Saturday, September 20, 2014

परम्पराये अभी भी भी उद्वेग्लित करती हैं


परम्पराये  अभी भी  भी उद्वेग्लित  करती हैं 







परम्पराये  अभी भी  भी उद्वेग्लित  करती हैं , गाँव  अभी भी सामूहिकता  और  आपसी सहभागिता की  मिसाल  हैं /
पिछले दिनों  विस्थापन के मुद्दे  पे काम करने के लिए  सूरजपुर [ छत्तीसगढ़ ] जिले के प्रेमनगर  क्षेत्र में महोरा  गाँव  में दो तीन दिन रहना हुआ , अनार साय के यहाँ रहना था , पास के  ही  परिवार में  बेटे की शादी हो रही थीजिन जिन घरो में हमारा जाना हुआ ,लगभग सारे गाँव के लोग शादी में शामिल थे , सब लोग  रात और दिन का खाना उनके यहाँ ही खाते थे , प्रेमनगर से  गाडा  बाज आया था ,जो धीरे धीरे नाच की धुन पे घंटो बजता रहता हैं ,
हमलोग भी आमंत्रित थे , चले गएहमारे साथ  अनार साय  का परिवार  साथ में टोकरी में लोकी ,टमाटर , धनिया , चावल और तेल  का डिब्बा  ले जा रहे थे , सहज  रूप से सोचा की ,कही जाना होगा ,लेकिन ये सारा सामान  वे शादी वाले घर  देने जा रहे थे , वह जाके  देखा  तो  मेरे लिए  बड़ा  रोमांचकारी  अनुभव  था , की उनके आँगन  में , ऐसी ढेरो टोकनिया  रखी थी,  जो विभिन्न   घरोँ  से सामन  भर के  आई थीइसमें खाने और शादी में लगनेवाला सारा सामन था . आँगन में बहुत सी औरतें  पत्तल बना रही थी या दुसरे काम  कर रहीं थी . रात में नाच बाजा  देकने के लिए कमसेकम  200 लोग मोजूद थेबारात के लिए तो सारे गाँव ले बच्चे  बूढ़े ,महिलाये  भारी संख्या में थी , सबसे बड़ी बात  की ये  परिवार बेहद गरीब ही हैंमुझे  लगा की यहाँ सामूहिकता  और   जिम्मेदारी का जीवन   जीने  की सीख  सीखने की जरुरत हैं / दुर्भाग्य  से इन्हें ही संस्कृतिक  रूप से मुख्यधारा  में लाने के लिए  बहुत से हिन्दू संघटन  हल्ला मचा  रहे हैं .
एक और  द्र्श्य  था , जिसमे  दूल्हा  की बहन  अच्छा खासा   भारी  दुल्हे को अपनी पीठ  पे लादे  कंमसे  कम  45 मिनिट  नाचती रही , जिस दुल्हे को एक बार उठाना मुश्किल हो , लेकिन वो बहन ,उस उठाये नाचती रहीपहले मुझे लगा की कोई  होगी लेकिन बाद में पता चला की वो तो दुल्हे मियाँ थे,
हो सकता है की मेरा सम्बन्ध  गाँव से कई सालो से टूट गया है , लेकिन ये सब देखना मुझे बहुत सुखद लगा /
[ लाखन सिंह ]


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