भृष्टाचार में छतीसगढ़ सबसे आगे?
- 2 नवंबर 2016
छत्तीसगढ़ में भारतीय वन सेवा के एक अफ़सर राजेश चंदेला के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के एक बड़े मामले में कार्रवाई नहीं होने को लेकर हंगामा मचा हुआ है. आरोप है कि राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह की अनुशंसा के बाद भी कार्रवाई की फ़ाइल केंद्र सरकार को नहीं भेजी गई.
असल में 2014 में भारतीय वन सेवा के अफ़सर राजेश चंदेला के ख़िलाफ़ एंटी करप्शन ब्यूरो ने कार्रवाई की थी और कई करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति ज़ब्त की थी.
इस मामले में मुख्यमंत्री ने चंदेला के ख़िलाफ़ अभियोजन की स्वीकृति दे दी. इसके बाद चंदेला के कथित भ्रष्टाचार की फ़ाइल को अभियोजन के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाना था. लेकिन यह फ़ाइल कभी केंद्र सरकार को भेजी ही नहीं गई.
दो दिन पहले सार्वजनिक हुई इस बात के बाद राज्य सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है.
आम आदमी पार्टी के नेता सुबीर राय कहते हैं, "छत्तीसगढ़ भ्रष्ट अफ़सरों की सबसे पसंदीदा जगह है. सरकार के साथ मिल कर अफ़सर मज़े उड़ा रहे हैं और राज्य की भाजपा सरकार ज़ीरो टॉलरेंस का दावा कर रही है."
सुबीर राय की बात से असहमत होना आसान नहीं है.
असल में भ्रष्टाचार के मामलों को रफ़ा-दफ़ा करने या उनकी फ़ाइलों को बंद करने में छत्तीसगढ़ देश में सबसे आगे है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ताज़ा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश के 29 राज्यों में पिछले साल एंटी करप्शन ब्यूरो तथा विजिलेंस विभाग द्वारा संज्ञेय अपराध के रूप में दर्ज 147 मामलों की जांच नहीं की गई या उनकी जांच बंद कर दी गई. इन 147 मामलों में से अकेले 81 मामले छत्तीसगढ़ के हैं.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल कहते हैं, "हम पहले ही कहते रहे हैं कि छत्तीसगढ़ की सरकार देश की भ्रष्टतम सरकार है और केंद्र की एजेंसी ने इस बात को सही ठहराया है. राज्य में जितने भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आते हैं, मुख्यमंत्री रमन सिंह उनको दबाने का काम करते हैं."
लेकिन भाजपा के प्रवक्ता और विधायक श्रीचंद सुंदरानी एनसीआरबी के आंकड़ों को सही नहीं मानते.
सुंदरानी कहते हैं, "रमन सिंह की सरकार भ्रष्टाचार मुक्त छत्तीसगढ़ की दिशा में लगातार काम कर रही है. एनसीआरबी के जो आंकड़े हैं, वो पुराने होंगे. रमन सिंह के कार्यकाल में हमने भ्रष्टाचार पर क़ाबू पाया है."
हालांकि किसान नेता आनंद मिश्रा इससे सहमत नहीं हैं.
आनंद मिश्रा का कहना है कि भ्रष्टाचार के इन आंकड़ों के अलावा पिछले कई सालों से राज्य में 45 आईएएस अफ़सरों के ख़िलाफ़ मामले पड़े हुये हैं और सरकार उन मामलों में जांच की अनुमति नहीं दे रही है.
आनंद मिश्रा कहते हैं, "सरकार का एक विभाग जिस मामले में भ्रष्टाचार की बात कहता है, उसी मामले में सरकार का दूसरा विभाग सरकार को क्लिनचीट दे देता है."
विपक्षी दल कांग्रेस के पास भी ऐसे मामलों की भरमार है.
कांग्रेस नेता शैलेष नितिन त्रिवेदी पिछले साल 12 फरवरी को एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा की नागरिक आपूर्ति निगम में 28 जगहों पर छापामारी का उदाहरण देते हुए दावा करते हैं कि इस मामले में 36 हज़ार करोड़ का घोटाला हुआ है. एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा ज़ब्त एक कथित डायरी के हवाले से इस मामले में राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके परिवार के सदस्यों के ख़िलाफ़ भी रिश्वतख़ोरी के आरोप लगे थे.
एंटी करप्शन ब्यूरो और आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले में 17 बड़े अफ़सरों को गिरफ़्तार किया और इनमें से कई अभी भी जेल में हैं. इस मामले में राज्य सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज़ करने की केंद्र से अनुमति भी मांगी.
लेकिन सरकार की ओर से ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में शपथपत्र दे कर कहा गया कि ऐसा कोई घोटाला हुआ ही नहीं है.
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, ''17 अफ़सरों की गिरफ़्तारी, दो आईएएस अफ़सरों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने की अनुमति और बरामद किये गये करोड़ों की नग़दी सच है या सरकार का हलफ़नामा? दोनों ही कार्रवाई राज्य सरकार ने ही की है. यह बताता है कि छत्तीसगढ़ सरकार किस तरह से काम कर रही है."
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