Sunday, October 23, 2016

सवाल भरोसे का ? राजकुमार सोनी की गंभीर टिप्पणी

सवाल भरोसे का ?
राजकुमार सोनी की गंभीर टिप्पणी
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माओवाद के खात्मे के लिए खुद को हीरो समझने वाले पुलिस अधिकारी जो कुछ भी कह रहे हैं उस पर कोई भी भरोसा नहीं कर रहा है। यह भरोसा इसलिए भी नहीं हो रहा हैं क्योंकि अब यह जान चुके है कि बस्तर में माओवाद के खात्मे पर क्या कुछ हो रहा हैं। हर रोज ताबडतोड ढंग से चल रहे फर्जी समर्पण और मुठभेड़ की घटनाओं ने पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया हैं।

जरा पुलिस अफसर महोदय की कुछ बातों को तर्क के स्तर पर तौलते हैं।

अफसर का कहना हैं उन्हें मानव अधिकार आयोग ने निर्देश दिया था कि ताडमेटला जाकर जांच करो। अव्वल तो मानव अधिकार आयोग निर्देश नहीं सुझाव देता हैं। यदि आयोग का निर्देश था भी तो पुलिस का पहला काम नागरिकों की सुरक्षा का ही हैं। अफसर से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि पुलिस के आपरेशन के दौरान आदिवासियों की मौत क्यों हुई? आदिवासी महिलाओं से बलात्कार क्यों किया गया? क्या यह सब करने का निर्देश भी मानव अधिकार आयोग ने दिया था।

अफसर का कहना हैं कि झोपड़ियों में आग की वजह गर्मी थी। बमबारी हुई तो आग लग गई। अफसर से यह भी पूछा जाना चाहिए कि भाई फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने यह झूठ क्यों बोला गया कि आग नक्सलियों ने लगाई थी? जो हकीकत थी वह पहले ही बता देते तो क्या नानी मर जाती?

-अफसर का कहना हैं कि यदि उनके जाने से माओवाद खत्म हो जाएगा तो वे 24 घंटे के अंदर बस्तर छोड़ देंगे। अफसर की यह बात उनके दंभ को प्रदर्शित करती हैं। वैसे खुद को काबिल मानने में कोई बुराई नहीं हैं लेकिन आत्ममुग्धता एक बीमारी हैं। यह बीमारी जिस किसी को भी हो जाती हैं फिर वह सही-गलत का आकंलन भूल जाता हैं। सच तो यह हैं कि माओवाद का खात्मा किसी एक व्यक्ति के बूते की बात नहीं हैं। माओवाद के खात्मे के लिए सरकार को सामने रखने के बजाय खुद को सामने रखने से यह साफ होता हैं कि अफसर का अपना कोई निजी एजेंडा हैं जो फिलहाल गुप्त हैं और सरकार को भी दिखाई नहीं दे रहा हैं।

अफसर को यह भी याद रखना चाहिए कि जब भी हम किसी निर्दोष की हत्या करते हैं तो हम उस घर से एक नहीं चार माओवादी को पैदा करते हैं।

अफसर ने अपनी गिरफ्तारी की माँग पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा हैं कि मैं कुछ नेताओं को बताना चाहता हूं कि कायर नहीं हूं। जोश- जोश में अफसर ने यह भी स्वीकार कर ही लिया कि ताडमेटला/ मोरपल्ली और तिम्मापुर की घटना के लिए वे जिम्मेदार हैं।

-अफसर की कल ली गई प्रेस कान्फ्रेस के बाद एक अहम सवाल यह भी उठ रहा हैं कि क्या मानवाधिकार आयोग ने दंतेवाडा के कलक्टर को ताडमेटला जाने से रोका था। ताडमेटला में घरों को जला देने की सूचना सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने तात्कालिक कलक्टर को दी थी। कलक्टर राहत सामग्री लेकर गाँव की ओर निकले तो उनके सीने में भी बंदूक टिका दी गई कि बस आगे नहीं जा सकते?

- स्वामी अग्निवेश गाँव वालों से मिलना चाहते थे। उनकी गाड़ी में पथराव किया गया। उनकी पगड़ी गिरा दी गई। क्या इसके लिए भी मानवाधिकार आयोग का निर्देश था?

- अब भी पत्रकार/ सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता ताडमेटला जाकर गाँव वालों से बात करना चाहते हैं। उन्हें जाने नहीं दिया जाता हैं। क्या मानवाधिकार आयोग ने निर्देश दिया हैं ?

-घटना की जांच के लिए सीबीआई के अफसर भी ताड़मेटला जाना चाहते थे। सीबीआई के अफसरों के साथ सलवा- जुडूम के चिरकुट एसपीओ ने जो कुछ किया वह भी अखबार की सुर्खिया बनीं थीं।

- सीबीआई केंद्र की एजेंसी हैं और केंद्र में भाजपा की सरकार हैं। अब अफसर की पत्रवार्ता के बाद यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ कि क्या केंद्र की भाजपा सरकार सीबीआई से गलत काम करवा रही हैं। अफसर की पत्रवार्ता ने तो केंद्र
 पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं?
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राजकुमार सोनी

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