Monday, January 9, 2017

बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न की घटना ने सरकार के आदिवासी उत्थान के तमाम दावो की पोल खोल दी है .

🔴 संपादकीय  (पत्रिका )

दोगला आचरण क्यों ?
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बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा  आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न की घटना  ने सरकार के आदिवासी उत्थान के तमाम दावो की पोल खोल दी है .
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महिलाओं के साथ दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न का इलाज़ सिर्फ आर्थिक मुआवज़ा दिलाना रह गया है ?
वो भी तब जब कि उसके साथ दुष्कर्म करने  वाला कोई और नहीं बल्कि सुरक्षा कर्मी हो .
वे सुरक्षा कर्मी जिनकी जिम्मेदारी जनता को सुरक्षा मुहैया कराने की होती है .
मामला छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का है ,सवा साल पहले गश्त के दौरान सुरक्षा बलों ने महिलाओं पर हमला करके न केवल उनके साथ मारपीट ही की बल्कि दुष्कर्म और यौनशोषण से भी बाज नहीं आये.
उत्पीड़ित महिलाओं द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने में भी पुलिस ने आनाकानी की,उत्पीड़न की शिकार महिलाये आदिवासी थी इसके बाबजूद अनुसूचित जाति जन जाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत मामले दर्ज नही किये गये .मानवाधिकार आयोग ने मामले की तह में जाकर जांच की तब जाकर अनेक अनियमितता सामने आई.
आयोग ने शनीवार को छत्तीसगढ़ सरकार को मुआवजा देने के लिये नोटिस जारी किया . आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को मुआवजा मिले लेकिन रक्षक से भक्षक बन बैठे इन सुरक्षा कर्मीयों के खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिए .
यह पहला मामला नही है जब आदिवासी महिलाओं के साथ ज्यादती की गई हो ,मामले रोज रोज होते रहते है लेकिन उजागर नहीं होते खासकर जब की अत्याचार करने वाले सुरक्षा कर्मी होँ
मानवाधिकार के नोटिस के बाद राज्य सरकार महिलाओं को मुआवजा तो दे ही लेकिन जिम्मेदार सुरक्षाकर्मीयों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जायें .
मामला उन अधिकारियों पर भी दर्ज किया जायें जिन्होंने महिलाओं की रिपोर्ट दर्ज करने में कोताही की थी .
आदिवासियों के उत्थान की बढचढ कर बात करने वाली सरकार को इस प्रकार के प्रकरण में ज्यादा सक्रियता दिखाई देनी चाहिए ताकि जनता को उनपर भरोसा कायम रह सके.

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दिनांक 9.01.2017
रायपुर

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