Tuesday, September 23, 2014

पानी की डगर-जीवन की नइया, संघर्ष के बहाव में खुद ही खेवइया

पानी की डगर-जीवन की नइया, संघर्ष के बहाव में खुद ही खेवइया

Niya Slope of water of life, the flow of conflict itself Keviya


राजेश लाहोटी  [ patrika ]

Niya Slope of water of life, the flow of conflict itself Keviya
9/24/2014 8:09:31 AM







करम्हा (अंबिकापुर)। अथाह संघर्ष के बीच नन्हीं आंखों में बड़े-बड़े सपने। तमाम दुश्वारियों के होते हुए भी कुछ बनने, कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए मीलों दूर का सफर। मां-बाप के मना करने पर भी नदी पार कर दूसरे गांव के स्कूल में पढ़ने जाने की जिद। अंबिकापुर से मात्र 60 किलोमीटर दूर मैनपाट से होकर गुजर रहे पथरीले रास्तों पर मौजूद करम्हा गांव के जूनापारा का यह दृश्य सबको हैरान करने वाला है। छोटे-छोटे बच्चे गांव में स्कूल नहीं होने पर नदी पार करके दूसरे स्कूल में पढ़ने जाते हैं।
नदी के बहाव से वे खुद को बचाते जैसे-तैसे स्कूल से घर और घर से स्कूल पहुंचते हैं। पांच गांवों को अलग-अलग करने वाली मछली नदी में 12 महीने पानी होता है, लेकिन बच्चों ने भी अब मान लिया है कि उनके लिए सरकार न तो गांव में स्कूल खोलेगी और न ही नदी पर पुल बनाएगी। उनका संघर्ष ही उन्हें मंजिल तक पहुंचाएगा।
अंबिकापुर से मैनपाट की ओर बढ़ते हैं तो अहसास होता है कि हम कश्मीर जैसी ही खूबसूरत वादियों में हैं। नैसर्गिक सौंदर्य से भरे मैनपाट से जैसे ही गांव की ओर रूख करते हैं तो घाटों के बीच गुजरती बेहतरीन सड़क अचानक गायब हो जाती है। पथरीला रास्ता शुरू हो जाता है। ऎसा कि चलना भी मुश्किल है। मेनरोड से केवल 15 किलोमीटर दूर है करम्हा गांव, लेकिन पहुंचने में ही एक घंटा लग जाता है। इस गांव के अब दो हिस्से हो गए हैं। पुराना करम्हा जूनापारा और नया करम्हा, जिसे अब बारीभंवना भी कहते हैं। बीच में मछली नदी है, जिसके कारण दोनों, दो गांव बन गए हैं। पुराना करम्हा गांव में कक्षा एक से पांच तक का ही स्कूल है।
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