Tuesday, February 21, 2017

छत्तीसगढ़ नसबंदी कांड: 'तो क्या महिलाओं ने अपनी जान ख़ुद ली थी?'

छत्तीसगढ़ नसबंदी कांड: 'तो क्या महिलाओं ने अपनी जान ख़ुद ली थी?'

  • 20 फरवरी 2017
छत्तीसगढ़ का नसबंदी मामलाइमेज कॉपीरइटALOK PRAKASH PUTUL
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नसबंदी कांड में हाईकोर्ट ने नसबंदी करने वाले डॉक्टर आरके गुप्ता का नाम आरोप पत्र से हटाने का आदेश दे दिया है.
अदालत ने इसके साथ ही नसबंदी के बाद हुई मौतों के लिए डॉक्टर को ज़िम्मेवार नहीं माना है.
इससे पहले महिलाओं को दी गई दवाओं को भी मौत का कारण नहीं माना गया था.
नसबंदी कांड में कई गड़बड़ियों को उजागर करने वाले फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के राष्ट्रीय संयोजक प्रवीण पटेल ने बीबीसी से बातचीत में आरोप लगाया, "सरकार ने पूरे मामले में जिस तरह से एक के बाद एक साजिश रची, उससे अब यही लगता है कि इन महिलाओं की मौत के लिए कोई भी ज़िम्मेवार नहीं है. इन महिलाओं ने ख़ुद ही अपनी जान ले ली."
प्रवीण पटेल का कहना है कि नसबंदी से जुड़े इस मामले को उनका संगठन ऊपरी अदालत ले जाएगा.
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सरकारी नसबंदी शिविर में हुई थी मौतें

नवंबर 2014 में बिलासपुर के पेंडारी और पेंड्रा में सरकारी नसबंदी शिविर में 137 महिलाओं का ऑपरेशन हुआ. इसमें 13 महिलाओं सहित 18 लोगों की मौत हो गई थी.
इस मामले में तीन घंटे में 83 महिलाओं का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर आरके गुप्ता को गिरफ़्तार किया गया था.
नसबंदी के दौरान जिन महिलाओं की मौत हुई, उनके पोस्टमॉर्टम और कल्चर रिपोर्ट में आशंका जताई गई थी कि संक्रमण की वजह से ये मौतें हुईं.
रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की मौत संक्रमण से होने वाली सेप्टिसिमिया, सेप्टिक शॉक और पेरिटोनिटिस से हुई है.
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अलग-अलग जांच में भी यह साफ़ हुआ कि महिलाओं की नसबंदी जिस मशीन से की गई, उसे संक्रमणमुक्त नहीं किया गया था.
जिन परिस्थितियों में महिलाओं का ऑपरेशन किया गया, वहां संक्रमण का ख़तरा लगातार बना हुआ था.
इस आधार पर सरकार ने डॉक्टर आरके गुप्ता को महिलाओं की मौत के लिए ज़िम्मेवार बताया था.
बाद में राज्य के स्वास्थ्य सचिव ने एक 'जांच रिपोर्ट' के आधार पर दावा किया था कि महिलाओं को दी गई सिप्रोसीन दवा में चूहा मारने वाले ज़हर का अंश पाया गया था.

दवाओं को पहले ही क्लीन चिट

सरकार ने कथित रूप से अलग-अलग लैब में सिप्रोसिन और आईबूप्रोफेन दवा की जांच कराई. दावा किया गया कि जांच रिपोर्ट में दवाओं में ज़हर की पुष्टि हुई है.
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इन सबको आधार बनाते हुए आरोपी डॉक्टर आरके गुप्ता को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया.
दूसरी ओर, सरकार ने सिप्रोसीन-500 दवा बनाने वाली रायपुर की कपंनी महावर फ़ार्मा के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज किया है.
इसके अलावा दवा कंपनी के मालिकों और डिस्ट्रीब्यूटर को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया है. साथ ही राज्य सरकार ने 12 दवाओं और दूसरी चीजों पर प्रतिबंध भी लगा दिया था.
लेकिन जिस नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी की जांच रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने दवाओं में ज़हर होने का दावा किया, उसने साफ कर दिया कि उसके यहां कभी ऐसी कोई जांच ही नहीं हुई थी.
दूसरे परीक्षण करने वाले लैब ने भी दवा की पर्याप्त मात्रा नहीं होने का हवाला देते हुए जांच नहीं करने की बात कही.
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छत्तीसगढ़ स्टेट फॅारेंसिक साइंस लेबोरेटरी ने भी महिलाओं के विसरे की जांच रिपोर्ट में ज़हर नहीं पाए जाने बात कही थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महावर फ़ार्मा के मालिकों को भी ज़मानत दे दी.
(बीबीसी हिन्दी

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