मीना खलको हत्याकांड ; सात साल बाद निर्णय होगा ,माना की हत्या पुलिस ने की , माना की बलात्कार किया पुलिस ने ,लेकिन सबूतो के अभाव में सभी पुलिस के लोग रिहा किया जा रहे हैं
मीना खालको |
एक थी मीना ,
सरगुजा के एक
गॉव में ,बकरी
चराती थी ,वो
स्वछंद और बेफिक्र भी थी ,
गरीबी ,बदहाली परिवार में सारे
आदिवसियो की तरह
ही थी ,
एक दिन
वो घर से
निकली अपने मित्र से मिलने ,सामान्य दिनो की तरह ,
उसकी पहचान थी जंगलो के जानवरो से ,उससे
उन्हें कभी कोई खतरा
नहीं हुआ
कभी उसने
किसी नक्सली का भी
नाम नहीं सुना था ,और
न ही कभी कोई नक्सली गांव में या आसपास कभी आया था ,
वो वापस
आ रही थी
,बिना किसी से डरे हुए , हमेशा की तरह ,
उसी रात थाने के कुछ पुलिस वाले ,अचानक सामने आ गए ,उन्होंने शायद देख लिया
था ,मीना को दोस्त से मिलते हुए .
जिन पे जिम्मेदारी थी, विशेषकर आदिवसियो की परम्परा और आर्थिक स्वालम्बन
की ,
पुलिस के सिपाहियों ने ,घेर लिया अकेला भेड़िये की तरह
मीना को।
उस बेबस
और अकेली आदिवासी बालिका को निर्मामता पूर्वक बलात्कार किया ,
मीना बुरी तरह घायल
हो गई ,पुलिंस के लोगो को लगा
की अब वे
क्या करे ,
उन्होंने छत्तीसगढ़ की बनी
बनाई नीति को ,इम्प्लीमेंट करने की ठानी
,,,
विचार विमर्श किया ,और तुरंत मीना
कोगोलियां मार दी,
वो शायद वही मर
गई ,
गॉव के
लोगो ने गोली
की आवाज़ तीन सुनी ,
आनन फानन
में ,बड़ी संख्या में पुलिस के लोग
गॉव में चढ़
बैठे ,चारो तरफ पुलिस के लोग चिल्लाने लगे , गॉव में नक्सली हमला हुआ है ,मुठभेड में
लोग मारे गए हैं ,
देखते देखते गॉव में
दहशत का माहोल हो गया ,
मीना के पिता और माँ
को अस्पताल ले गए
,और कहा की
तुम्हारी लड़की नक्सली थी ,उसने
गोली चलाई और उस
मुठभेड़ में वो गोली से मर गई ।
समाचार पत्र ,गॉव के लोग ,समाज के लोग
और सामाजिक संघटनो ने कहा
की ,मीना को पुलिस के लोगो
ने बलात्कार र्के बाद गोली
से मार दिया हैं।
गॉव में
कभी कोई नक्सली नहीं आये और न ही उस रात
कोई मुठभेड़ हुई।
मुख्यमंत्री ने भी
लगभग मान लिया की मीना
की हत्या हुई थी
,उसके परिवार को दो
लाख मुआवजा भी दिया।
फिर आंदोलन ,प्रदर्शन ,सामाजिक संघटनो की जाँच रिपोर्ट के दबाब में, न्यायिक जाँच की घोषना की गई
,
अनिता झा को न्याययोग की जिम्मेदार दी गई ,
अनीता झा को तीन महीने का समय
दिया गया ,जाँच
के लिए ,
एक दो
नहीं सात बार
जाँच का समय
बढ़ाया गया ,जब
भी सामाजिक संघटन के लोग
उनके ऑफिस गए तो वहाँ
ताला लगा मिला।
खैर चार साल बाद आयोग ने निर्णय दिया की ,मीना को पुलिस ने गोली
से मारा था ,और हाँ वो नक्सली नहीं थी , अहा
कोईमुठभेड़ हुई। बलात्कार की बात
आयोग नहीं कहा ,और
न ही बलात्कारियो या हत्यारों की पहचान की
,
जाच 80 पेज की ,निर्णय एक लाईन
में ,
शाशन ने इसके
बाद वही जाँच सीआई डी को
सौंप दी ,
ये वही
सीआईडी है जिसने सबसे पहले मीना परिवार के लोगो
से कोरे कागज पे अगूठे लगवाये थे।
ये यही
सीआईडी है पुरे
प्रकरण को ख़राब
किया ,और फोरेंसिक जाँच में मीना के पुरे कपडे ही नहीं
भेजे थे।
जिसके कारण कोई जाँच बलात्कार की हुई
ही नहीं ,और वो
सारे पुलिस के लोग
दुबारा थाने में बरी हो
गए थे।
खैर आयोग
की जाँच के बाद
25 पुलिस के लोगो पे हत्या का मुकदमा दर्ज़ हो गया
,
अब आगे क्या होगा ,वो हम
बताते है।
जिला अदालत में 8 -10 साल मुक़दमा चलेगा ,गवाही होगी ,बयान होंगे ,पुलिस ही पुलिस के खिलाफ गवाही और साबुत पेश करेगी ,
और बाद
में निर्णय होगा की ,मन
की मीना की हत्या हुई है
,यही भी माना
की उसका बलात्कार भी हुआ
है ,
लेकिन ये सब
किसने किया इसके साबुत नहीं मिल इ,क्योकि बलात्कात और गोली
मरने का कोई
गवाह ही नहीं मिला जो सिपाहियों कप पहचान सके।
इसलिय पुरे सभी 25 सिपाहियों को बाइज्जत बरी क्या
जाता है ,
ऐसे हुई पूरी
आदिवासी निर्दोष मीना की कहानी।
ऐसा ही
होता है इस
न्यायिक प्रक्रिया में ,
चाहे वो बिहार में दलितों की सामूहिक हत्या हो ,चाहे वो हाशिमपुरा में 45
मुसलमानो की हत्या हो ,या
बस्तर में बार
बार हो रहे
आदिवसियों की हत्या ,
सब जगह
हाँ सब जगह
,
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