Monday, April 6, 2015

पहेली, आदिवासी - हेमलता महिश्वर की कविता


पहेली   आदिवासी 

हेमलता महिश्वर की कविता 



पहेली ,
सुनी तो होगी न
सबकी तरह
आपने भी
पहेली
वही पहेली
जो सुनी थी
बचपन में मैंने
आपने भी
जिसने था बूझा
उसने भी
बचपन में अपने
सुन बूझ रखी थी
जाने बीते
बचपन कितने
पहेली वही थी
पहुँची कहीं से कहीं थीं
पहेली वही
तीतर के दो आगे तीतर
तीतर के दो पीछे तीतर
आगे तीतर
पीछे तीतर
बोलो कितने तीतर
बूझना पहेली
क्या होता आसान है?
बूझो तो
आदिवासी के आगे आदिवासी
आदिवासी के पीछे आदिवासी
आगे आदिवासी
पीछे आदिवासी
किसको बचाते
बोलो मारे गए
कितने आदिवासी
कितनी सरकारें
कितनी तरह की सरकारें
करती रही थीं और हैं
जतन
कि बच जाए आदिवासी
पर
आदिवासी तो
आदिवासी था
आदिवासी है
जंगल में था
जंगल में है
जो उसका था
अब सरकार का है
और सरकार है कि
मुख्य धारा में होने के ही नही
मुख्य धारा की निर्माता होने के बाद भी
लंगड़ी रही
अंधी भी
इसलिए
संतुलन बिठाने
जंगल की तरफ बढ़कर
जंगली हो गई
कि तब से आदिवासी
सभ्यता से मुख्यधारा की
लदा फदा था
कभी टाटा, कि एस्सार
कि वेदांता
सारे के सारों की सभ्यता से
जंगल अटा पड़ा था
इस सभ्यता को सहेजने
आगे आदिवासी
पीछे आदिवासी
यहाँ से जड़ उखाड़े
तो कहाँ जाकर
जड़ गाड़े आदिवासी
बूझो बूझो
केन्द्र से राज्य तक
बस्तर से असम तक
झारखंड, उड़ीसा, आंध्रा, महाराष्ट्र
कैसे असम नहीं
सम है सरकार
ऑडिट की नहीं दरकार
पण्डो, बैगा, मडिया
बोडो हो कि कोरवा हो
आदिवासी का
जिसमें दखल हो
एसपीओ आदिवासी
सलवा जुडूम में आदिवासी
सलवा जुडूम का आदिवासी
नक्सली आदिवासी
उल्फा आदिवासी
माओ आदिवासी
मरता आदिवासी
मरने से किसको बचाता आदिवासी
आगे आदिवासी
पीछे आदिवासी
बोलो कितने बचे आदिवासी
आगे आदिवासी
पीछे आदिवासी
जंगल में है आदिवासी
तो समझो
मौसम को सुरक्षित रखने की मदद हासिल है
मौसम सुरक्षित
तो समझो
बचे रहेंगे पेड़ धरती पर
कि सहला जाएगी अपने नर्म हाथों से हवा
गुनगुना ताप दे जाएगी
कि बचा रहेगा थोड़ा पानी
उनकी वजह से हममें भी
पृथ्वी सुरक्षित थी कि
रहता था आदिवासी
आदिवासी है कि बिखरता रहा
और धरती का आंचल सिमटता रहा
उर्वर धरती खोखली हो गई
विकास की शर्त पर
विनाश को हुए
कितने गर्त आदिवासी
बोलो अरे बूझो तो
अब तक कितने बचे आदिवासी
हेमलता महिश्वर

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