Thursday, October 6, 2016

* जांच से बचने के लिए आदिवासी बालकों की मृत्यु में भी गरिमा नहीं रखी गयी pucl

** प्रेस विज्ञप्ति

CHHATTISGARH LOK SWATANTRYA SANGATHAN
 (PUCL chhattisgarh )
 
दिनांक 06.10.2016
**  जांच से बचने के लिए आदिवासी बालकों की मृत्यु में भी गरिमा नहीं रखी गयी


पिछले कुछ दिनों से बस्तर में तमाम छात्र-छात्राएं 24 सितम्बर को हुई दो बालकों की हत्या को लेकर कांकेर कोंडागांव, भानुप्रत्तापुर आदि कस्बों में आन्दोलनरत है. छात्र संगठन NSUI ने भी जगदलपुर, सुकमा, रायपुर, जांजगीर में रैलियां निकलकर ज्ञापन सौपें और IG कल्लूरी की बर्खास्तगी की मांग की है.

अब यह स्थापित तथ्य हो गया है कि सोनाकू राम आ. पायको, उम्र 16 वर्ष और बिजनो आ. नादोगी, उम्र 18 वर्ष, जो दोनों ही ग्राम गारदा, पुलिस थाना बारसूर, जिला दंतेवाडा के रहवासी थे; 23 सितम्बर को पुलिस थाना बुरगुम के ग्राम सौनगेल में अपने रिश्तेदार पकालो के यहाँ जानकारी देने गए थे कि उनके परिवार में एक 6 साल के बच्चे की मृत्यु हो गयी है.
 शाम होने के कारण वे वहीँ रात रुक गए थे और अगली सुबह 4-5 बजे, उनके रिश्तेदारों के आँखों के सामने, सुरक्षा बलों के लोग उन्हें पकड़ कर घसीटते हुए ले गए थे. बिजनू अपना आधार कार्ड दिखाने का विफल प्रयास करता रहा. दोनों को मार डाला गया, हालाँकि पुलिस का कथन यह है कि घंटों तक घने जंगलों में मुठभेड़ के बाद ये “खूंखार नक्सली” मारे गए. सोनाकू, पोर्टा केबिन स्कूल एटामेटा से, हाल ही 8वी कक्षा पास हुआ था, और आजकल खेती में हाथ बंटाता था.

27 सितम्बर को, जब दोनों बालकों के परिजन, उनके समस्त कागजात लेकर, 200-250 अन्य गाँव वालों के साथ बारसूर पुलिस थाने पर जीरो पर प्रथम सूचना दर्ज करने की मांग के लिए धरना दे रहे थे, तब बहन सोनी सोढ़ी और बेला भाटिया भी वहा मौजूद थी.

 सोनी जी का प्रत्यक्ष बयान है कि जब अंततः बड़ी मुश्किल से दोनों बालकों के पूरी तरह ढके हुए लाश मिले और काफी बहस के बाद उनके शरीर से कपडा हटाया गया तो लोग यह देखकर हैरान थे कि दोनों लाशों पर कीड़े बिलबिला रहे थे. शरीर पर कहाँ चोट आई थी या गोली लगी थी यह बताना भी मुश्किल था, हालाँकि दोनों के गले रेते हुए थे. लाशों का इतने कम समय में इस हद तक सड़ जाना अस्वाभाविक है.

छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन गंभीर आशंका व्यक्त करता है कि, जैसा इजराइल और आजकल उत्तर-पूर्व में काफी समय से सामान्य रीति हो गयी है, ऐसा तो नहीं कि सुरक्षा बलों द्वारा, कोई कीड़ा युक्त रसायन डालकर लाशों को जल्द सड़ाने का प्रयास किया जा रहा हो, ताकि पोस्ट मोरटम करना भी संभव न हो, और कोई सबूत भी जाँच के लिए शेष न रहे. ऐसा करने का कारण यह भी हो सकता है कि हाल में माननीय उच्च न्यायलय के आदेश पर ग्राम गोम्पाड़ की मडकम हिडमे की लाश का दोबारा पोस्टमोरटम किया गया था. लाश के साथ दुर्व्यवहार मानवीय गरिमा के पूर्णतः खिलाफ है और अंतर –राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानव अधिकार मानदंडों का घोर उल्लंघन है.

पुलिस का कथन है कि इस वर्ष में 100 से अधिक नक्सली मार डाले गए हैं, परन्तु यह भी दिख रहा है कि दर्ज़नों मामलों में परिजन और ग्रामीण सबूत सहित उसका खंडन कर रहे हैं, और आदिवासी संगठन विरोध में उतर रहे हैं. दंडाधिकारी जांच औपचारिकता मात्र रह गया है.

 अतः हम मांग करते है कि पुलिस कारवाइयों में होने वाली सभी मौतों की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की जाये जिसमे परिजनों, ग्रामवासियों और प्रत्यक्षदर्शियों को निर्भीक होकर अपनी बात रखने की परिस्थिति रहे. साक्ष्य नष्ट करने के कृत्यों पर सख्त कारवाही की जाये. बस्तर के आदिवासियों को भी भारतीय संविधान के अनुसार हर मानव को प्राप्त मानवीय गरिमा का सम्पूर्ण अधिकार मिले।


डॉ लाखन सिंह
अध्यक्ष              

एडवोकेट सुधा भारद्वाज
महासचिव

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