Monday, September 22, 2014

पोलावरम परियोजना का पुरजोर विरोध हो - अजीत जोगी


पोलावरम परियोजना का पुरजोर विरोध हो - अजीत जोगी



रायपुर। 22/09/2014। पोलावरम बहुउद्देशीय परियोजना के संबंध में वर्तमान राज्य शासन के लचरकमजोर और मात्र औपचारिक विरोध पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हुये पूर्व मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी ने कहा है कि पोलावरम परियोजना से छत्तीसगढ़ राज्य को होने वाले नुकसान और तबाही को देखते हुये इस योजना का राज्य शासन के अतिरिक्त प्रदेश के सभी वर्गों को पुरजोर विरोध करना चाहिये। इस परियोजना से छत्तीसगढ़ को लेशमात्र भी लाभ नहीं पहुंचने वाला है। इसके विपरित डूब में जो उन्नीस आदिवासी ग्राम आ रहे हैंउनमें विकासखण्ड मुख्यालय कोन्टा के अतिरिक्त हिर्राबोरभज्जीइंगरम जैसे महत्वपूर्ण ग्राम पूर्णरूप से जलमग्न हो जायेंगे। इसी इलाके के भूगर्भ में बहुमूल्य खनिज जैसे ग्रेनाईट,क्वार्टजकोरंडम और लौह अयस्क भी सदा के लिये बांध के नीचे दबे रहेंगे। इस परियोजना से अबूझमाड़ तथा उससे लगे हुये अन्य वन्य क्षेत्र डूब में आ रहे हैं। यह वन क्षेत्र विश्व के बायोडायवर्सिटी (जैविक विभिन्नता) के लिये सबसे धनाढ्य क्षेत्रों में शामिल है। विश्व की यह बायोडायवर्सिटी धरोहर भी सदैव के लिये नष्ट हो जायेगी। वैसे भी शबरी और उसकी सहायक नदियों में लगभग वर्षभर लबालब पानी भरा रहता है और बांध बन जाने के बाद जो बेक वाटर अर्थात ठेल का पानी है उससे दोरनापाल तक के इलाके जलमग्न हो जायेंगे।
       उपरोक्त वर्णित पूरे इलाके में विलुप्त होती हुइ जनजाति दोरला आदिवासी निवास करते हैं। इन गांवों के जलमग्न होने से इस जनजाति का भी ना तो ठीक से पुनस्र्थापन हो पायेगा ना ही उनकी अद्भुत एवं विशिष्ठ संस्कृति और परम्परा संरक्षित रह सकेगी। एक ओर पूरा देश आदिवासी संस्कृति को बचाये रखने के लिये प्रयासरत है वहीं पोलावरम बांध से दोरला जनजाति की उपस्थिति और संस्कृति पूर्णरूपेण नष्ट होने की संभावना प्रबल है। जलमग्न होने वाले क्षेत्र में दोरलामुरियामाडि़या और गोंड आदिवासियों के आदिकाल से स्थापित देवी-देवता भी डूब जायेंगे। वनाच्छादित क्षेत्रो में इन देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा भी अन्य स्थलों में आदिवासी परम्परा के अनुसार करना संभव नहीं है।
       इन सब बातों को देखते हुये राज्य शासन ने सर्वोच्च न्यायालय में जो औपचारिक विरोध का प्रकरण दायर किया है वह छत्तीसगढ़ के हित में नहीं माना जा सकता। वर्ष 1978 में श्री सखलेचा के मुख्यमंत्रित्वकाल में पोलावरम परियोजना के समझौते पर हस्ताक्षर हुये थे। अन्तराल के इन तीन-चार दशकों में दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आया है। अब छत्तीसगढ़ अलग से राज्य बन चुका है और हम पोलावरम परियोजना से अपने राज्य को होने वाली उपरोक्त तबाही को बर्दाश्त नहीं कर सकते।
       श्री जोगी ने राज्य शासन से अपेक्षा की है कि सर्वोच्च न्यायालय में उड़ीसा राज्य की तरह इस योजना का पुरजोर विरोध किया जाय। यह भी उल्लेखनीय है कि गोदावरी जल विवाद अभिकरण में शबरी नदी के तट पर सुरक्षागत् तटबन्धों के निर्माण के संबंध में जो अवार्ड पारित किया गया हैउस पर भी छत्तीसगढ़ राज्य की सहमति नहीं ली गई थी। इसी प्रकार ईआईए के वर्ष 1994 के नोटिफिकेशन के अनुसार छत्तीसगढ़ में लोक सुनवाई भी नहीं की गई। आदिवासियों के हित में बने वर्ष 1996 के पेसा कानून का भी पालन नहीं किया गया है और संबंधित ग्रामों की ग्राम सभा से कोई सहमति नहीं ली गई है।
       इस प्रकार पोलावरण परियोजना के विरोध के पर्याप्त कानूनीसंवैधानिक और नैतिक कारण विद्यमान हैजिनके आधार पर राज्य शासन को तत्काल सर्वोच्च न्यायालय में पुनरीक्षिण याचिका दायर करके स्थगन आदेश प्राप्त किया जाना चाहिये। आंध्र और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की आज की मुलाकात भी इन संदर्भों में संदेहास्पद प्रतीत हो रही है। यदि परियोजना का विरोध नहीं किया गया तो छत्तीसगढ़ की जनता को जन आन्दोलन के लिये तैयार रहना चाहिये।

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