Wednesday, November 30, 2016

राष्ट्रगान की अनिवार्यता *सुप्रीम कोर्ट ने उन्माद के हाथों दे दिया एक कानूनी हथियार


राष्ट्रगान की अनिवार्यता
*सुप्रीम कोर्ट ने उन्माद के हाथों दे दिया एक कानूनी हथियार
 * ऐसे फैसले देश के सम्मान के नहीं हैं, देश में उन्माद के हाथों एक कानूनी हथियार दे देने सरीखे हैं।

# सुनील कुमार ,संपादकीय छत्तीसगढ़
30 नवंबर 2016
**
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक फैसले में सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने के पहले राष्ट्रगान अनिवार्य रूप से बजाने, और तिरंगे को परदे पर दिखाने का आदेश दिया है। देश के बहुत से लोगों की यह मांग बरसों से चली आ रही थी, और छत्तीसगढ़ में राज्य शासन ने अपने आदेश से ही बरसों पहले इसे लागू कर दिया था।

 राष्ट्रगान को लेकर राष्ट्रवादियों का उन्माद इस तरह हावी है कि कुछ महीने पहले मुंबई में एक सिनेमाघर में फिल्म देखने पहुंचे पहियों की कुर्सी पर चलने वाले एक विकलांग (दिव्यांग) के खड़े न हो पाने पर दर्शकों में से कई ने उसे पीटकर धर दिया था। यह अलग बात है कि देशभर में यह पुराना अनुभव है कि जब राष्ट्रगान चलते रहता है, तब सिनेमाघरों में लोग आना-जाना करते रहते हैं।
दरअसल सार्वजनिक जीवन में कानून बनाकर या अनिवार्य रूप से जब राष्ट्रीय प्रतीक चिन्हों को लागू किया जाता है, तो उनसे बड़े आक्रामक विवाद शुरू होते हैं, और मामलों को अदालत तक घसीटा जाता है, या कानून हाथ में लेकर लोगों को पीटा जाता है।

 भारत में किसी खिलाड़ी के पैर अगर झंडे की तरफ हैं, और वह मुस्लिम है, तो उसे गद्दार साबित करने में देर नहीं लगती। या किसी पश्चिमी देश में वहां के रिवाज के मुताबिक अगर देश के झंडे जैसा केक बनाकर किसी समारोह में काटा जाए, तो उसे लेकर भी बवाल खड़ा हो जाता है। कहीं झंडा फटा हुआ रहे, या कहीं पर राजचिन्ह को लेकर कोई कार्टून बना दिया जाए, तो भी यही हाल होता है।
ऐसे उत्तेजना से भरे हुए राष्ट्रवादी देश में सार्वजनिक जीवन से राष्ट्र के ऐसे प्रतीक चिन्हों को सीमित ही कर देना चाहिए जो कि लोगों में तनाव खड़ा कर सकते हैं। अब जैसे हम छत्तीसगढ़ में देखते हैं कि राज्यपाल के किसी भी कार्यक्रम के पहले, और कार्यक्रम के बाद राष्ट्रगान बजाने के लिए पुलिस बैंड एक बस पर लदकर पहुंचता है, और उसका रात-दिन का काम ही राज्यपाल के लिए बैंड बजाने के लिए रहता है। आज जब सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है, तो सोशल मीडिया पर बहुत से जागरूक और समझदार लोगों ने तुरंत यह सवाल खड़ा किया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट अपनी कार्रवाई शुरू और खत्म करने के पहले राष्ट्रगान गाता-बजाता है?
आज हिन्दुस्तान में समझदारी की बात करना बड़ी आसानी से देशद्रोह का दर्जा पा सकता है। इसी देश में जब असहिष्णुता को लेकर चारों तरफ हिंसा चल रही थी, और फिल्म अभिनेता आमिर खान ने बातचीत में यह कहा था कि इस हिंसा से सहमी हुई उनकी पत्नी को लगता है कि इस देश में रहा जाए, या न रहा जाए, तो देश के उन्मादी लोगों ने इस हिन्दू महिला को तुरंत ही पाकिस्तान भेज देने की मांग कर दी थी। लेकिन अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में यह कहा कि कोई उनकी हत्या भी कर सकते हैं, तो इस पर किसी ने उन्हें देश के हिंसक माहौल पर टिप्पणी करने के जुर्म में देशनिकाला नहीं दिया।
 जब देश के माहौल में उन्माद इतना अधिक फैला हुआ हो, तो सार्वजनिक जगहों पर धर्म के प्रतीक घटाने चाहिए, धर्म का प्रदर्शन घटाना चाहिए, और राजचिन्ह, राजप्रतीक, और राजगौरव के सारे प्रतीकों को सीमित कर देना चाहिए। आज सुप्रीम कोर्ट के आदेश से देश में यह माहौल बन जाएगा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के दौरान कोई खड़े न हों, या खड़े न हो सकें, तो उन पर हमला करना कानूनी मान लिया जाएगा। ऐसे फैसले देश के सम्मान के नहीं हैं, देश में उन्माद के हाथों एक कानूनी हथियार दे देने सरीखे हैं।

*-सुनील कुमार

No comments:

Post a Comment