काला धन रोकने में नहीं मिलेगी मदद
** प्रभात पटनायक, वरिष्ठ अर्थशास्त्री
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काला धन वह नहीं है, जिसे हम बक्सों में, या तकिए के कवर में या जमीन के अंदर गाडक़र रखते हैं. काला धन कमाने वाले लोग भी इसे बढ़ाना चाहते हैं और इस पैसे को बाजार में या प्रचलन में लाया जाता है.
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मोदी सरकार ने जो किया है, वह आधुनिक भारत के इतिहास मेें पहले कभी नहीं हुआ. यहां तक कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी कोई बड़ा फैसला करने के पहले आम लोगों को होने वाली दिक्कतों का ध्यान रखा जाता था. काली कमाई को रोकने की दलील देकर लिए गए मोदी सरकार के इस फैसले से आम आदमी को बहुत ज्यादा परेशानी से जूझना पड़ रहा है. जाली नोटों को प्रचलन से बाहर करने की दलील भी छपाई तकनीक से जुड़ी .
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार रात 8 बजे राष्ट्रीय टेलीविजन पर घोषणा की कि 8 नवंबर को आधी रात के बाद से 500 और 8000 के नोट अवैध हो जाएंगे. उस वक्त सरकार की समय सीमा खत्म होने में सिर्फ 4 घंटे बाकी बचे थे. इसे न्यायोचित ठहराने के यह दलील दी गई कि यह काले धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है. इसके अलावा यह भी कहा गया कि इससे आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे नकली नोटों को भी प्रचलन से बाहर करने में मदद मिलेगी. सरकार के कुछ उत्साही समर्थक तो इसे आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक कहने से भी नहीं चूके.
नकली नोटों के मुद्दे पर हम कुछ देर बाद आएंगे. पहले बात करेंगे काले धन के बारे के सरकार के दावे की, जिसका राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक ने समर्थन कर दिया. सरकार अपनी इस दलील में यह बताने की कोशिश की थी 500 और 1000 रुपए के नोटों को अवैध करार दिए जाने से काले धन को रोकने में काफी मदद मिलेगी. यह बात थोड़ी बचकानी लगती है, क्योंकि तरह की दलील देने के पहले हम को यह समझना होगा कि काला धन होता क्या है? काला धन वह नहीं है, जिसे हम बक्सों में, या तकिए के कवर में या जमीन के अंदर गाडक़र रखते हैं. कुछ लोगों का यही मानना है कि और 500, 1000 के नोटों को अवैध घोषित कर दिए जाने के बाद लोग भारी मात्रा में ऐसे पुराने नोट लेकर बैंक और डाकघरों में बदलवाने के लिए पहुंचेंगे. और इस तरह की किसी संदिग्ध गतिविधि को देखते ही बैंक आयकर या दूसरी एेसे विभागों को सूचना दे देंगे, जो टैक्स चोरी के मामलों को देखते हैं. कर अधिकारी एेसे अपराधियों को गिरफ्तार कर पाएंगे, जो कालेधन लेकर आ रहे हैं. इससे काली कमाई हमें आई और भविष्य में इसे रोकने में भी मदद मिलेगी.
हम बात करेंगे सरकार की दलील के दूसरे हिस्से की. अगर हम इस बात को मान भी लें कि काली कमाई ढेर सारे नोटों की शक्ल में है, तो भी इससे बहुत ज्यादा लाभ होने की उम्मीद नहीं है. उदाहरण के लिए अगर हम मान लें कि किसी व्यक्ति के पास 20 करोड़ रुपए काला धन के रूप में है, जो कि 500 और 1000 रुपए के नोटों की शक्ल में है. ऐसी सूरत में भी यह बात तो तय है कि वह 20 करोड़ रुपए एक साथ लेकर किसी बैंक में बदलवाने तो नहीं जाएगा. पुराने नोटों को नए नोटों से इस तरह बदलने की अनुमति भी नहीं मिलेगी. इन हालात में वह अपने करीबी या पहचान के लोगों को थोड़ी सी रकम लेकर बैंक भेजेगा. वैसे भी सरकार ने पुराने नोटों को बदलने के लिए 30 दिसंबर तक का वक्त दिया है. शायद इतनी सारी कवायद की जरूरत ही नहीं पड़े, क्योंकि तब तक एेसा कोई न कोई सिस्टम तलाश लिया जाएगा, जिसमें पुराने नोटों के बदले नए नोट हासिल करने का रास्ता बना लिया जाएगा. कई टीवी चैनलों में इस तरह की बातें विशेषज्ञों ने करना भी चालू कर दिया है. अगर ऐसा होता है, तो पांच और हजार रुपए के पुराने नोटों को रद्द करके कालेधन को सामने लाने की केंद्र सरकार की मंशा शायद पूरी नहीं होगी.
काली कमाई को लेकर हमारी धारणा भी गलत है. आमतौर पर हम यह मानते हैं कि काली कमाई नोटों के ढेर की शक्ल में होती है. जिसे हम सरकार या टैक्स एजेंसी की नजरों से छिपाकर बैंक की जगह कहीं और रखते हैं. वास्तव में जब हम काले धन की बात करते हैं, तो इसमें वह सारी गतिविधियां आती हैं, जिनको हम कानूनी तौर पर गलत मानते हैं. इसमें तस्करी, ड्रग का कारोबार और आतंकियों को हथियारों की सप्लाई भी शामिल है. यही नहीं कानूनी सीमा से ज्यादा किसी चीज को रखना भी ब्लैक एक्टिविटी में शामिल होता है. उदाहरण के लिए अगर हम किसी खदान से 100 टन खनिज निकालते हैं, पर 80 टन को ही घोषित करते हैं, तो हमारे पास काली कमाई आ जाती है. इसी तरह अगर हम सौ डॉलर कि किसी चीज का आयात करते हैं और सिर्फ 80 डॉलर की दस्तावेजों में घोषणा करने के बाद 20 डॉलर को स्विस बैंक में जमा करते देते हैं, तो वह एक तरह से काली कमाई का स्वरूप है. इसके अलावा हवाला के माध्यम से रुपए को विदेशी करंसी में बदल कर उसे विदेश में रखना भी एक तरह से काली कमाई जुटाना है. संक्षेप में काली कमाई का मतलब वह सारी गतिविधियां हैं, जिसे हम अघोषित रूप से करते हैं
काली कमाई का मतलब रुपए का संग्रहण नहीं बल्कि उस को गति देना है. इसे हमें समझना होगा कि वाइट एक्टिविटीज की तरह ब्लैक एक्टिविटी भी ज्यादा से ज्यादा कमाई करने के लिए होती है. साफ है कि इसमें पैसों को जमा करके रखने से कोई लाभ नहीं होता. जानेमाने चिंतक कार्ल माक्र्स में भी इस बात का जिक्र किया था कि लाभ पैसे को जमा करने से नहीं बल्कि उसे प्रचलन में या सरकुलेशन में लाने से होता है. यह बात हम को समझनी होगी कि ब्लैक एक्टिविटीज में शामिल लोग पूंजीवादी हैं. किसी भी कारोबारी गतिविधि में रणनीति या सोच के तहत पैसा कम और ज्यादा अवधि लिए रुका जाता है. यह धारणा भी गलत है कि काली कमाई को रोककर केवल वाइट मनी सर्कुलेशन में लाई जाती है. यही वजह है कि काली कमाई का पता लगाने के लिए बहुत ईमानदार और गंभीर कोशिशों की जरूरत होती है.
कंप्यूटर आने से काफी पहले यह माना जाता था कि ब्रिटिश इंटरनल रवेन्यू सर्विस के अधिकारी केवल अपनी जांच के आधार पर टैक्स चोरों को पकड़ लेते हैं. यह बात सही है कि भारत की तुलना में ब्रिटेन एक छोटा देश है, लेकिन अगर हम देश के आकार और आबादी के हिसाब से कर प्रबंधन देखने वाले लोगों की टीम को बढ़ाएं, तो कम से कम घरेलू अर्थव्यवस्था में हो रही टैक्स चोरी को कहीं बेहतर तरीके से पकड़ा ही जा सकता है. कुछ लोग मानते हैं कि काले धन का एक बड़ा हिस्सा स्विस बैंक या विदेशी बैंकों में है. चुनाव के पहले खुद नरेंद्र मोदी ने विदेशी बैंकों में जमा काली कमाई को भारत लाने की बात की थी. उनका कहना था कि बहुत बड़ी मात्रा में काला धन विदेशों में जमा है. अगर इसे मान भी लिया जाए, तो सवाल यह है कि इससे 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को रद्द करने के सरकार के फैसले से क्या असर पड़ेगा, जिसने आम आदमी को परेशान किया.
यह पहली बार नहीं है जब भारत की अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों को वापस लेने का फैसला हुआ है. जनवरी 1946 में भी 1,000 और 10,000 के नोटों को अवैध घोषित किया गया था. उसके बाद 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार में भी 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को 16 जनवरी की मध्यरात्रि से रद्द करने का निर्णय लिया था. 1946 के फैसले को छोड़ दे दिया जाए, तो 1978 में भी पुराने नोटों को रद्द करने के सरकार के फैसले से आम लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई थी. 1978 की बात की जाए, तो उन दिनों 1000 रुपए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. आम लोग तो कई बार इस नोट की शकल ही नहीं देख पाते थे. देसाई सरकार के कदम से आम आदमी को परेशानी नहीं हुई, लेकिन इसके बावजूद काले धन इससे नहीं रुका. इससे ठीक उलट काली कमाई को रोकने की दलील देकर लिए गए मोदी सरकार के इस फैसले से आम आदमी को बहुत ज्यादा परेशानी से जूझना पड़ रहा है.
कुछ लोग इसे कैशलेस इकानॉमी से जोड़ सकते हैं. पर फिलहाल यह दूर की कौड़ी लगती है. यह सोच एेसे लोगों की है, जिनको क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड हासिल करने या बैंक खाता खोलने में आम आदमी को होने वाली दिक्कतों के बारे में पता ही नहीं है. सरकार यह दलील भी दे रही है कि इससे आतंकियों के पास मौजूद जाली नोटों को रोकने में मदद मिलेगी. यह तर्क छपाई की तकनीक से जुड़ा हुआ है. यह दावा इस बात पर आधारित है कि नोटों की छपाई की नई टेक्नालॉजी की नकल नहीं की जा सकती. सरकार के इस तर्क को हम मान लेते हैं, तो एेसा नहीं है कि इस तथ्य का पता अचानक सरकार को लगा. 8 नवंबर को जिस तरह के हालात बनें, उसे संभाला जा सकता था.
मोदी सरकार ने जो किया है, वह आधुनिक भारत के इतिहास मेें पहले कभी नहीं हुआ. यहां तक कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी कोई बड़ा फैसला करने के पहले आम लोगों को होने वाली दिक्कतों का ध्यान रखा जाता था. बड़े नोटों को बदलने का फैसला भी मोदी सरकार के उन फैसलों जैसा ही, जिनको एक तबके द्वारा अघोषित आपातकाल के फैसलों तरह देखा जा रहा है.
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प्रभात पटनायक, वरिष्ठ अर्थशास्त्री
** प्रभात पटनायक, वरिष्ठ अर्थशास्त्री
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काला धन वह नहीं है, जिसे हम बक्सों में, या तकिए के कवर में या जमीन के अंदर गाडक़र रखते हैं. काला धन कमाने वाले लोग भी इसे बढ़ाना चाहते हैं और इस पैसे को बाजार में या प्रचलन में लाया जाता है.
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मोदी सरकार ने जो किया है, वह आधुनिक भारत के इतिहास मेें पहले कभी नहीं हुआ. यहां तक कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी कोई बड़ा फैसला करने के पहले आम लोगों को होने वाली दिक्कतों का ध्यान रखा जाता था. काली कमाई को रोकने की दलील देकर लिए गए मोदी सरकार के इस फैसले से आम आदमी को बहुत ज्यादा परेशानी से जूझना पड़ रहा है. जाली नोटों को प्रचलन से बाहर करने की दलील भी छपाई तकनीक से जुड़ी .
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार रात 8 बजे राष्ट्रीय टेलीविजन पर घोषणा की कि 8 नवंबर को आधी रात के बाद से 500 और 8000 के नोट अवैध हो जाएंगे. उस वक्त सरकार की समय सीमा खत्म होने में सिर्फ 4 घंटे बाकी बचे थे. इसे न्यायोचित ठहराने के यह दलील दी गई कि यह काले धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक है. इसके अलावा यह भी कहा गया कि इससे आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे नकली नोटों को भी प्रचलन से बाहर करने में मदद मिलेगी. सरकार के कुछ उत्साही समर्थक तो इसे आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक कहने से भी नहीं चूके.
नकली नोटों के मुद्दे पर हम कुछ देर बाद आएंगे. पहले बात करेंगे काले धन के बारे के सरकार के दावे की, जिसका राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक ने समर्थन कर दिया. सरकार अपनी इस दलील में यह बताने की कोशिश की थी 500 और 1000 रुपए के नोटों को अवैध करार दिए जाने से काले धन को रोकने में काफी मदद मिलेगी. यह बात थोड़ी बचकानी लगती है, क्योंकि तरह की दलील देने के पहले हम को यह समझना होगा कि काला धन होता क्या है? काला धन वह नहीं है, जिसे हम बक्सों में, या तकिए के कवर में या जमीन के अंदर गाडक़र रखते हैं. कुछ लोगों का यही मानना है कि और 500, 1000 के नोटों को अवैध घोषित कर दिए जाने के बाद लोग भारी मात्रा में ऐसे पुराने नोट लेकर बैंक और डाकघरों में बदलवाने के लिए पहुंचेंगे. और इस तरह की किसी संदिग्ध गतिविधि को देखते ही बैंक आयकर या दूसरी एेसे विभागों को सूचना दे देंगे, जो टैक्स चोरी के मामलों को देखते हैं. कर अधिकारी एेसे अपराधियों को गिरफ्तार कर पाएंगे, जो कालेधन लेकर आ रहे हैं. इससे काली कमाई हमें आई और भविष्य में इसे रोकने में भी मदद मिलेगी.
हम बात करेंगे सरकार की दलील के दूसरे हिस्से की. अगर हम इस बात को मान भी लें कि काली कमाई ढेर सारे नोटों की शक्ल में है, तो भी इससे बहुत ज्यादा लाभ होने की उम्मीद नहीं है. उदाहरण के लिए अगर हम मान लें कि किसी व्यक्ति के पास 20 करोड़ रुपए काला धन के रूप में है, जो कि 500 और 1000 रुपए के नोटों की शक्ल में है. ऐसी सूरत में भी यह बात तो तय है कि वह 20 करोड़ रुपए एक साथ लेकर किसी बैंक में बदलवाने तो नहीं जाएगा. पुराने नोटों को नए नोटों से इस तरह बदलने की अनुमति भी नहीं मिलेगी. इन हालात में वह अपने करीबी या पहचान के लोगों को थोड़ी सी रकम लेकर बैंक भेजेगा. वैसे भी सरकार ने पुराने नोटों को बदलने के लिए 30 दिसंबर तक का वक्त दिया है. शायद इतनी सारी कवायद की जरूरत ही नहीं पड़े, क्योंकि तब तक एेसा कोई न कोई सिस्टम तलाश लिया जाएगा, जिसमें पुराने नोटों के बदले नए नोट हासिल करने का रास्ता बना लिया जाएगा. कई टीवी चैनलों में इस तरह की बातें विशेषज्ञों ने करना भी चालू कर दिया है. अगर ऐसा होता है, तो पांच और हजार रुपए के पुराने नोटों को रद्द करके कालेधन को सामने लाने की केंद्र सरकार की मंशा शायद पूरी नहीं होगी.
काली कमाई को लेकर हमारी धारणा भी गलत है. आमतौर पर हम यह मानते हैं कि काली कमाई नोटों के ढेर की शक्ल में होती है. जिसे हम सरकार या टैक्स एजेंसी की नजरों से छिपाकर बैंक की जगह कहीं और रखते हैं. वास्तव में जब हम काले धन की बात करते हैं, तो इसमें वह सारी गतिविधियां आती हैं, जिनको हम कानूनी तौर पर गलत मानते हैं. इसमें तस्करी, ड्रग का कारोबार और आतंकियों को हथियारों की सप्लाई भी शामिल है. यही नहीं कानूनी सीमा से ज्यादा किसी चीज को रखना भी ब्लैक एक्टिविटी में शामिल होता है. उदाहरण के लिए अगर हम किसी खदान से 100 टन खनिज निकालते हैं, पर 80 टन को ही घोषित करते हैं, तो हमारे पास काली कमाई आ जाती है. इसी तरह अगर हम सौ डॉलर कि किसी चीज का आयात करते हैं और सिर्फ 80 डॉलर की दस्तावेजों में घोषणा करने के बाद 20 डॉलर को स्विस बैंक में जमा करते देते हैं, तो वह एक तरह से काली कमाई का स्वरूप है. इसके अलावा हवाला के माध्यम से रुपए को विदेशी करंसी में बदल कर उसे विदेश में रखना भी एक तरह से काली कमाई जुटाना है. संक्षेप में काली कमाई का मतलब वह सारी गतिविधियां हैं, जिसे हम अघोषित रूप से करते हैं
काली कमाई का मतलब रुपए का संग्रहण नहीं बल्कि उस को गति देना है. इसे हमें समझना होगा कि वाइट एक्टिविटीज की तरह ब्लैक एक्टिविटी भी ज्यादा से ज्यादा कमाई करने के लिए होती है. साफ है कि इसमें पैसों को जमा करके रखने से कोई लाभ नहीं होता. जानेमाने चिंतक कार्ल माक्र्स में भी इस बात का जिक्र किया था कि लाभ पैसे को जमा करने से नहीं बल्कि उसे प्रचलन में या सरकुलेशन में लाने से होता है. यह बात हम को समझनी होगी कि ब्लैक एक्टिविटीज में शामिल लोग पूंजीवादी हैं. किसी भी कारोबारी गतिविधि में रणनीति या सोच के तहत पैसा कम और ज्यादा अवधि लिए रुका जाता है. यह धारणा भी गलत है कि काली कमाई को रोककर केवल वाइट मनी सर्कुलेशन में लाई जाती है. यही वजह है कि काली कमाई का पता लगाने के लिए बहुत ईमानदार और गंभीर कोशिशों की जरूरत होती है.
कंप्यूटर आने से काफी पहले यह माना जाता था कि ब्रिटिश इंटरनल रवेन्यू सर्विस के अधिकारी केवल अपनी जांच के आधार पर टैक्स चोरों को पकड़ लेते हैं. यह बात सही है कि भारत की तुलना में ब्रिटेन एक छोटा देश है, लेकिन अगर हम देश के आकार और आबादी के हिसाब से कर प्रबंधन देखने वाले लोगों की टीम को बढ़ाएं, तो कम से कम घरेलू अर्थव्यवस्था में हो रही टैक्स चोरी को कहीं बेहतर तरीके से पकड़ा ही जा सकता है. कुछ लोग मानते हैं कि काले धन का एक बड़ा हिस्सा स्विस बैंक या विदेशी बैंकों में है. चुनाव के पहले खुद नरेंद्र मोदी ने विदेशी बैंकों में जमा काली कमाई को भारत लाने की बात की थी. उनका कहना था कि बहुत बड़ी मात्रा में काला धन विदेशों में जमा है. अगर इसे मान भी लिया जाए, तो सवाल यह है कि इससे 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को रद्द करने के सरकार के फैसले से क्या असर पड़ेगा, जिसने आम आदमी को परेशान किया.
यह पहली बार नहीं है जब भारत की अर्थव्यवस्था में प्रचलित नोटों को वापस लेने का फैसला हुआ है. जनवरी 1946 में भी 1,000 और 10,000 के नोटों को अवैध घोषित किया गया था. उसके बाद 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार में भी 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को 16 जनवरी की मध्यरात्रि से रद्द करने का निर्णय लिया था. 1946 के फैसले को छोड़ दे दिया जाए, तो 1978 में भी पुराने नोटों को रद्द करने के सरकार के फैसले से आम लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई थी. 1978 की बात की जाए, तो उन दिनों 1000 रुपए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी. आम लोग तो कई बार इस नोट की शकल ही नहीं देख पाते थे. देसाई सरकार के कदम से आम आदमी को परेशानी नहीं हुई, लेकिन इसके बावजूद काले धन इससे नहीं रुका. इससे ठीक उलट काली कमाई को रोकने की दलील देकर लिए गए मोदी सरकार के इस फैसले से आम आदमी को बहुत ज्यादा परेशानी से जूझना पड़ रहा है.
कुछ लोग इसे कैशलेस इकानॉमी से जोड़ सकते हैं. पर फिलहाल यह दूर की कौड़ी लगती है. यह सोच एेसे लोगों की है, जिनको क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड हासिल करने या बैंक खाता खोलने में आम आदमी को होने वाली दिक्कतों के बारे में पता ही नहीं है. सरकार यह दलील भी दे रही है कि इससे आतंकियों के पास मौजूद जाली नोटों को रोकने में मदद मिलेगी. यह तर्क छपाई की तकनीक से जुड़ा हुआ है. यह दावा इस बात पर आधारित है कि नोटों की छपाई की नई टेक्नालॉजी की नकल नहीं की जा सकती. सरकार के इस तर्क को हम मान लेते हैं, तो एेसा नहीं है कि इस तथ्य का पता अचानक सरकार को लगा. 8 नवंबर को जिस तरह के हालात बनें, उसे संभाला जा सकता था.
मोदी सरकार ने जो किया है, वह आधुनिक भारत के इतिहास मेें पहले कभी नहीं हुआ. यहां तक कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी कोई बड़ा फैसला करने के पहले आम लोगों को होने वाली दिक्कतों का ध्यान रखा जाता था. बड़े नोटों को बदलने का फैसला भी मोदी सरकार के उन फैसलों जैसा ही, जिनको एक तबके द्वारा अघोषित आपातकाल के फैसलों तरह देखा जा रहा है.
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