Saturday, October 15, 2016

बस्तर के बारे में सोचना भी अपराध है'

'बस्तर के बारे में सोचना भी अपराध है'



राजकुमार सोनी
CatchHindi | 15 October 2016,



माओवाद प्रभावित बस्तर के दौरे पर दो युवा लेखकों को जगदलपुर कोतवाली पुलिस ने पांच घंटे तक हिरासत में रखा. सोशल मीडिया पर इस कार्रवाई की ख़बर फ़ैलने के बाद धमकी देकर दोनों युवा लेखकों को छोड़ा गया.


जगदलपुर कोतवाली पुलिस ने शुक्रवार की दोपहर मुंबई और बेंगलुरू के दो युवा लेखकों को पांच घंटे तक थाने में बंधक बनाकर रखा. इन लेखकों से बस्तर आने की वजह पूछी कही और पांच घंटे बाद यह कहकर छोड़ा गया कि वे बस्तर पर अपनी स्याही बर्बाद ना करे.

कैच न्यूज़ से बातचीत में दोनों लेखकों रमणीक सिंह और शिवम वर्मा ने बताया कि वे जगदलपुर जेल में 2007 से बंद आदिवासी महिला निर्मला वर्मा का इंटरव्यू करने पहुंचे थे.

 बेंगलुरू के रमणीक सिंह और मुंबई के शिवम शर्मा शुक्रवार की सुबह नौ बजे जगदलपुर जेल पहुंचे थे. जेल के बाहर मौजूद प्रहरी ने दोनों से उनका पहचान पत्र मांगा. प्रहरी ने कहा कि किसी भी बंदी से मुलाकात के लिए आईडी फ्रूफ देकर रजिस्ट्रेशन करवाना ज़रूरी है.

दोनों लेखकों को जेल अधीक्षक अमित शांडिल्य की ओर से मुलाकात की इजाज़त भी मिल गई, लेकिन ठीक 12 बजे जब वे निर्मला से मुलाकात के लिए जेल परिसर में खड़े थे तभी भारी पुलिस बल ने उन्हें हिरासत में ले लिया. इसके बाद जगदलपुर कोतवाली पुलिस दोनों लेखकों को थाने ले आई.

लेखक शहरी नेटवर्क का हिस्सा

थाने में घंटों कैद लेखक कार्रवाई की वजह पूछते तो पुलिसवाले उन्हें बस्तर की कहानी सुनाने लगते. लेखकों के मुताबिक पुलिस ने उनसे कहा कि जेल में बंद निर्मला नाम की जिस महिला का वे इंटरव्यू करने आए हैं, वह एक हार्डकोर माओवादी रही है. उस पर सैकड़ों धाराओं में मुक़दमे दर्ज हैं लेकिन फ़िलहाल वह लगभग सभी मामलों में बरी हो गई हैं. कुछ मामले अभी भी चल रहे हैं.

जगदलपुर पुलिस ने इनसे कहा कि निर्मला भले ज़्यादातर मामलों से बरी हो गई हैं लेकिन फिर भी वह हैं तो माओवादी ही.  इसपर रमणीक और शिवम ने कहा कि जिस महिला को अदालत बेगुनाह मानकर बरी कर रही हैं तो उसके इंटरव्यू में क्या दिक्कत है?

जवाब में एक पुलिसकर्मी ने समझाया कि जो कोई भी माओवादियों के बारे में लिखता या सोचता है, हम उसे माओवादी मानते हैं. पुलिस ने लेखकों को माओवादियों के शहरी नेटवर्क का हिस्सा बताया.

इस बीच सोशल मीडिया पर दोनों लेखकों पर हुई कार्रवाई आग की तरह फैलने लगी. पुलिस को जब इसकी ख़बर मिली तो लेखकों को यह धौंसपट्टी देते हुए रिहा कर दिया गया कि बस्तर के बारे में लिखना तो दूर सोचना भी अपराध है. दोनों लेखक फिलहाल रिहा कर दिए गए हैं.

कैच न्यूज़ से बातचीत में दोनों लेखकों ने कहा कि वे पुलिस प्रताडऩा के खिलाफ कानूनी कदम उठाने की सोच रहे हैं क्योंकि लेखक तो दूर एक नागरिक की हैसियत से भी उनके अधिकारों को ठेस पहुंची है.

बस्तर में कार्रवाई कोई नई बात नहीं

बस्तर में लेखकों को हिरासत में लिया जाना कोई अनोखी घटना नहीं है. अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने के कई मामले पहले भी सामने आते रहे हैं. पत्रकार मालिनी सुब्रहमण्यिम, दीपक जायसवाल, प्रभात सिंह, सोमारू नाग पुलिसिया ज्यादती के शिकार हो चुके हैं. पत्रकार संतोष यादव तो अब तक जेल की सजा काट रहे हैं. उनकी गिरफ्तारी के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है.

माओवादियों के समर्पण के नाम पर आदिवासियों को फंसाए जाने के खिलाफ मुखर रही आदिवासी नेता सोनी सोरी के गुप्तांग में पत्थर तक डाले गए. उन पर केमिकल हमला भी करवाया गया. दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद के बस्तर दौरे पर पर भी पुलिस की निगाहें टेढ़ी रहीं.

इन दो महिला प्रोफेसरों के बस्तर दौरे के बाद केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी खासी रुचि दिखाई है. अभी हाल के दिनों में जब सोनी सोरी की अगुवाई में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गोमपाड़ तक तिरंगा यात्रा निकाली तो कोंटा और मुरलीगुड़ा के सुरक्षा कैंपों में तैनात सुरक्षाकर्मियों ने पदयात्रियों के सीने पर बंदूकें तानकर जांच-पड़ताल की और उनके कपड़े भी उतारे.

दो लेखकों के साथ पुलिसिया बर्ताव के बाद तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. पीयूसीएल की प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष लाखन सिंह का कहना है कि सरकार ने बस्तर को संभालने को ठेका पुलिस को सौंप दिया है, सो पुलिस अपने ढंग से बस्तर और वहां के रहवासियों को ट्रीट कर रही है. पुलिस की नजर में बस्तर का हर आदिवासी माओवादी है जबकि लेखक,सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता माओवादी समर्थक.
***

No comments:

Post a Comment