कोन किसको मार रहा है, बस्तर के जंगलो में ,किसको बचाने आये है ये फौजी , क्यों और किसके लिए जान दे रहे है जवान।
आज एक बार फिर सुकमा के जंगलो में सात नौजवान सिपाहीयो ने अपनी जान कुर्बान कर दी , रोहित सोरी ,मनोज बघेल ,मोहन उइके ,राजमन नेताम ,राज कुमार मरकाम और किरण देशमुख मारे गए और जो जख्मी हुए उनमे मड़काम कोसा ,संजय लकड़ा ,किसे देवा ,बद्दी कन्ना ,मडवी लुक्का, माडवी देवा ,सरयाम लवेना ,सरयाम मनोज ,रंजीत कुमार और अरविन्द कुमार ,भी लगभग सारे लोग स्थानीय आदिवासी ही हैं ,
कोई पूछ सकता है कि आखिर किस के लिय ये नौजवान आदिवासी अपनी जान दे रहे है है और वो भी इतनी निर्ममता से ,अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ जब कवासी कोसा को घर से ले ले जेक फ़ोर्स के लोगो ने उसे गोली मार दी थी ,ऐसा रोज रोज हो रहा हैं ,कभी माओवादी फ़ोर्स के लोगो को मर ते है कभी फ़ोर्स माओवादियों को या निर्दोष गौव के आदिवासियों को मार देती है।
आदिवासियों के प्रताड़ना की तो हजारो कहानी गॉव गॉव में बिखरी पड़ी है ,कोई भी किसी को भी मारे मरने वाला गरिब आदिवासी ही होता ही ,जिसे इस लड़ाई से कुछ लेने देना नहीं हैं। ,माओवादियों में भी वही है ,फ़ोर्स में भी वही है और मुठभेड़ के नाम से मारा जाने वाला निर्दोष भी वही है ,
फ़ोर्स किसकी रक्षा करने बस्तर के जंगलो में आई है , जगदलपुर का सैन्यीकरण करने के पहले न तो फ़ोर्स के लोग अपनी जान गवाते थे और नहीं आदिवासी ,माओवाद के नाम पे और कितने लोग मारे जायेंगे, ये कोई बड़ी जटिल समस्या नहीं है ,अगर कोई हल करना चाहे तो ? आदिवासी को दुश्मन देश के फौजी है ,जिनके लिए इतने आधुनिक हथियारों और इतनी बडी संख्या में फ़ोर्स की जरुरत है , आप जब दुनिया के बड़े बड़े आतंकवादी और दुश्मन देशो से चर्चा कर सकते है तो अपने हो देश के लोगो से क्यों नहीं। वो कोई देश तोड़ने की बात नहीं कर रहे है ,उनसे बात तो कीजिए ,अकड़ खत्म कीजिये , ताकत और हथियार से आज ताकि कोई जंग नहीं जीती जा सकी है , ये तो अपने ही देश के लोगो की आंतरिक समस्या हैं ,
ये मरने मारने का खेल खत्म कीजिये ,इसमें सरकार और कार्पोरेट का कुछ दावँ पे नहीं लगा है ,सिर्फ और सिर्फ गरीब आदिवासी और वंचित लोग अपनी जान गवा रहे हैं ,जिनकी रक्षा का दायित्व आपके ऊपर हैं।
आज एक बार फिर सुकमा के जंगलो में सात नौजवान सिपाहीयो ने अपनी जान कुर्बान कर दी , रोहित सोरी ,मनोज बघेल ,मोहन उइके ,राजमन नेताम ,राज कुमार मरकाम और किरण देशमुख मारे गए और जो जख्मी हुए उनमे मड़काम कोसा ,संजय लकड़ा ,किसे देवा ,बद्दी कन्ना ,मडवी लुक्का, माडवी देवा ,सरयाम लवेना ,सरयाम मनोज ,रंजीत कुमार और अरविन्द कुमार ,भी लगभग सारे लोग स्थानीय आदिवासी ही हैं ,
कोई पूछ सकता है कि आखिर किस के लिय ये नौजवान आदिवासी अपनी जान दे रहे है है और वो भी इतनी निर्ममता से ,अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ जब कवासी कोसा को घर से ले ले जेक फ़ोर्स के लोगो ने उसे गोली मार दी थी ,ऐसा रोज रोज हो रहा हैं ,कभी माओवादी फ़ोर्स के लोगो को मर ते है कभी फ़ोर्स माओवादियों को या निर्दोष गौव के आदिवासियों को मार देती है।
आदिवासियों के प्रताड़ना की तो हजारो कहानी गॉव गॉव में बिखरी पड़ी है ,कोई भी किसी को भी मारे मरने वाला गरिब आदिवासी ही होता ही ,जिसे इस लड़ाई से कुछ लेने देना नहीं हैं। ,माओवादियों में भी वही है ,फ़ोर्स में भी वही है और मुठभेड़ के नाम से मारा जाने वाला निर्दोष भी वही है ,
फ़ोर्स किसकी रक्षा करने बस्तर के जंगलो में आई है , जगदलपुर का सैन्यीकरण करने के पहले न तो फ़ोर्स के लोग अपनी जान गवाते थे और नहीं आदिवासी ,माओवाद के नाम पे और कितने लोग मारे जायेंगे, ये कोई बड़ी जटिल समस्या नहीं है ,अगर कोई हल करना चाहे तो ? आदिवासी को दुश्मन देश के फौजी है ,जिनके लिए इतने आधुनिक हथियारों और इतनी बडी संख्या में फ़ोर्स की जरुरत है , आप जब दुनिया के बड़े बड़े आतंकवादी और दुश्मन देशो से चर्चा कर सकते है तो अपने हो देश के लोगो से क्यों नहीं। वो कोई देश तोड़ने की बात नहीं कर रहे है ,उनसे बात तो कीजिए ,अकड़ खत्म कीजिये , ताकत और हथियार से आज ताकि कोई जंग नहीं जीती जा सकी है , ये तो अपने ही देश के लोगो की आंतरिक समस्या हैं ,
ये मरने मारने का खेल खत्म कीजिये ,इसमें सरकार और कार्पोरेट का कुछ दावँ पे नहीं लगा है ,सिर्फ और सिर्फ गरीब आदिवासी और वंचित लोग अपनी जान गवा रहे हैं ,जिनकी रक्षा का दायित्व आपके ऊपर हैं।
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