पिछले कुछ समय से ‘‘तेरा हम एनकाउंटर कर देंगे’’ छत्तीसगढ़ पुलिस का नारा सा बन गया है। पुलिस यह धमकी उन गरीब आदिवासियों को देती है, जो पहले किसी छोटे-मोटे और अक्सर झूठे आरोप में गिरफ्तार कर रिहा कर दिए गये हों। इस धमकी का इस्तेमाल इन आदिवासियों को पुलिस थाने बुलवाकर, किसी ऐसे व्यक्ति को फंसाने के लिए गवाह के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो पुलिस के लिए मुसीबत बन गया हो।
और कोई पुलिस के लिए मुसीबत कैसे बनता है? जब वह मूलनिवासी लोगों को जल, जंगल और ज़मीन पर उनके अधिकारों के संबंध में जागृत करता है या उन्हें उनकी हज़ारो साल पुरानी मूल संस्कृति की याद दिलाता है। मूलनिवासियों के इन सब अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। आप पुलिस के लिए तब भी मुसीबत बन जाते हैं, अगर आप समाज में ऐसा दर्जा हासिल कर लेते हैं, जो पुलिस के अनुसार, आप की जाति या जनजाति के पदक्रम में स्थान के अनुरूप नहीं है। अगर पुलिस आपके खिलाफ झूठे गवाह इकट्ठे नहीं कर पाती तो वह कोई दूसरा तरीका खोजती है। पिछले कुछ समय से फेसबुक पोस्ट और व्हाट्स ऐप संदेश ऐसे लोगों को प्रताड़ित करने का बहाना बन गए हैं।
महिषासुर आंदोलन से शुरू हुए विमर्श के बाद से मूलनिवासी इस तथ्य से परिचित होते जा रहे हैं कि वे सांस्कृतिक दासता के शिकार हैं। वे अपना गुस्सा सोशल मीडिया पर व्यक्त करते हैं। ऊँची जाति के लोग और पुलिस बल में उनके सहयोगी, कई वर्ष पुराने पोस्ट का इस्तेमाल भी लोगों को प्रताड़ित करने के लिए कर रहे हैं। राजनांदगांव जिले के मानपुर कस्बे के निवासी विवेक कुमार ने दुर्गा और महिषासुर के मिथक को लेकर अक्टूबर 2014 में फेसबुक पर एक टिप्पणी की थी। उस समय फारवर्ड प्रेस पत्रिका के नेहरू प्लेस, दिल्ली स्थित कार्यालय पर पुलिस की कार्यवाही के चलते यह मुद्दा गर्माया हुआ था।
विवेक कुमार का प्रकरण
राजनांदगांव, मुख्यमंत्री रमन सिंह का गृह जिला है और उनके पुत्र अभिषेक सिंह यहां से लोकसभा के लिए चुने गए हैं। विवेक कुमार, कुर्मी समुदाय से हैं और उनके चाचा अर्जुन सिंह ठाकुर गोंड हैं। वे वकील हैं और ‘दक्षिण कौशल’ नामक पत्रिका का प्रकाशन करते हैं। विवेक कुमार और उनके चाचा दोनों अंबेडकराईट पार्टी ऑफ़ इंडिया के सक्रिय सदस्य हैं। वे समय-समय पर आदिवासियों की भूमि पर कब्ज़ा कर सीआरपीएफ की कॉलोनियां बसाने और इस केंद्रीय अर्धसैनिक बल द्वारा शराब की दुकानों को संरक्षण दिए जाने का विरोध करते आए हैं।
पुलिस ने विवेक कुमार को गिरफ्तार किया। स्पष्टतः पुलिस किसी के इशारे पर काम कर रही थी। पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम से यह साफ है कि पुलिस किसी भी उच्च जाति के समूह या संगठन द्वारा की गई शिकायत को गंभीरता से लेती है और तुरंत एफआईआर दर्ज कर लेती है। जब भी ये संगठन सड़कों पर उतरकर आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग करते हैं, पुलिस तुरंत उनके दबाव में आ जाती है। दूसरी ओर, ऊँची जातियों के लोगों द्वारा की गई हिंसा को नज़रअंदाज किया जाता है। ऐसे मामलों में अगर एफआईआर दर्ज कर भी ली जाती है तब भी आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता। ऊँची जातियों के इन समूहों के सदस्य अक्सर या तो भाजपा अथवा कांग्रेस या किसी अन्य प्रमुख राजनीतिक दल के सदस्य या समर्थक होते हैं।
विकास खांडेकर का प्रकरण
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ की पश्चिमी सीमा पर स्थित है और महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से सटा हुआ है। राजनांदगांव के पूर्व में राज्य की मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है मुंगेली। मुंगेली में पांच अक्टूबर को विकास खांडेकर, जो कि स्थानीय सतनामी समुदाय के अध्यक्ष हैं, को फेसबुक पर एक ऐसे मैसेज को फिर से पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें दुर्गा-महिषासुर मिथक की समालोचनात्मक विवेचना की गई थी।
इस फेसबुक पोस्ट के बारे में जानकारी फैलने के बाद, सर्वदलीय मंच ने खांडेकर के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग को लेकर एक प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में हिंसा भी हुई। दिलचस्प यह है कि इस तथाकथित ‘सर्वदलीय मंच’ का गठन, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद की पहल पर हुआ है और इसके सदस्यों में कांग्रेस और अन्य कुछ छोटे दलों के नेता शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों ने सतनामियों के पवित्र ‘जैतखंभ’ को जूतों की माला पहनाई और खांडेकर के घर पर पथराव किया। उस समय उनकी पत्नी और उनके छोटे बच्चे घर पर थे।
पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज की परंतु भारतीय दंड संहिता की मामूली धारा 147 के अंतर्गत। सतनामी समुदाय और उसके नागरिक समाज समर्थकों ने पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर को ज्ञापन देकर मांग की कि हिंसक प्रदर्शनकारियों पर अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत प्रकरण दर्ज किया जाए। परंतु उनकी मांग पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई। उनमें से कुछ ने पुलिस महानिरीक्षक से भी बात की। फारवर्ड प्रेस ने जब मुंगेली की पुलिस अधीक्षक नीतू कमल से बात की तो उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने सतनामियों के पवित्र स्थल को अपवित्र नहीं किया था। परंतु प्रत्यक्षदर्शी कुछ और कहते हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस) ओपी चंदेल के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने जैतखंभ स्थल पर उत्पात मचाया था।
सतनामी, छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी अनुसूचित जाति है। मुंगेली में इस जाति की खासी आबादी है। पिछले कुछ समय से वे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने उस दिन भी विरोध प्रदर्शन किया, जिस दिन, कई दशक पहले, सतनामी पंथ के संस्थापक गुरू घासीदास की इलाके के ठाकुरों द्वारा हत्या कर दी गई थी। विवेक खांडेकर इन प्रदर्शनों का नेतृत्व करते आए हैं। इलाके के ठाकुर और अन्य ऊँची जातियों के सदस्यों को सतनामियों की एकता और उनके शक्तिप्रदर्शन रास नहीं आ रहे हैं। हाल में एक स्थानीय नागरिक डा. अभिराम शर्मा ने अपने फार्म हाउस की चहारदीवारी पर नाली के ठीक ऊपर गुरू घासीदास का चित्र बनवाया। विकास खांडेकर अब भी जेल में है और उन्हें निचली अदालतों ने ज़मानत देने से इंकार कर दिया है। इसके विपरीत, डा. अभिराम शर्मा को उनके विरूद्ध एफआईआर दायर होते ही ज़मानत मिल गई।
डा. जार्ज लकरा का प्रकरण
जशपुर, राज्य के उत्तरपूर्व में स्थित एक जिला है, जो झारखंड से सटा हुआ है। इस जिले के पाथलगांव में स्थानीय सरकारी अस्पताल में पदस्थ डा जार्ज लकरा को व्हाट्स ऐप ग्रुप पर एक संदेश फारवर्ड करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस संदेश का शीर्षक था ‘‘केवल रावण के पुतले ही क्यों जलाए जाते हैं?’’। इस संदेश को पोस्ट करने के एक घंटे के भीतर जिले के चार पुलिस थानों- बगेचा, कुंकुरी, जसपुरी और पाथलगांव-में उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज हो गईं और अगले एक घंटे में एफआईआर दायर कर दी गई।
डा.लकरा फिजीशियन हैं। जिस अस्पताल में वे काम करते हैं, उसमें 13-14 डाक्टर हैं। डा. लकरा सहित उनमें से दस आदिवासी ईसाई हैं। जिले की एक-चौथाई आबादी आदिवासी ईसाईयों की है। जिस वाट्स ऐप ग्रुप पर डा. लकरा ने अपना संदेश पोस्ट किया था, वह स्वास्थ्य विभाग की पहल पर बनाया गया था। लकरा की पत्नी और उनका पुत्र स्थानीय कॉलेज में पढ़ाते हैं और उनकी लड़की मेडिकल कॉलेज में पढ़ती है। डा. लकरा के खिलाफ आईपीसी की धारा 295 (ए) के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। इस धारा में यह प्रावधान है कि आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है। पुलिस ने उन्हें उनके घर से उठा लिया और तब से वे जेल में ही हैं। डा. लकरा के एक परिचित ने मुझे फोन पर पूरा घटनाक्रम बताया। उन्होंने अपने घर के बाहर एक सुनसान स्थान पर खड़े होकर मुझसे बात की। उनका कहना था कि वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अगर यह बात फैल गई कि उन्होंने किसी पत्रकार से बात की है, तो वे मुसीबत में फंस सकते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे सैनिक शासन में रह रहे हैं।
एम धीवर का प्रकरण
राज्य की राजधानी रायपुर के नज़दीक कुर्रा, धरसीवान में गज़ब की अराजकता है। वहां पर तो ऊँची जातियों के गुंडों को पुलिस की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। वहां एक ईसाई आदिवासी (एम. धीवर) की तब पीट-पीटकर हत्या कर दी गई जब उसने दुर्गा देवी का प्रसाद खाने से इंकार कर दिया। पुलिस ने पहले एक कहानी गढ़ी कि धीवर के साथ मारपीट इसलिए हुई क्योंकि वह छुप कर दुर्गा पूजा एक आयोजकों के द्वारा आयोजित नृत्य उत्सव के दौरान लड़कियों को कपड़े बदलते देख रहा था। पुलिस के इस बयान की पुष्टि टाउन इन्स्पेक्टर आलीम खान ने फॉरवर्ड प्रेस से बातचीत करते हुए की। इस आरोप के बाद उनका समुदाय हरकत में आया। उन्होंने पुलिस महानिदेशक से संपर्क कर यह चेतावनी दी कि अगर पुलिस ने कार्यवाही नहीं कि तो उन्हें उच्च न्यायालय व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शरण में जाना होगा। इसके बाद मजबूर होकर पुलिस ने जांच शुरू की। कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है परंतु धीवर के परिजनों को आशंका है कि पुलिस, आरोपियों के खिलाफ केस को इतना कमज़ोर बना देगी कि वे न्यायालय से बरी हो जाएंगे।
मनीष कुंजाम का प्रकरण
राज्य के दक्षिणपूर्व में स्थित सुकमा में कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम तब निशाने पर आए जब उन्होंने एक वाट्स ऐप पोस्ट के जरिए दुर्गा-महिषासुर मिथक को आदिवासी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उन्होंने लिखा कि ब्राह्मणों ने महिषासुर को धोखे से मारने के लिए दुर्गा को भेजा था, महिषासुर संथाल राजा था और आज भी दुर्गा की मूर्तियां बनाने के लिए वेश्या के घर की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। बस्तर के एक कांग्रेस नेता द्वारा शिकायत किए जाने पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई। उसके बाद, धर्म सेना ने सुकमा में उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज करवाया। सर्व हिन्दू समाज ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और इलाके में भारी पुलिस बल तैनात किया गया। वातावरण इतना तनावपूर्ण हो गया कि पुलिस को धारा 144 लगानी पड़ी।
कुंजाम, आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इस संगठन का इलाके में काफी प्रभाव है। कई जनजातीय संगठन और समूह उनके समर्थन में आगे आए। कोया समाज ने एक बयान जारी कर कहा कि कुंजाम ने किसी समुदाय के अराध्य को अपमानित नहीं किया था। उन्होंने तो केवल यह कहा था कि वे महिषासुर के भक्त हैं। कुंजाम का कहना है कि उनके खिलाफ प्रकरण इसलिए दर्ज किया गया क्योंकि उन्होंने जिला निर्माण समिति में भ्रष्टाचार की शिकायत करते हुए प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसके बाद इसकी जांच शुरू हो गई है।
कुछ समय पूर्व कथित हिन्दू संगठनों से संबद्ध 30-35 युवक जगदलपुर के सीपीआई ऑफिस में जबरन घुस गए। उस समय वहां कुंजाम एक प्रेस कांफ्रेंस का संबोधित कर रहे थे। इन युवकों ने कार्यालय में भारी उत्पात मचाया और फर्नीचर तोड़ डाला। पुलिस वहां पहुंची ज़रूर परंतु उसने कोई कार्यवाही नहीं की। कुंजाम ने यह प्रेस कांफ्रेंस, पुलिसकर्मियों द्वारा उनके व अन्य पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के पुतले जलाए जाने की घटना के संदर्भ में किया था। पुलिसकर्मियों ने ये पुतले सीबीआई द्वारा यह खुलासा किए जाने के बाद जलाए थे कि सलवा जुडूम के विशेष पुलिस अधिकारियों ने 2011 में आदिवासियों के घरों में आग लगाई थी।
प्रेस कांफ्रेंस में जबरन घुस आए युवाओं ने कुंजाम से यह मांग की कि वे दुर्गा और महिषासुर के संबंध में वाट्स ऐप मैसेज शेयर करने के लिए क्षमायाचना करें। इसके पहले इस मैसेज पर मचे बवाल को शांत करने के लिए कुंजाम ने कहा था कि उन्होंने वह पोस्ट नहीं लिखा था परंतु उस पोस्ट में कही गईं कुछ बातों से वे सहमत हैं। ‘‘मैं महिषासुर का वंशज हूं। जिस तरह आरएसएस और सर्व हिन्दू समाज अपने देवी-देवताओं के बारे में टिप्पणियों से व्यथित हैं, उसी तरह से मैं भी (हिन्दू) धर्मग्रंथों में प्रस्तुत असुरों की झूठी छवि से व्यथित हूं’’।
बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लूरी ने विभिन्न जनजातियों के मांझियों और चलकियों को दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर में आयोजित एक विशाल भोज में आमंत्रित किया। एक समाचारपत्र के अनुसार वहां उन लोगों ने ‘‘एक स्वर में यह घोषणा की कि आदिवासी महिषासुर के वंशज नहीं हैं’’। कुंजाम ने कहा कि ‘‘मांझी-चलकी परंपरा तब शुरू हुई जब इस क्षेत्र में राजाओं का शासन था। यह परंपरा केवल 150-200 वर्ष पुरानी है। ये लोग चुने नहीं जाते हैं। उनकी नियुक्ति तहसीलदार करता है और सामान्यतः एक ही परिवार के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इन पदों पर नियुक्त किए जाते हैं…यह कार्यक्रम प्रायोजित था’’।
मानपुर में सर्वणों का विरोध
मानपुर में मार्च में ऊँची जातियों के हिन्दू युवकों ने एक प्रदर्शन किया, जिसमें विवेक कुमार की गिरफ्तारी की मांग की गई। उन्होंने महिषासुर और आदिवासियों को अपमानित करने वाले नारे लगाए।
‘महिषासुर (भैंसासुर) की औलादों को, जूते मारों सालों को’
‘रामायण-गीता को नहीं मानने वालों को, जूता मारो सालों को’
‘अबुजमाढ़ियों होश में आओ’
‘राक्षसों की औलादों को, जूते मारो सालों को’
पुलिस ने काफी नानुकुर के बाद लगभग डेढ़ माह पश्चात इन युवको के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, वह भी तब जब आदिवासियों ने कम से कम चार मौकों पर जुलूस निकालकर स्थानीय प्रशासन को लिखित शिकायतें सौंपी। चौथे प्रदर्शन में करीब दस हजार लोग शामिल थे। इसके बाद युवकों ने अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया, जिसे स्थानीय अदालत व छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया। लगभग आठ महीनों तक पुलिस ने एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया। अंततः 9 नवंबर को डीएसपी आकाश राव ने बताया कि पुलिस ने एक युवक सतीश दुबे को गिरफ्तार कर लिया है। जिस पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी वहां के प्रभारी इंस्पेक्टर मुकेश यादव ने भी सतीश दुबे की गिरफ्तारी की पुष्टि की।
विवेक कुमार को दो माह जेल में बिताने पड़े। उन्हें निचली अदालतों ने जमानत नहीं दी। उन्हें जमानत तभी मिल सकी जब उन्होंने उच्च न्यायालय में आवेदन दिया। विकास खांडेकर और जार्ज लकरा की जमानत याचिकाएं भी निचली अदालतों द्वारा रदद की जा चुकी हैं। वे अब भी जेल में हैं।
कुंजाम कहते हैं, ‘‘बस्तर इस बात का सबूत है कि देश की पुलिस ऊँची जातियों के हाथों में खिलौना है’’। यह एक सटीक और सारगर्भित टिप्पणी है।
महिषासुर से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए ‘महिषासुर: एक जननायक’ शीर्षक किताब देखें। ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन, वर्धा/दिल्ली। मोबाइल : 9968527911ऑनलाइन आर्डर करने के लिए यहाँ जाएँ : महिषासुर : एक जननायकइस किताब का अंग्रेजी संस्करण भी ‘Mahishasur: A people’s Hero’ शीर्षक से उपलब्ध है।
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