comment