कई जरूरी दवाओं की कीमत बढ़ाने को सरकार की मंजूरी
पीटीआई| Apr 9, 2015, 10.00AM IST
सरकार ने फार्मा कंपनियों को 509 जरूरी दवाओं की कीमत बढ़ाने की इजाजत दे दी है। डायबीटीज, हेपेटाइटिस और कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होनेवाली इन दवाओं की कीमत 1 अप्रैल से 3.84 पर्सेंट बढ़ाई गई है। नैशनल फार्मासूटिकल प्राइसिंग (NPAA) ने दवाओं की कीमत में बढ़ोतरी का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है।
NPAA ने दवाओं की कीमत में बढ़ोतरी की इजाजत देने का यह कदम ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 के तहत उठाया है। इसमें दवाओं की कीमत 2014 के होलसेल प्राइस इंडेक्स के हिसाब से बढ़ाई गई हैं। NPPA ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा है, 'जैसा कि इकनॉमिक अडवाइजर (मिनिस्टर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री) ने कहा है, कैलेंडर इयर में होलसेल प्राइस इंडेक्स में 3.84 पर्सेंट की सालाना बढ़ोतरी हुई है।'
कीमत बढ़ने से नए फाइनैंशियल ईयर यानी इस साल 1 अप्रैल से जो दवाएं महंगी हुई हैं, उनमें हेपेटाइटिस बी और सी के अलावा कुछ अलग तरह के कैंसर के इलाज में काम आने वाला इंजेक्शन अल्फा इंटरफेरॉन, कैंसर के इलाज में यूज होनेवाला इंजेक्शन कार्बोप्लैटिन, फंगल इनफेक्शन के इलाज में काम आनेवाले कैप्सूल फ्लूकोनाजोल शामिल हैं।
इस फैसले का स्वागत करते हुए इंडियन फार्मासूटिकल अलायंस (IPA) के सेक्रटरी जनरल डी जी शाह ने कहा, 'यह पॉलिसी का हिस्सा है। फार्मा कंपनियों को एक साल में एक से ज्यादा बार कीमत बढ़ाने का चांस नहीं मिलता। यह प्राइस हाइक इनफ्लेशन के हिसाब से हुआ है।' कॉस्ट रिवीजन के चलते कॉन्डम की कीमत भी बढ़ गई है। यह भी जरूरी दवाओं की गिनती में आती है।
नोटिफिकेशन के मुताबिक एंटिबायॉटिक्स, जिनमें एमॉक्सिलिन कैप्सूल होता है, वह भी पहली अप्रैल से महंगा हो गया है। अभी सरकार ने 348 जरूरी दवाओं की कीमत पर लिमिट लगाई हुई है। यह लिमिट एक पर्सेंट से ज्यादा सेल वाले खास थेराप्यूटिक सेगमेंट की सभी दवाओं के सिंपल एवरेज पर बेस्ड है। सरकारी रेग्युलेटर बाकी सभी दवाओं की कीमत को रेग्युलेट करती है और उसने दवा फर्मों को एक साल में सिर्फ 10 पर्सेंट तक ही कीमत बढ़ाने की इजाजत दी है। सरकार ने 15 मई 2014 से प्रभावी होने वाले DPCO,2013 का नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके दायरे में 680 दवाएं आती हैं। इससे पहले 1995 में बने रेग्युलेशन कानून के दायरे में सिर्फ 74 बल्क दवाएं आती थीं।
NPAA ने दवाओं की कीमत में बढ़ोतरी की इजाजत देने का यह कदम ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 के तहत उठाया है। इसमें दवाओं की कीमत 2014 के होलसेल प्राइस इंडेक्स के हिसाब से बढ़ाई गई हैं। NPPA ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा है, 'जैसा कि इकनॉमिक अडवाइजर (मिनिस्टर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री) ने कहा है, कैलेंडर इयर में होलसेल प्राइस इंडेक्स में 3.84 पर्सेंट की सालाना बढ़ोतरी हुई है।'
इस फैसले का स्वागत करते हुए इंडियन फार्मासूटिकल अलायंस (IPA) के सेक्रटरी जनरल डी जी शाह ने कहा, 'यह पॉलिसी का हिस्सा है। फार्मा कंपनियों को एक साल में एक से ज्यादा बार कीमत बढ़ाने का चांस नहीं मिलता। यह प्राइस हाइक इनफ्लेशन के हिसाब से हुआ है।' कॉस्ट रिवीजन के चलते कॉन्डम की कीमत भी बढ़ गई है। यह भी जरूरी दवाओं की गिनती में आती है।
नोटिफिकेशन के मुताबिक एंटिबायॉटिक्स, जिनमें एमॉक्सिलिन कैप्सूल होता है, वह भी पहली अप्रैल से महंगा हो गया है। अभी सरकार ने 348 जरूरी दवाओं की कीमत पर लिमिट लगाई हुई है। यह लिमिट एक पर्सेंट से ज्यादा सेल वाले खास थेराप्यूटिक सेगमेंट की सभी दवाओं के सिंपल एवरेज पर बेस्ड है। सरकारी रेग्युलेटर बाकी सभी दवाओं की कीमत को रेग्युलेट करती है और उसने दवा फर्मों को एक साल में सिर्फ 10 पर्सेंट तक ही कीमत बढ़ाने की इजाजत दी है। सरकार ने 15 मई 2014 से प्रभावी होने वाले DPCO,2013 का नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके दायरे में 680 दवाएं आती हैं। इससे पहले 1995 में बने रेग्युलेशन कानून के दायरे में सिर्फ 74 बल्क दवाएं आती थीं।
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