Sunday, November 27, 2016

काले धन के मूल स्रोतों पर प्रहार करने के बजाये नोटबंदी के जरिये मोदी सरकार ने देश की आम जनता के खिलाफ युद्ध ही छेड़ दिया है.

वामपंथी-धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की पत्रकार-वार्ता
 में जारी वक्तव्य

छत्तीसगढ़ की 6 वामपंथी-धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने कहा है कि काले धन के मूल स्रोतों पर प्रहार करने के बजाये नोटबंदी के जरिये मोदी सरकार ने देश की आम जनता के खिलाफ युद्ध ही छेड़ दिया है.
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छत्तीसगढ़ की 6 वामपंथी-धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने कहा है कि काले धन के मूल स्रोतों पर प्रहार करने के बजाये नोटबंदी के जरिये मोदी सरकार ने देश की आम जनता के खिलाफ युद्ध ही छेड़ दिया है. इस ‘तुगलकी’ निर्णय के कारण आम जनजीवन ठप्प है, लोग रोजगार से हाथ धो रहे हैं और अर्थव्यवस्था मंदी में फंस गई है. इसके खिलाफ कल 28 नवम्बर को पूरे प्रदेश में ‘आक्रोश’ व्यक्त करते हुए आंदोलन किया जाएगा. पत्रकार-वार्ता में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मा-ले)-लिबरेशन, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, जनता दल (यू) तथा समाजवादी पार्टी के नेता मौजूद थे. उन्होंने कल रायपुर में जयस्तंभ चौक स्थित स्टेट बैंक मुख्यालय पर प्रदर्शन की घोषणा की.

इन पार्टियों ने कहा कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था लगभग 160 लाख करोड़ रुपयों की है और रिज़र्व बैंक के अनुमानों के अनुसार ही मोटे तौर पर इस जीडीपी का 25% -- लगभग 35-40 लाख करोड़ रूपये हर साल काले धन के रूप में पैदा होता है, जबकि मुद्रा का प्रचलन मात्र 16 लाख करोड़ रुपयों का है. अतः स्पष्ट है कि देश का काला धन केवल मुद्रा में ही नहीं है, बल्कि परिसंपत्तियों के रूप में जमा है. अर्थशास्त्रियों के अनुसार इस प्रचलित मुद्रा का भी केवल 5-6% यानि लगभग 1 लाख करोड़ रूपये का काला धन ही मुद्रा के रूप में संचित है. उन्होंने कहा कि काले धन पर प्रहार के नाम पर 14 लाख करोड़ रूपये मूल्य की मुद्रा को प्रचलन से बाहर करना और देश के 125 करोड़ लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करना, जिसने अभी तक 80 से ज्यादा लोगों की बलि ले ली है, यह बताता है कि इस सरकार को न अर्थव्यवस्था की कोई समझ है और न ही लोगों की तकलीफों की. ऐसी सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है.

इन पार्टियों के नेताओं ने रेखांकित किया कि देशी-विदेशी पूंजीपतियों और कार्पोरेट घरानों ने इस देश के बैंकों के 15 लाख करोड़ रुपयों से ज्यादा हड़प कर लिए हैं, निवेश के नाम पर काला धन ‘मारीशस रुट’ के जरिये आ रहा है, जिस पर कोई टैक्स भी देना नहीं पड़ता, हवाला के जरिये काला धन हमारी अर्थव्यवस्था में प्रवाहमान है, लेकिन काले धन के इन वास्तविक स्रोतों पर मोदी सरकार हमला करने के लिए तैयार नहीं है. वह तो विकीलीक्स, पनामा पेपर्स और स्विस बैंकों द्वारा उजागर ‘कालेधन धारकों’ के खिलाफ भी कोई कार्यवाही करने को तैयार नहीं है. बल्कि वह तो काले धन पर टैक्स लगाकर उसे सफ़ेद करने की छूट-पर-छूट दे रही है. विदेशों में जमा 375 लाख करोड़ रुपयों को देश में लाने और हर परिवार को 15 लाख रूपये बांटने के भाजपा के वादे और दावे की पोल तो पहले ही खुल चुकी है. स्पष्ट है कि भाजपा एक बार फिर से ‘काले धन के खिलाफ लड़ने’ के जुमले को ही आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

उन्होंने कहा कि इस सरकार ने 220330 लाख नोटों को प्रचलन से बाहर किया है और 14 लाख रूपये मूल्य के 500 और 2000 रुपयों के अब लगभग लगभग 178550 लाख नोट छापने के लिए 3 साल से ज्यादा समय लगेगा, क्योंकि हमारी क्षमता औसतन 52000 लाख नोट सालना छापने की ही है. अतः बैंकिंग व्यवस्था जल्द ही ठीक होने के दावे थोथे ही है. तरलता का इतना लंबा संकट हमारी अर्थव्यस्था को एक दीर्घकालीन संकट में धकेल सकता है, वैसे भी अर्थशास्त्री इस वर्ष हमारी जीडीपी वृद्धि दर में 2% गिरावट आने की बात कर करे हैं. एक आंकलन के अनुसार, इस नोटबंदी के कारण हमारी अर्थव्यवस्था पर 1.28 लाख करोड़ की सीधी चोट पहुंच रही है.

इन पार्टियों के नेताओं ने इस बात की आलोचना की कि मोदी सरकार इस देश के आम नागरिकों को ही कालाधन-धारक बताने पर तुली हुई है, उनकी बैंक निकासियों को रोका जा रहा है और उनके जायज नोट भी बैंक खाता न होने के कारण बदले नहीं जा रहे हैं और हर रोज नियम बदलकर उनकी परेशानियों को और बढ़ाया जा रह है, जबकि वास्तविक अपराधी चैन की नींद सो रहे हैं. नोटबंदी का अधिकार रिज़र्व बैंक को है, लेकिन रिज़र्व बैंक की गवर्निंग बॉडी के निर्णय के बिना ही सरकार अपनी ‘मनमर्जी’ जनता पर थोप रही है और रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता का ही हनन किया जा रहा है.

इन नेताओं ने इस बात पर भी बल दिया कि नोटबंदी से सरकार के कर-राजस्व या ऋण-वसूली में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है, तो ऐसी नोटबंदी से फायदा क्या? इस नोट बंदी से आम जनता की संचित निधि ही बैंकों में जमा हुई है, जिस पर अब ब्याज दर घटाने की तैयारी की जा रही है. आम जनता के इन पैसों को अब फिर से उन्हीं धनकुबेरों को क़र्ज़ दिया जायेगा, जो पहले के क़र्ज़ हड़पकर बैंकों को दिवालियेपन की कगार में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है. जन-धन खातों में जमा हुए 62 हजार करोड़ रुपयों का उपयोग किसानों की ऋण माफ़ी के लिए करने की भी उन्होंने मांग की.

इन नेताओं ने संयुक्त रूप से मांग की है कि :
1. जब तक मुद्रा की वैकल्पिक आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की जाती, तमाम वैध लेन-देन में पुराने नोट चलने दें.
2. सभी गरीबों के नोट बिना किसी दिक्कत के बदले जाएं.
3. बैंकों और सहकारी समितियों सहित तमाम सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों को पुराने नोटों को लेने का अधिकार दिया जाये, ताकि आम जनता आसानी से लेन-देन के जरिये अपने नोट बदल सकें.
4. काले धन के वास्तविक स्रोतों पर प्रहार किये जाएं. बड़े बैंक डिफाल्टरों, कर-चोरों, काले धंधों में लगे लोगों, हवाला कारोबारियों, शेयर बाज़ार में काला धन लगाने वालों के खिलाफ दृढ़तापूर्वक कार्यवाही की जाएं. सहारा-बिड़ला डायरी में उल्लेखित लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही हो.
5. सभी गरीब किसानों के कर्जे माफ़ किये जाएं.
6. रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता को बहाल किया जाएं.

संजय पराते, सचिव, माकपा,
सीआर बख्शी, केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य, भाकपा,
 बृजेन्द्र तिवारी, सचिव, भाकपा (मा-ले)-लिबरेशन,
 जनकलाल ठाकुर, छमुमो,
 मनमोहन अग्रवाल, जद(यू),
  कुणाल शुक्ला, सपा,
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27.11.2016

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