Monday, April 27, 2015

कोरबा :धुआं से फिजा में घुल रहा जहर

कोरबा :धुआं से फिजा में घुल रहा जहर

Published: Mon, 27 Apr 2015 11:56 PM (IST) | Updated: Mon, 27 Apr 2015 11:56 PM (IST)
By: Editorial Team
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- प्रदीप बरमैया
कोरबा। पावर प्लांटों से जुड़ी ऊर्जाधानी में प्रदूषण का असर खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा है। गर्मी में निर्धारित मापदंड 200 माइक्रो मिलीग्राम की जगह पावर प्लांटों के चिमनियों से निकलने वाले धुएं में 300 माइक्रोमिलिग्राम पत्थर व कण वायु को प्रदूषित कर रहे हैं। हैरत की बात तो यह है कि पर्यावरण संरक्षण मंडल के वायु मापन के लिए शहरी क्षेत्र अंतर्गत तहसील कार्यालय के पास लगाए गया एक मात्र मशीन चालू तो है, लेकिन आरएसपीएम की गणना नहीं हो रही।आरएसपीएम की मात्रा फरवरी माह में 210 से भी अधिक पहुंच गई। गर्मी की वजह से डेम के राख भी सूखकर हवा में जहर की तरह घुलने लगा है। विभिन्ना सार्वजनिक, निजी व अर्द्धशासकीय संयंत्रों से प्रतिदिन 55 हजार टन फ्लाइएश निकल रही है। वायु मंडल में राख के कण रोकने हेतु ईएसपी सहित अन्य उपकरण पावर प्लांटो में लगाए गए हैं, फिर भी प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिल रही है।
औद्योगिक नगरी में विद्युत कंपनी के चार ताप विद्युत गृह क्रमशः एचटीपीपी, कोरबा पूर्व संयंत्र, डॉ. श्यामा प्रसाद ताप विद्युत गृह तथा एचटीपीपी विस्तार परियोजना, एनटीपीसी, बाल्को 540 मेगावाट, बीसीपीपी, एनटीपीसी, लैंको से बिजली उत्पादित हो रही है। जबकि वंदना पावर प्रोजेक्ट, लैंको की दूसरी इकाई, बाल्को 1200 मेगावाट विस्तार परियोजना तथा एसवी पावर प्लांट भी जल्द शुरू होने की स्थिति में है। वर्तमान में 8 पावर प्लांट से लगभग 6 हजार मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है। इन संयंत्रों में लगभग एक लाख टन कोयला प्रतिदिन जल रहा है, जिससे प्रतिदिन 50 हजार टन से भी ज्यादा राख उत्सर्जित हो रही है। कोयला जलने से कार्बन मोनो आक्साईड, कार्बन डाई आक्साईड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाई आक्साइड व राख सहित अन्य डस्ट पार्टिकल्स लगातार हवा में मिल रहा है। पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा हवा मापने के लिए विभिन्न स्थानों में लगाए गए प्रदूषण मापक यंत्र सीमित क्षेत्र में लगे होने से प्रदूषण की वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पा रहा है। एक ओर प्रदूषण की रोकथाम के मसले पर प्रशासन मौन है, तो दूसरी ओर से इसका लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव बढ़ रहा है। पर्यावरण विभाग केवल जांच पड़ताल व नोटिसों की कागजी औपचारिकताएं पूरी कर अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है। उधर वन विकास निगम भी पौधारोपण के नाम पर प्रतिवर्ष खानापूर्ति कर रहा है।
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फोटो नंबर-27केओ4 व 5- घरेलू ईंधन में सिगड़ी का इस्तेमाल जारी, शाम होते ही बस्तियों में छा जाता धुआं ।
सांस लेना मुश्किल कर देता है सिगड़ी का धुंआ
श्रमिक बाहुल्य बस्तियों में घरेलू ईंधन के रूप में बड़े पैमाने पर कोयले का उपयोग प्रतिदिन किया जा रहा है। केवल सिगड़ी के माध्यम से ही हर रोज लगभग 50 टन कोयला जलकर धुआं हो जाता है। शाम ढलते ही खाना बनाने जलाई गई सिगड़ियों का धुआं पूरे इलाके में धुंध की तरह फैलकर सांस लेना मुश्किल कर देता है। शाम के 6 बजते ही वातावरण में कुछ ऐसी स्थिति बन जाती है कि आने-जाने वाले राहगीरों को भी कुछ कदम बाद दिखाई देने में परेशानी होती है। कोयला जलने से सल्फर आक्साइड व नाइट्रोजन डाइआक्साइड गैस निकलता है, जो स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होती है। जिले में स्थित ताप विद्युत गृहों में प्रतिदिन हजारों टन कोयला खपाया जा रहा है। इसकी वजह से क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर मानक से कहीं ज्यादा पहुंच गया है। ताप विद्युत गृहों के अलावा श्रमिक बाहुल्य बस्तियों में भी खाना पकाने हेतु व्यापक पैमाने पर कोयला का उपयोग किया जा रहा है। नगर निगम क्षेत्र की श्रमिक बस्तियों में बुधवारी, कुंआभट्ठा, सीतामढ़ी, संजयनगर, ढोढीपारा, काशीनगर, मोतीसागर पारा, इमलीडुग्गु, चिमनीभट्ठा, अयोध्यापुरी, दर्री बस्ती, सिंचाई कालोनी, राजीवनगर के अलावा दर्री क्षेत्र की अन्य बस्तियां, बांकीमोंगरा क्षेत्र स्थित गजरासाइड, बनवारी साइड, घुड़देवा व अन्य बस्तियों में घरेलू ईंधन के रूप में कोयला जलाया जाता है। लगभग 50 टन कोयला इन क्षेत्रों में निवासरत गृहणियों द्वारा सुबह-शाम सिग़िड़यों में जलाया जाता है। इससे प्रतिदिन 300 माइक्रो मिलीग्राम राख के कण धुएं के साथ निकल कर हवा में तैरते हैं। जीवाश्म ईंधन होने की वजह से कोयला में कार्बन एवं हाइड्रोकार्बन होता है। जलने से सल्फर आक्साइड व नाईट्रोजन डाइआक्साइड गैेस निकलता है, जो प्रदूषण के साथ वैश्विक तापमान को भी बढ़ाता है। यह आमलोगों के लिए काफी खतरनाक होता है। शहरी क्षेत्र में पेड़-पौधे की संख्या नगण्य है, इसलिए कोयले से निकलने वाली गैस का असर सीधे मानव पर पड़ता है और फेफड़े तथा श्वांस की बीमारी पनपने लगती है।
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हॉटलों पर नहीं लगा सका प्रतिबंध
श्रमिक बस्तियों में रोजाना हजारों सिगड़ी जलाई जा रही है। हॉटल, भोजनालय तथा खोमचे ठेलों में भी कोयले का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। मालगाड़ी से गिरा कर, खदान के आसपास क्षेत्र से लोगों द्वारा कोयला एकत्र कर लाते हैं तथा हॉटलों व खोमचा ठेला वालों को बेच दिया जाता है। इसी कोयला का उपयोग इन दुकानदारों द्वारा किया जाता है। नियमतः गैस सिलेंडर का उपयोग किया जाना चाहिए, किंतु कोयला गैस सिलेंडर की अपेक्षा काफी सस्ता पड़ता है और इससे निकलने वाली आंच भी लंबे समय तक रहती है, इसलिए दुकानदारों द्वारा कोयला का उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। गौरतलब है कि व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में गैस सिलेंडर का उपयोग करने का निर्देश नगर निगम द्वारा भी जारी किया गया है, फिर भी गैस सिलेंडर की बजाय इन दुकानदारों तथा खोमचे ठेले वालों द्वारा कोयले का उपयोग कर सिगड़ी व भट्ठी जलाई जा रही है।
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संयंत्र से उत्सर्जित राख की मात्रा
संयंत्र क्षमता कोयला खपत (प्रतिदिन) राख उत्सर्जन (प्रतिदिन)
एनटीपीसी 2600 मेगावाट 41000 टन 20000 टन
एचटीपीपी 840 मेगावाट 14000 टन 8500 टन
पूर्व संयंत्र 440 मेगावाट 8000 टन 4200 टन
डीएसपीएम 500 मेगावाट 8000 टन 4000 टन
एचटीपीपी विस्तार 500 मेगावाट 8000 टन 4800 टन
बाल्को 540 मेगावाट 9500 टन 5100 टन
बीसीपीपी 270 मेगावाट 4000 टन 2100 टन
लैंको 300 मेगावाट 4000 टन 2100 टन
शीघ्र शुरू होने वाले प्लांट
बालको 1200 मेगावाट 18000 टन 9000 टन
लैंको 300 मेगावाट 4000 टन 2100 टन
वंदना 540 मेगावाट 9500 टन 5100 टन
  

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