Wednesday, September 24, 2014

254 आदिवासी किसानों की जमीन उद्योगों को देने की तैयारी

254 आदिवासी किसानों की जमीन उद्योगों को देने की तैयारी


[ naiduniya ]



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गंगेश द्विवेदी, रायपुर। प्रदेश में 254 आदिवासी किसानों की जमीन उद्योगों को देने की तैयारी चल रही है। प्रदेश के अलग-अलग जिले में कलेक्टरों के यहां आवेदन लगाए गए हैं। अधिकतर जगहों में मामले की पड़ताल चल रही है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इन लोगों की जमीन चूंकि अलग-अलग उद्योगों को आवंटित किए गए क्षेत्र में आ गई है, इसलिए यह जमीन कंपनी को बेचनी होगी, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब उद्योग जमीन का मुआवजा देकर खरीदी गई जमीन के बदले दूसरी जगह जमीन की रजिस्ट्री उसी तारीख पर करवा दें।
प्रदेश में सबसे ज्यादा जमीन रायपुर संभाग में आदिवासियों की है। बलौदाबाजार, महासमुंद, धमतरी को मिलाकर 160 मामले बिक्री के लिए पेंडिंग हैं। इनमें से सबसे अधिक मामले बलौदाबाजार में हैं। यहां करीब 145 आदिवासियों की जमीन खरीदने के लिए यहां की सीमेंट कंपनियों ने आवेदन लगाया है। बिलासपुर संभाग में 63 मामले हैं, जिसमें से 57 मामले चांपा-जांजगीर के हैं। इसी तरह दुर्ग में 23 और सरगुजा में 8 आदिवासियों की जमीन खरीदी का आवेदन लगाया गया है। जिन आदिवासियों की जमीन खरीदने के लिए आवेदन लगे हैं, उनमें से अधिकतर आदिवासी ऐसे हैं, जिनके पास बमुश्किल 2 से 4 एकड़ जमीन है। इनमें ऐसे किसान भी शामिल हैं, जिनके पास आधा एकड़ जमीन भी नहीं है। इनकी जमीन बिक गई तो ये लोग सड़क पर आ जाएंगे।
सबसे ज्यादा बिकी चांपा-जांजगीर में
जानकारों के मुताबिक आदिवासियों की जमीन की खरीदी-बिक्री प्रदेश में लंबे समय से चल रही है। राज्य में पिछले 10 सालों में आदिवासियों की हजारों हेक्टेयर जमीन उद्योगों की भेंट चढ़ गई। चांपा-जांजगीर जिले में पिछले पांच-छह सालों ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं, जिनमें आदिवासियों की जमीन तमाम नियमों को ताक पर रखकर कंपनियों ने खरीद ली और वे भूमिहीन हो गए।
कानून का नहीं हो रहा पालन
जानकारों के मुताबिक भू राजस्व संहिता की धारा - 165 के तहत कंपनियां आदिवासियों की जमीन खरीदने का आवेदन लगाती है। इस धारा के मुताबिक किसी भी आदिवासी की जमीन खरीदने के लिए कम से कम कलेक्टर की इजाजत जरूरी है। कलेक्टर इस धारा के तहत तभी किसी आदिवासी की जमीन बिक्री की इजाजत देगा, जब उसके पास आजीविका चलाने के लिए कम से कम 5 एकड़ जमीन शेष बचे। यदि ऐसा नहीं होता है, जिस तारीख को बिक्रीनामा होगा, उसी तारीख को आदिवासी किसान मुआवजे के पैसे से दूसरी जगह जमीन खरीदकर रजिस्ट्री करवाए, लेकिन इस कानून का बड़े पैमाने पर प्रदेश में उल्लंघन हो रहा है।
- धारा -165 के तहत आवेदन लगे हैं तो इसका यह अर्थ नहीं है कि जमीन की खरीदी-बिक्री हो गई। कानून की शर्तों का पालन कराने की जिम्मेदारी अफसरों पर है, उन्हें देखना है कि नियमों का पूरी तरह पालन हो रहा है या नहीं? इसके बावजद आदिवासियों की आजीविका से जुड़े इस कानून के उल्लंघन का एक भी मामला मेरी नजर में आया तो उस अफसर पर सीधी कार्रवाई होगी।
-प्रेमप्रकाश पांडेय, राजस्व मंत्री
- प्रदेश में लग रहे उद्योगों में धारा-165 का लगातार उल्लंघन हुआ है। आदिवासियों की जमीन खरीदकर उद्योगपतियों ने उन्हें मुआवजा तो दिया लेकिन दूसरी जगह जमीन नहीं खरीदवाई । इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग और अफसरों ने इस ओर से आंख मूंद लिया है।
-मो. अकबर, छत्तीसगढ़ मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता

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