बस्तर पुलिस के दावे में कितना दम, 'आदिवासी माओवादियों का पैसा रखते हैं'
राजकुमार सोनी@CatchHindi |
24 November 2016, 8:07
नोटबंदी से पूरे देश में संकट गहरा हुआ है, लेकिन बस्तर के आदिवासियों की मुसीबत और ज्यादा बढ़ गई है.लंबे समय से पुलिस के निशाने पर रहे ग्रामीण-आदिवासियों को अब माओवादियों का पैसा रखने वाला समझा जा रहा है. 8 नवंबर को नोटबंदी का एलान होने के बाद से बस्तर पुलिस ने ग्रामीणों की निगरानी के निर्देश दे रखे हैं.
हाल ही में बस्तर आईजी शिवराम कल्लूरी ने कहा था कि नोटबंदी से माओवादियों की कमर टूट गई है. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार की तरफ से भी कहा गया कि नोटबंदी ने माओवादियों को मांद से निकलने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन भरमार बंदूकों के साथ ग्रामीणों की गिरफ्तारी दर्शाने वाली पुलिस अब तक यह खुलासा नहीं कर पाई है कि कौन सा माओवादी बैंक में नोट जमा करने पहुंचा थे।
नोटबंदी के बाद बीजापुर जिले में तैनात सीआरपीएफ की एक बटालियन ने आवापल्ली थाना क्षेत्र के मारुडबाका पंचायत के एक सरपंच को एक लाख रुपए के साथ जरूर पकड़ा था, लेकिन इस धरपकड़ के साथ यह सवाल भी उठा कि क्या किसी सरपंच का एक लाख रुपया बैंक में जमा करना कालेधन की श्रेणी में आता है? जिसे पकड़ा गया वह सरपंच था तो फिर माओवादी कैसे बन गया? तीसरा अहम सवाल यह था कि क्या केंद्र ने सीआरपीएफ को आदिवासी- ग्रामीणों की गाढ़ी कमाई पर नोटिस जारी कर पूछताछ करने का अधिकार दे दिया है?
आदिवासियों के पास नहीं है बैंक खाता
डा . लाखन सिंह कहते है कि नोटबंदी के बाद बस्तर के अंदरूनी इलाकों में रहने वाले ग्रामीण त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं. बस्तर सहित कई गांवों में जहां ग्रामीणों के पास बैंक खाता नहीं है वहां यह सूचना ही विलंब से पहुंची कि सरकार ने 500-1000 के नोटों का चलन बंद कर दिया है. सूचना मिलने के बाद ग्रामीण नोट बदलने के लिए 50-60 किलोमीटर का सफर तय कर शहर पहुंच रहे हैं तो उन्हें निराशा हाथ लग रही है क्योंकि बस्तर में अब भी कई गांव ऐसे हैं जहां आदिवासियों के पास किसी तरह का पहचान पत्र ही नहीं है.
सर्व आदिवासी समाज के सचिव बीएस रावटे के पास बस्तर के कई ग्रामीणों ने इस बात की शिकायत की है कि बिचौलियों ने उन्हें 1000 के नोट के बदले पांच या सात सौ रुपए वापस लौटाए हैं. बस्तर में साप्ताहिक हाट-बाजारों का चलन काफी पुराना है. नोटबंदी ने एक बार फिर ग्रामीणों को वस्तु विनिमय के युग में धकेल दिया है.
बस्तर में काफी पहले बिचौलिए नमक के बदले बेशकीमती चिरौंजी ले लिया करते थे. नोटबंदी के बाद एक बार फिर वही स्थिति देखने को मिल रही है. दक्षिण बस्तर के अनेक गांवों में लगने वाले हाट-बाजारों में आदिवासियों को बेशकीमती वनोपज के बदले जरूरत का कोई दूसरा सामान देने की खबरें भी मिली है.
बस्तर से सर्व आदिवासी समाज के एक पदाधिकारी सुरेश कर्मा कहते हैं, 'नोटबंदी से माओवादियों की कमर टूटी या नहीं इसका तो पता नहीं, लेकिन आदिवासियों की कमर जरूर टूट गई है. कर्मा कहते हैं, अमूमन ग्रामीण महुआ-टोरा या वनोपज का पैसा अपने घरों में रखते ही है. अब जब वे पैसों को जमा करने बैंक पहुंच रहे हैं तो उन्हें थाने बुलाकर इस बात के लिए डराया-धमकाया जा रहा है कि कहीं माओवादियों ने तो उन्हें नोट बदलने के लिए नहीं दिया है. थाने में पुलिस की सख्ती से परेशान होकर ग्रामीण साहूकारों के पास कम दाम पर पुराने नोट बदलवा रहे हैं.'
कर्मा ने बताया कि पुलिस की सख्ती से त्रस्त होकर आदिवासी समाज ने बस्तर के पुलिस अफसरों को जानकारी भी दी बावजूद इसके आदिवासियों को राहत नहीं मिली है. बस्तर के बारसूर इलाके में एकमात्र एटीएम गत चार माह से बंद पड़ा था. आसपास के ग्रामीणों ने एटीएम सुधरवाने के लिए कई बार अर्जी दी लेकिन एटीएम नहीं सुधरा तो लोगों को चक्का जाम भी करना पड़ा.
आदिवासी विधायक मोहन मरकाम ने आरोप लगाया है कि बस्तर में नोटों की अदला-बदली के खेल में वे लोग जुटे हैं जो सत्ताधारी दल से जुड़े हैं. गरीब-किसानों की जमापूंजी को माओवादियों बताकर उनका भयादोहन करने का खेल बदस्तूर जारी है.
कई गांवों में हालात बदतर
छत्तीसगढ़ के एक और माओवाद प्रभावित इलाके राजनांदगांव की सीमा से सटे गांवों में नकदी का संकट कायम है. जिला मुख्यालय से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर औंधी के आसपास सौ से अधिक गांव ऐसे हैं जहां न तो बैंक हैं और न ही एटीएम. इन इलाकों के ग्रामीण भी बिचौलियों के शिकार हो रहे हैं. आदिवासी इलाके मानपुर और मोहल्ला में कुछ एटीएम तो हैं लेकिन वहां भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है. अंबिकापुर के ग्रामीण इलाकों के बैंक आए दिन हाथ खड़ा करने की स्थिति में रहते हैं. कई एटीएम ऐसे हैं जहां रात को पैसा डाला जा रहा है तो ग्रामीणों को किसी मंदिर या सराय में रुककर रतजगा करना पड़ रहा है.
देश में कर्नाटक और तमिलनाडु के बाद टमाटर की बंपर पैदावर के लिए मशहूर जशपुर के पत्थलगांव और फरसाबहार इलाके के किसान सदमे में डूबे हुए हैं. इस साल टमाटर की अच्छी पैदावार हुई हैं लेकिन नोटबंदी ने उनके सपनों को तोड़ दिया है. आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है कि जशपुर में टमाटार दो से तीन रुपए किलो में बेचा जा रहा है. शहरों तक पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत पांच से आठ रुपए हो गई है. रिजर्व बैंक के निर्देश के बाद सहकारी बैंकों में लेन-देन नहीं हो रहा है. प्रदेश के अधिकांश किसानों का खाता ग्रामीण सहकारी बैंकों में ही है. किसानों को खून का घूंट पीकर जीवन यापन करना पड़ रहा है. नोटबंदी से देश में कई लोग मौत को गले लगा चुके हैं. प्रदेश के महासमुंद जिले के एक किसान उत्तम यादव की मौत की वजह भी नोटबंदी ही थी.
बस्तर में नहीं चलता कोई कानून
पीयूसीएल के प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष लाखन सिंह कहते हैं, 'बस्तर पुलिस निर्दोष ग्रामीणों को मौत के घाट उतारने के खेल में लगी हुई है. वहां सामाजिक कार्यकर्ताओं के पुतले जलाए जाते हैं, इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं हैं कि वहां लोकतंत्र और संविधान निलंबित है. बस्तर में केवल एक अफसर कल्लूरी का कानून चलता है. अगर वहां कुछ भी असंवैधानिक होता है तो उस पर आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जा सकता.
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राजकुमार सोनी@CatchHindi |
24 November 2016, 8:07
नोटबंदी से पूरे देश में संकट गहरा हुआ है, लेकिन बस्तर के आदिवासियों की मुसीबत और ज्यादा बढ़ गई है.लंबे समय से पुलिस के निशाने पर रहे ग्रामीण-आदिवासियों को अब माओवादियों का पैसा रखने वाला समझा जा रहा है. 8 नवंबर को नोटबंदी का एलान होने के बाद से बस्तर पुलिस ने ग्रामीणों की निगरानी के निर्देश दे रखे हैं.
हाल ही में बस्तर आईजी शिवराम कल्लूरी ने कहा था कि नोटबंदी से माओवादियों की कमर टूट गई है. विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार की तरफ से भी कहा गया कि नोटबंदी ने माओवादियों को मांद से निकलने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन भरमार बंदूकों के साथ ग्रामीणों की गिरफ्तारी दर्शाने वाली पुलिस अब तक यह खुलासा नहीं कर पाई है कि कौन सा माओवादी बैंक में नोट जमा करने पहुंचा थे।
नोटबंदी के बाद बीजापुर जिले में तैनात सीआरपीएफ की एक बटालियन ने आवापल्ली थाना क्षेत्र के मारुडबाका पंचायत के एक सरपंच को एक लाख रुपए के साथ जरूर पकड़ा था, लेकिन इस धरपकड़ के साथ यह सवाल भी उठा कि क्या किसी सरपंच का एक लाख रुपया बैंक में जमा करना कालेधन की श्रेणी में आता है? जिसे पकड़ा गया वह सरपंच था तो फिर माओवादी कैसे बन गया? तीसरा अहम सवाल यह था कि क्या केंद्र ने सीआरपीएफ को आदिवासी- ग्रामीणों की गाढ़ी कमाई पर नोटिस जारी कर पूछताछ करने का अधिकार दे दिया है?
आदिवासियों के पास नहीं है बैंक खाता
डा . लाखन सिंह कहते है कि नोटबंदी के बाद बस्तर के अंदरूनी इलाकों में रहने वाले ग्रामीण त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं. बस्तर सहित कई गांवों में जहां ग्रामीणों के पास बैंक खाता नहीं है वहां यह सूचना ही विलंब से पहुंची कि सरकार ने 500-1000 के नोटों का चलन बंद कर दिया है. सूचना मिलने के बाद ग्रामीण नोट बदलने के लिए 50-60 किलोमीटर का सफर तय कर शहर पहुंच रहे हैं तो उन्हें निराशा हाथ लग रही है क्योंकि बस्तर में अब भी कई गांव ऐसे हैं जहां आदिवासियों के पास किसी तरह का पहचान पत्र ही नहीं है.
सर्व आदिवासी समाज के सचिव बीएस रावटे के पास बस्तर के कई ग्रामीणों ने इस बात की शिकायत की है कि बिचौलियों ने उन्हें 1000 के नोट के बदले पांच या सात सौ रुपए वापस लौटाए हैं. बस्तर में साप्ताहिक हाट-बाजारों का चलन काफी पुराना है. नोटबंदी ने एक बार फिर ग्रामीणों को वस्तु विनिमय के युग में धकेल दिया है.
बस्तर में काफी पहले बिचौलिए नमक के बदले बेशकीमती चिरौंजी ले लिया करते थे. नोटबंदी के बाद एक बार फिर वही स्थिति देखने को मिल रही है. दक्षिण बस्तर के अनेक गांवों में लगने वाले हाट-बाजारों में आदिवासियों को बेशकीमती वनोपज के बदले जरूरत का कोई दूसरा सामान देने की खबरें भी मिली है.
बस्तर से सर्व आदिवासी समाज के एक पदाधिकारी सुरेश कर्मा कहते हैं, 'नोटबंदी से माओवादियों की कमर टूटी या नहीं इसका तो पता नहीं, लेकिन आदिवासियों की कमर जरूर टूट गई है. कर्मा कहते हैं, अमूमन ग्रामीण महुआ-टोरा या वनोपज का पैसा अपने घरों में रखते ही है. अब जब वे पैसों को जमा करने बैंक पहुंच रहे हैं तो उन्हें थाने बुलाकर इस बात के लिए डराया-धमकाया जा रहा है कि कहीं माओवादियों ने तो उन्हें नोट बदलने के लिए नहीं दिया है. थाने में पुलिस की सख्ती से परेशान होकर ग्रामीण साहूकारों के पास कम दाम पर पुराने नोट बदलवा रहे हैं.'
कर्मा ने बताया कि पुलिस की सख्ती से त्रस्त होकर आदिवासी समाज ने बस्तर के पुलिस अफसरों को जानकारी भी दी बावजूद इसके आदिवासियों को राहत नहीं मिली है. बस्तर के बारसूर इलाके में एकमात्र एटीएम गत चार माह से बंद पड़ा था. आसपास के ग्रामीणों ने एटीएम सुधरवाने के लिए कई बार अर्जी दी लेकिन एटीएम नहीं सुधरा तो लोगों को चक्का जाम भी करना पड़ा.
आदिवासी विधायक मोहन मरकाम ने आरोप लगाया है कि बस्तर में नोटों की अदला-बदली के खेल में वे लोग जुटे हैं जो सत्ताधारी दल से जुड़े हैं. गरीब-किसानों की जमापूंजी को माओवादियों बताकर उनका भयादोहन करने का खेल बदस्तूर जारी है.
कई गांवों में हालात बदतर
छत्तीसगढ़ के एक और माओवाद प्रभावित इलाके राजनांदगांव की सीमा से सटे गांवों में नकदी का संकट कायम है. जिला मुख्यालय से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर औंधी के आसपास सौ से अधिक गांव ऐसे हैं जहां न तो बैंक हैं और न ही एटीएम. इन इलाकों के ग्रामीण भी बिचौलियों के शिकार हो रहे हैं. आदिवासी इलाके मानपुर और मोहल्ला में कुछ एटीएम तो हैं लेकिन वहां भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है. अंबिकापुर के ग्रामीण इलाकों के बैंक आए दिन हाथ खड़ा करने की स्थिति में रहते हैं. कई एटीएम ऐसे हैं जहां रात को पैसा डाला जा रहा है तो ग्रामीणों को किसी मंदिर या सराय में रुककर रतजगा करना पड़ रहा है.
देश में कर्नाटक और तमिलनाडु के बाद टमाटर की बंपर पैदावर के लिए मशहूर जशपुर के पत्थलगांव और फरसाबहार इलाके के किसान सदमे में डूबे हुए हैं. इस साल टमाटर की अच्छी पैदावार हुई हैं लेकिन नोटबंदी ने उनके सपनों को तोड़ दिया है. आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है कि जशपुर में टमाटार दो से तीन रुपए किलो में बेचा जा रहा है. शहरों तक पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत पांच से आठ रुपए हो गई है. रिजर्व बैंक के निर्देश के बाद सहकारी बैंकों में लेन-देन नहीं हो रहा है. प्रदेश के अधिकांश किसानों का खाता ग्रामीण सहकारी बैंकों में ही है. किसानों को खून का घूंट पीकर जीवन यापन करना पड़ रहा है. नोटबंदी से देश में कई लोग मौत को गले लगा चुके हैं. प्रदेश के महासमुंद जिले के एक किसान उत्तम यादव की मौत की वजह भी नोटबंदी ही थी.
बस्तर में नहीं चलता कोई कानून
पीयूसीएल के प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष लाखन सिंह कहते हैं, 'बस्तर पुलिस निर्दोष ग्रामीणों को मौत के घाट उतारने के खेल में लगी हुई है. वहां सामाजिक कार्यकर्ताओं के पुतले जलाए जाते हैं, इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं हैं कि वहां लोकतंत्र और संविधान निलंबित है. बस्तर में केवल एक अफसर कल्लूरी का कानून चलता है. अगर वहां कुछ भी असंवैधानिक होता है तो उस पर आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जा सकता.
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