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मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्य सचिव ने उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव को लिखा पत्र
डूब क्षेत्र के विस्तृत सर्वेक्षण और मुआवजा आदि प्रकरणों का निराकरण नहीं होने तक बांध निर्माण स्थगित रखने का आग्रह
छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय सोच अपनाकर किया सहयोग, लेकिन उत्तरप्रदेश का रूख असहयोगात्मक
शर्ताें का पालन किए बिना और छत्तीसगढ़ के हितों की अनदेखी कर उत्तरप्रदेश ने बांध निर्माण शुरू किया
रायपुर, 30 अप्रैल 2015
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के ग्राम अमवार में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कन्हर नदी में निर्माणाधीन सिंचाई बांध के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार किसी भी हालत में अपने राज्य के किसानों और ग्रामीणों के हितों की अनदेखी नहीं होने देगी। छत्तीसगढ़ के प्रभावित होने वाले परिवारों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्य सचिव श्री विवेक ढांड ने इस मामले में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से उत्तरप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव श्री आलोक रंजन को चिट्ठी लिखी है। श्री ढांड ने अपने पत्र में उनसे आग्रह किया है कि इस परियोजना में जब तक सहमति की शर्तों के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के डूब क्षेत्र के विस्तृत सर्वेक्षण के बाद मुआवजा इत्यादि के मामलों का निराकरण नहीं हो जाता, तब तक कन्हर बांध का निर्माण स्थगित रखा जाए। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव के पत्र में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार के सर्वेक्षण के अनुसार इस परियोजना में छत्तीसगढ़ के बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के चार गांवों की भूमि प्रभावित हो रही है। उत्तरप्रदेश सरकार ने द्वारा 4/89 में डूूूबान क्षेत्र के मुआवजा निर्धारण के लिए कलेक्टर सरगुजा को प्रस्ताव दिया गया था। इस प्रस्ताव के अनुसार बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के चार गांव - झारा, कुशफर, सेमरूवा और त्रिशूली की 106.203 हेक्टेयर राजस्व भूमि, 9.368 हेक्टेयर निजी भूमि, 142.834 हेक्टेयर वन भूमि इस प्रकार कुल 258.405 हेक्टेयर भूमि सहित ग्रामीणों की अन्य परिसम्पतियां एफ.टी.एल. 265.552 मीटर तक आंशिक रूप से प्रभावित हो रही है। परियोजना से प्रभावित 142.834 हेक्टेयर वन भूमि में ग्राम झारा की 54.44 हेक्टेयर, ग्राम कुशफर की 28.34 हेक्टेयर, सेमरूवा की 25.40 हेक्टेयर, त्रिशूली की 4.104 हेक्टेयर वन भूमि सहित 30.55 आरक्षित वन क्षेत्र शामिल हैं। सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण के अनुसार डूब क्षेत्र 263.40 हेक्टेयर अनुमानित है, जिसके वर्गीकरण के अनुसार 86 हेक्टेयर राजस्व भूमि, 56.40 हेक्टेयर निजी भूमि और 121 वन भूमि शामिल हैं। श्री ढांड ने पत्र में लिखा है कि सर्वेक्षण के आधार पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पुनरीक्षित प्रस्ताव कलेक्टर सरगुजा (छत्तीसगढ़) को अब तक नहीं भेजा गया है। इस निर्माणाधीन बांध के संबंध में तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की 263.4 हेक्टेयर भूमि के डुबान हेतु 27 मार्च 1999 के पत्र में सशर्त सहमति दी गई थी। शर्तों का पालन करने के लिए उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा सात अप्रैल 1999 को दोनों राज्यों की सचिव स्तरीय बैठक में सहमति व्यक्त की गई थी। इसके बाद केन्द्रीय जल आयोग के परामर्श पर बांध के एफ.आर.एल. और एफ.टी.एल. के मध्य डुबान में आने वाली छत्तीसगढ़ राज्य की 41.60 हेक्टेयर जमीन को डूब से बचाने के लिए सुरक्षात्मक रिंग बांध बनाने के उत्तरप्रदेश सरकार के सुझाव को मान्य कर छत्तीसगढ़ शासन के जल संसाधन विभाग द्वारा नौ जुलाई 2010 को सशर्स्त सहमति दी गई थी। इसमें निर्धारित शर्तों का पालन नहीं होने पर अनापत्ति प्रमाण पत्र स्वमेव निरस्त होने का उल्लेख है। श्री ढांड ने अपने पत्र में यह भी जानकारी दी है कि उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा 28 जनवरी 2015 को सर्वेक्षण के लिए 40 लाख रूपए दिए गए हैं। इस राशि से सर्वेक्षण प्रारंभ कर दिया गया है और एफ.आर.एल. तथा एफ.टी.एल. लाइनों पर सर्वेक्षण पूर्ण कर डूब क्षेत्र, सम्पत्ति आदि के मूल्यांकन के लिए कार्य प्रगति पर है। सर्वेक्षण के बाद प्राप्त होने वाले विवरण के आधार पर भू-अर्जन प्रकरण, विस्थापन प्रकरण और केन्द्रीय वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत वन भूमि प्रकरण निराकरण के लिए प्रस्तुत किए जाएंगे। इसी तारतम्य में प्रकरण से संबंधित जन-सुनवाई भी आयोजित की जा सकेगी। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव ने 29 अप्रैल को उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में लिखा है कि इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ राज्य ने राष्ट्रीय सोच अपनाते हुए उत्तर प्रदेश राज्य के साथ लगातार सहयोग किया है, लेकिन उत्तरप्रदेश राज्य द्वारा असहयोगात्मक रूख अपनाकर पूर्व निर्धारित शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा है और छत्तीसगढ़ राज्य के हितों की अनदेखी कर बांध का निर्माण शुरू कर दिया गया है। इससे छत्तीसगढ़ के संबंधित गांवों में अनिश्चितता की स्थिति और भारी असंतोष तथा आक्रोश व्याप्त है। पत्र में श्री ढांड ने उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव से आग्रह किया है कि इस मामले में जब तक सहमति की शर्तों के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के डूब क्षेत्र के विस्तृत सर्वेक्षण के बाद मुआवजा इत्यादि के मामलों का निराकरण नहीं हो जाता है, तब तक कन्हर बांध का निर्माण स्थगित रखा जाए। |
This Blog is dedicated to the struggling masses of India. Under the guidance of PUCL, Chhattisgarh, this is our humble effort from Chhattisgarh to present the voices of the oppressed people throughout India and to portray their daily struggles against the plunder and pillage that goes on against them throughout the country.
Thursday, April 30, 2015
छत्तीसगढ़ की सरहद पर उत्तरप्रदेश में कन्हर बांध निर्माण का मामला : छत्तीसगढ़ के किसानों-ग्रामीणों के हितों की अनदेखी नहीं होने दी जाएगी: डॉ. रमन सिंह
पँचायत प्रतिनिधयों ने किया भूमि अध्यादेश को खारिज़ ,भू अधिकार एवं भू उपयोग योजना की मांग
पँचायत प्रतिनिधयों ने किया भूमि अध्यादेश को खारिज़ ,भू अधिकार एवं भू उपयोग योजना की मांग
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन द्वारा आयोजित पंचायत प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओ ने एक स्वर में केंद्र के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध करते हुए भू अधिकार और भू उपयोग योजना की तरफदारी की। इस इस सम्मलेन में कोरबा , सरगुजा ,रायगढ़ ,महासमुंद ,धमतरी ,बिलासपुर ,रायपुर ,कांकेर ,जशपुर ,बलौदाबाजार से चुने हुए प्रतिनिधि और कार्यकर्ताओ ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
सम्मलेन की अध्यक्षता चितरंजन बख्शी ,देवसाय ,श्रीमती चंद्रवती ,और वीर साय मझवार ने की ,प्राम्भिक वक्तव्य अलोक शुक्ल ने रखा,जिसके समर्थन में संजय पराते [ माकपा राज्यसचिव ] विजय भाई [भारत जन आंदोलन ]नद कश्यप [छत्तीसगढ़ किसान सभा ] सौरा यादव [सीपीआईएमएल ] सीएल पटेल [सीपीआई ] रिन चिन [दलित आदिवासी संघटन ] एस आर नेताम [आदिवासी विकास परिषद ] देव साय ,श्रीमती चंद्र वती ,भगत सिंह ,आनंद ,कमल देव वारीक ,वीर साय मझवार ,[सभी सरपँच ]सुरेश टेकाम ,[किसानसेना ]रमाकांत बंजारे ,[सीएमएम मजदुर कार्यकर्त्ता समिति ] जयनंदन [हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ]जन साय पोया [ भारत जन आंदोलन ] आदि बात बात रखी , सम्मलेन में किसानो और आदिवासियों से आव्हान किया गया की 5 मई को देहली में आयोजित रैली में पुरजोर ढ़ंग से शिरकत करें।
सम्मलेन में वक्ताओं ने आरोप लगाये की देश और प्रदेश की सरकार इस देश के जंगल ,जमीन ,जल और प्राकर्तिक संसाधन कार्पोरेट और अन्य बड़े अॉधिक घराने को सौंप देना चाहती हैं। इसके लिए किसानो ,आदिवासियों और कमजोर तबको को कुचलने का काम कर रही हैं। उन्होंने कहा की जमीन किसानो की पीढ़ि दर पीढ़ी अनंत काल तक आजीविका उपलब्ध कराती रही हैं, और कोई भी मुआवज़ा इसकी भरपाई नहीं कर सकता ,उन्होंने इस बात पे चिंता व्यक्त की यदि किसान और जमीन नहीं बचेगे तो देश की खाद्य सम्प्रभुता खत्म हो जायेगी , और इसकी मार देश के गरीब तबके पे ही पड़ेगी ,
वक्ताओं ने इस बात को रेखांकित किया की एक तरफ तो सरकार कार्पोरेट घरानो को 5 -6 लाख करोड़ रुपये टैक्स माफ़ी दे रही है ,इसके बाबजूद वे सरकार को 4 लाख 85 हजार करोड़ का टैक्स पटाने से इंकार कर रहे हैं। वही दूसरी तरफ सरकार आम जनता के लिया कल्याणकारी योजना जैसे शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सार्वजनिक वितरण प्रणाली ,मनरेगा आदि में 1 ,5 लाख करोड़ का आवंटन कम कर रही हैं ,इसका आम जनता केजीवन पे भारी प्रभाव पड रहा हैं।
सम्मलेन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया की अभी तक अधिग्रहित ऐसी जमीन जिसका उपयोग नहीं किया गया है उसे किसानो को वापस किया जाये , योजना बिना ग्राम सभा की पूर्व अनुमति और सामाजिक आंकलन के शुरू न की जाये ,और पेसा तथा वनाधिकार कानून के पालन को सुनिश्चित किया जाये। सम्मेलन में तय किया गया की विधान सभा के शीत कालीन सत्र में किसानो, आदिवासियों ,मजदूरो की मांग को लेके एक बड़ा प्रदर्शन किया जाये ,
भवदीय
अलोक शुक्ला , संयोजक
Wednesday, April 29, 2015
नकद हस्तांतरण से क्या हो पाएगी खाद्य सुरक्षा -रीतिका खेड़ा
नकद हस्तांतरण से क्या हो पाएगी खाद्य सुरक्षा
रविवार, 26 अप्रैल 2015
रीतिका खेड़ा
Updated @ 5:19 PM IST
सरकार ने भारतीय खाद्य निगम को प्रभावी रूप से चलाने के लिए शांता कुमार कमेटी का गठन किया। कमेटी ने साथ में खाद्य सुरक्षा कानून पर भी सुझाव दिए, जो न सिर्फ उसके कार्यक्षेत्र से बाहर है, बल्कि ये सुझाव आंकड़ों के गलत विश्लेषण के सहारे दिए गए हैं। कमेटी ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से सस्ता अनाज देने के बजाय नकद हस्तांतरण (कैश ट्रांसफर) का सुझाव दिया है। इसको उचित ठहराने के लिए कहा गया है कि पीडीएस में लंबे समय से चल रहे भ्रष्टाचार की समस्या में कोई सुधार नहीं हो रहा। जैसे कि, बिहार में लगभग 25 प्रतिशत अनाज की चोरी होती है, पर कमेटी के दोषपूर्ण आकलन में इसे 68 प्रतिशत बताया गया है। पिछले दशक में कई राज्यों ने पीडीएस को सुधारने के लिए जोरों से काम किया है। इससे छत्तीसगढ़ में चोरी की मात्रा 50 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत ही रह गई है। बिहार, ओडिशा जैसे राज्यों में भी भ्रष्टाचार घटा है। हिमाचल और दक्षिण के राज्यों में तो पहले से ही स्थिति ठीक थी। वहां पीडीएस की दुकानों में दाल और खाद्य तेल भी दिए जाते हैं।
लेकिन राज्यों के इन प्रयासों से अछूते, ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविकताओं से अपरिचित, सरकारी गल्ले पर आधारित लोगों की जरूरतों से अनजान, दिल्ली में बैठे आर्थिक और अन्य विशेषज्ञों ने कैश ट्रांसफर को ऐसी जादुई छड़ी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे भ्रष्टाचार और खाद्य असुरक्षा से निपटारा मिल सकेगा।
इस सुझाव में दम है या नहीं, इसे समझने के लिए हमने 2011 में नौ राज्यों के 1,500 ग्रामीण राशन कार्डधारियों का सर्वे किया और उनसे पूछा कि अनाज और नकद में से वे किसे पसंद करेंगे और क्यों। इनमें से दो-तिहाई ने अनाज पाना पसंद किया।
पैसा होने पर भी अनाज की चिंता क्यों थी उन्हें? ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार व्यवस्था तो कमजोर है ही, ग्रामीणों की दूसरी चिंता महंगाई से जुड़ी हुई थी। अनाज के दाम स्थिर नहीं रहते। जब महंगाई बढ़ेगी, तो क्या सरकार पैसा बढ़ाएगी? क्या सरकार के पास कीमतों की पर्याप्त जानकारी रहेगी? नकद राशि महंगाई के हिसाब से क्या तुरंत बढ़ेगी? यदि स्थानीय दुकानदार मुनाफा कमाने की नीयत से, जान-बूझकर कमी पैदा करें या कीमतें बढ़ाएं, तो सरकार कुछ करेगी या कर पाएगी? एक उत्तरदाता ने कहा, 'हमें पता है सरकार पैसे तभी बढ़ाएगी, जब चुनाव होंगे, उसके अलावा नहीं बढ़ाएगी!'
लोगों के लिए नकदी आकर्षक विकल्प इसलिए भी नहीं थी, क्योंकि बैंक खाता हो, तो भी न सिर्फ बैंक और पोस्ट ऑफिस दूर है,बल्कि बाजार भी हमेशा पास नहीं होते। आने-जाने के साधन कम हैं, खर्च अलग से होगा, समय की बर्बादी, बैंकों में भीड़, दुर्व्यवहार आदि। राशन की जगह पर पैसा देने से एक और दिक्कत आ सकती है। घर में नकद आने पर खर्च पर सबकी अलग राय हो सकती है, जिससे तनाव पैदा हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में किसी ने कहा कि आज अनाज की खरीद, भंडारण, ट्रांसपोर्ट, सब सरकार की जिम्मेदारी है। अगर पैसा दिया गया, तो यह सब तनाव वाले काम और खर्च गरीबों के माथे मढ़ दिए जाएंगे। उनके असुरक्षित जीवन में और अनिश्चितता पैदा करेंगे। पैसा नहीं आया, तो बैंक हाथ खड़े कर देंगे। ये सब केवल डराने की बातें नही हैं, किसी विधवा पेंशनधारी या अन्य कैश ट्रांसफर लाभार्थी के रोज के अनुभव हैं।
कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि यह सब बदलाव से पैदा घबराहट को दर्शाता है और इस विरोध को जायज कारण नहीं माना जा सकता। पर बदलाव सभी के लिए, शहरी-शिक्षितों के लिए भी, असुविधा पैदा करता है। आजकल एलपीजी सब्सिडी के लिए जो प्रक्रिया चली है, उससे लोगों को परेशानी की काफी खबरें आ रही हैं। जब तक नई व्यवस्था पूरी तरह से नहीं बैठ जाती, उस दौरान की समस्याओं से झूझने की क्षमता गरीबों में शायद न हो। एक महीने की एलपीजी सब्सीडी जमा न होने पर सिलेंडर खरीद पाने की क्षमता शायद सब में न हो।
केरोसीन के लिए ऐसा ही प्रयोग अलवर के कोटकासिम में पिछली सरकार ने किया। हुआ यह कि लोगों के खाते खुले नहीं, जिनके खुले थे, उसमें भी कइयों में पैसा नहीं आया, लोगों ने मजबूरन केरोसीन खरीदना छोड़ दिया। केरोसीन खरीद में 80 प्रतिशत गिरावट आई। सरकार ने इसका प्रचार यह किया कि 80 प्रतिशत चोरी हो रही थी, वह कैश ट्रांसफर करने से रुक गई!
राशन वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार है, पर कई राज्यों के प्रयासों से (जैसे कंप्यूटरीकरण, कमीशन बढ़ाने, गांव तक अनाज पहुंचाने,ताकि रास्ते में कालाबाजारी रुक सके) सुधार हुआ है। वैसे भी भ्रष्टाचार का सही जवाब है उससे लड़ना, न कि मुंह मोड़कर कहना कि योजना बंद कर दी जाए।
खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश की दो-तिहाई जनसंख्या को लाभ होगा, 14 करोड़ बच्चों को मध्याह्न भोजन मिलेगा, आंगनवाड़ी के बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचायी जा सकेंगी। कानून में मातृत्व लाभ का भी प्रावधान है। इस सब की कीमत? देश के जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत। वहीं ज्यादातर अमीरों को लाभान्वित करनेवाली कर माफी का देश के जीडीपी में हिस्सा चार प्रतिशत है। जिस देश की सबसे बड़ी संपत्ति उसके लोग हैं, क्या वहां लोगों पर इतना भी खर्च नहीं कर सकते?
लेकिन राज्यों के इन प्रयासों से अछूते, ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविकताओं से अपरिचित, सरकारी गल्ले पर आधारित लोगों की जरूरतों से अनजान, दिल्ली में बैठे आर्थिक और अन्य विशेषज्ञों ने कैश ट्रांसफर को ऐसी जादुई छड़ी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे भ्रष्टाचार और खाद्य असुरक्षा से निपटारा मिल सकेगा।
इस सुझाव में दम है या नहीं, इसे समझने के लिए हमने 2011 में नौ राज्यों के 1,500 ग्रामीण राशन कार्डधारियों का सर्वे किया और उनसे पूछा कि अनाज और नकद में से वे किसे पसंद करेंगे और क्यों। इनमें से दो-तिहाई ने अनाज पाना पसंद किया।
पैसा होने पर भी अनाज की चिंता क्यों थी उन्हें? ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार व्यवस्था तो कमजोर है ही, ग्रामीणों की दूसरी चिंता महंगाई से जुड़ी हुई थी। अनाज के दाम स्थिर नहीं रहते। जब महंगाई बढ़ेगी, तो क्या सरकार पैसा बढ़ाएगी? क्या सरकार के पास कीमतों की पर्याप्त जानकारी रहेगी? नकद राशि महंगाई के हिसाब से क्या तुरंत बढ़ेगी? यदि स्थानीय दुकानदार मुनाफा कमाने की नीयत से, जान-बूझकर कमी पैदा करें या कीमतें बढ़ाएं, तो सरकार कुछ करेगी या कर पाएगी? एक उत्तरदाता ने कहा, 'हमें पता है सरकार पैसे तभी बढ़ाएगी, जब चुनाव होंगे, उसके अलावा नहीं बढ़ाएगी!'
लोगों के लिए नकदी आकर्षक विकल्प इसलिए भी नहीं थी, क्योंकि बैंक खाता हो, तो भी न सिर्फ बैंक और पोस्ट ऑफिस दूर है,बल्कि बाजार भी हमेशा पास नहीं होते। आने-जाने के साधन कम हैं, खर्च अलग से होगा, समय की बर्बादी, बैंकों में भीड़, दुर्व्यवहार आदि। राशन की जगह पर पैसा देने से एक और दिक्कत आ सकती है। घर में नकद आने पर खर्च पर सबकी अलग राय हो सकती है, जिससे तनाव पैदा हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में किसी ने कहा कि आज अनाज की खरीद, भंडारण, ट्रांसपोर्ट, सब सरकार की जिम्मेदारी है। अगर पैसा दिया गया, तो यह सब तनाव वाले काम और खर्च गरीबों के माथे मढ़ दिए जाएंगे। उनके असुरक्षित जीवन में और अनिश्चितता पैदा करेंगे। पैसा नहीं आया, तो बैंक हाथ खड़े कर देंगे। ये सब केवल डराने की बातें नही हैं, किसी विधवा पेंशनधारी या अन्य कैश ट्रांसफर लाभार्थी के रोज के अनुभव हैं।
कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि यह सब बदलाव से पैदा घबराहट को दर्शाता है और इस विरोध को जायज कारण नहीं माना जा सकता। पर बदलाव सभी के लिए, शहरी-शिक्षितों के लिए भी, असुविधा पैदा करता है। आजकल एलपीजी सब्सिडी के लिए जो प्रक्रिया चली है, उससे लोगों को परेशानी की काफी खबरें आ रही हैं। जब तक नई व्यवस्था पूरी तरह से नहीं बैठ जाती, उस दौरान की समस्याओं से झूझने की क्षमता गरीबों में शायद न हो। एक महीने की एलपीजी सब्सीडी जमा न होने पर सिलेंडर खरीद पाने की क्षमता शायद सब में न हो।
केरोसीन के लिए ऐसा ही प्रयोग अलवर के कोटकासिम में पिछली सरकार ने किया। हुआ यह कि लोगों के खाते खुले नहीं, जिनके खुले थे, उसमें भी कइयों में पैसा नहीं आया, लोगों ने मजबूरन केरोसीन खरीदना छोड़ दिया। केरोसीन खरीद में 80 प्रतिशत गिरावट आई। सरकार ने इसका प्रचार यह किया कि 80 प्रतिशत चोरी हो रही थी, वह कैश ट्रांसफर करने से रुक गई!
राशन वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार है, पर कई राज्यों के प्रयासों से (जैसे कंप्यूटरीकरण, कमीशन बढ़ाने, गांव तक अनाज पहुंचाने,ताकि रास्ते में कालाबाजारी रुक सके) सुधार हुआ है। वैसे भी भ्रष्टाचार का सही जवाब है उससे लड़ना, न कि मुंह मोड़कर कहना कि योजना बंद कर दी जाए।
खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश की दो-तिहाई जनसंख्या को लाभ होगा, 14 करोड़ बच्चों को मध्याह्न भोजन मिलेगा, आंगनवाड़ी के बच्चों को पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचायी जा सकेंगी। कानून में मातृत्व लाभ का भी प्रावधान है। इस सब की कीमत? देश के जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत। वहीं ज्यादातर अमीरों को लाभान्वित करनेवाली कर माफी का देश के जीडीपी में हिस्सा चार प्रतिशत है। जिस देश की सबसे बड़ी संपत्ति उसके लोग हैं, क्या वहां लोगों पर इतना भी खर्च नहीं कर सकते?
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