Thursday, January 26, 2017

बस्तर छोड़ दो वरना काट दूंगा', बेला भाटिया को धमकी

बस्तर छोड़ दो वरना काट दूंगा', बेला भाटिया को धमकी

  • 3 घंटे पहले
Bela Bhatiaइमेज कॉपीरइटJEAN DREZE
23 जनवरी, दोपहर का वक़्त. बस्तर के दूर-दराज़ परपा गांव में बेला भाटिया के घर के सामने फ़र्राटे भरती, धूल उड़ाती हुई एक बोलेरो जीप आकर रुकी.
साथ दौड़ रही मोटरसाइकिल और जीप से लोगों की भीड़ उतरी, और क़रीब 30 लोगों की इस भीड़ में से एक शख़्स ने आगे आकर बेला से कहा, 'काट दूंगा, बस्तर छोड़ दो'.
भीड़इमेज कॉपीरइटBELA BHATIA
बेला कहती हैं कि ये पहली बार नहीं कि उनको इस तरह की धमकी मिली थीं. उनके अनुसार पहले भी उनका पुतला फूंका जा चुका है, कुछ ने उन्हें 'नक्सली दलाल क़रार दिया और उनके ख़िलाफ़ पर्चे भी बांटे गए.
लेकिन 30 सालों से लोगों के अधिकारों के लिए लगातार काम करनेवाली बेला को हिंसा की इस ताज़ा धमकी ने झकझोर कर रख दिया है.
उनसे बात करने पर उनकी आवाज़ में भय, आतंक साफ़ समझ में आता है. वो अपना मकान छोड़ दूसरी जगह देख रही हैं.
पिछले कुछ महीनों में कई सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आरोप लगाते रहे हैं कि हिंसा का डर दिखाकर प्रशासन की शह पाए कुछ लोग उन्हें छत्तीसगढ़ से बाहर भगाना चाहते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार इन तमाम आरोपों से इनकार करती है.
पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ माओवादी हिंसा का शिकार रहा है और उस नाम पर पूर्व की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों पर आदिवासियों के दमन के आरोप लगते रहे हैं.
छत्तीसगढ़ भारत के उन स्थानों में है जहां सुरक्षाबलों की तादाद सबसे ज़्यादा है और यहां पत्रकारों और मानवाधिकारों की बात करने के लिए परिस्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण बताई जाती हैं.
इस तरह की भी ख़बरें आई थीं कि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने ऑपरेशन ग्रीनहंट नाम के नक्सल विरोधी आंदोलन की रणनीति तैयार की थी, लेकिन सरकार ने इन ख़बरों को ग़लत क़रार दिया था.
Bela Bhatia in the 1980sइमेज कॉपीरइटJEAN DREZE
लेकिन कई मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया की कहानी को इसका ताज़ा उदाहरण मानते हैं.
बेला भाटिया जैसे कार्यकर्ताओं का आरोप है कि माओवादियों से निपटने की आड़ में सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लोगों के मानवाधिकार का हनन कर रहे हैं.
23 जनवरी को भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ था. बीबीसी से बातचीत में बेला ने उस दिन की घटना का विस्तार से ज़िक्र किया.
बेला बताती हैं कि उस दिन दोपहर धीरे-धीरे भीड़ ने उनकी ओर बढ़ना शुरू किया था. भीड़ का नेतृत्व करने वाले ने अपना नाम राज बताया था.
बेला के अनुसार राज ने बेहद आक्रामक भाषा में तुरंत घर नहीं छोड़ने की सूरत में उनका घर जला देने की धमकी दी.
सोमारीइमेज कॉपीरइटBELA BHATIA
भीड़ में शामिल लोग एक दूसरे से केरोसीन लाने को कह रहे थे. बेला ने कलेक्टर को फ़ोन किया. पुलिस आई लेकिन घर जला देने को लेकर नारेबाज़ी चलती रही.
बेला कहती हैं, "पुलिस इसे एक प्रदर्शन के तौर पर देख रही थी लेकिन ये प्रदर्शन से बहुत ज़्यादा था."
बेला के अनुसार इस घटना के एक दिन पहले रात क़रीब डेढ़ बजे किसी ने घर के बाहरी दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक दी थी.
मकान मालिक और बेला दोनो दौड़कर पहुंचे तो बाहर दो लोग खड़े थे.
स्ट्रीट लाइट नहीं होने के कारण बाहर घुप्प अंधेरा था लेकिन थोड़ा आगे बोलेरो जीप और बाइक पर कुछ लोग खड़े दिखाई दे रहे थे.
एक व्यक्ति ने कड़े अंदाज़ में मकान मालिक को बाहर बुलाने को कहा. उन्होंने मना कर दिया.
एक घंटे बाद सभी लोग वहां से चले गए. तब उनकी जान में जान आई.
हालांकि बस्तर के स्थानीय प्रशासन और फिर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया है.
कौन हैं बेला भाटिया?
बेला भाटिया ने बिहार के नक्सल आंदोलन पर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की है. वो मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ में ऑनररी प्रोफ़ेसर भी रहीं.
नक्सल
मानवाधिकार पर उन्होंने दो साल इराक़ और फ़लस्तीन में काम किया. दलित और आदिवासियों पर उन्होंने कई राज्यों में काम किया है.
माओवादीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
बेला दिल्ली के सीएसडीएस में काम करती थीं जब वर्ष 2005 में सलवा जुडुम ने उनका ध्यान खींचा.
माओवादियों से निपटने के लिए हथियारों से लैंस सलवा जुदुम को सरकार की मदद से खड़ा किया गया था.
उसके कार्यकर्ताओं पर मानवाधिकार उल्लंघन के कई आरोप लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में सलवा जुदुम को अवैध घोषित कर दिया.
हिंसा का महिलाओं पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए बेला एक टीम के साथ छत्तीसगढ़ के कैंपों में पहुंची.
वो बताती हैं, "वहां डर और ख़तरे का माहौल था. लोग घबराए हुए थे. हमें हर जगह रोका जाता था. ऐसे हालात में सच का पता लगाना आसान नहीं था."
बेला भाटियाइमेज कॉपीरइटJEAN DREZE
बेला चाहती थीं कि वो गांव में रहकर लोगों की ज़िंदगी से जुड़ें लेकिन माओवादी हिंसा, ऑपरेशन ग्रीनहंट आदि के कारण उन्हें कोंटा, जगदलपुर कोई भी घर किराए पर नहीं मिला.
उन्होंने कुछ साल मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट में गुज़ारे लेकिन वो लगातार छत्तीसगढ़ आती रहीं.
वर्ष 2013 में वो बस्तर के नारायणपुर ज़िले में एक सरकारी गेस्टहाउस में थी तब रात क़रीब 10 बजे किसी ने उनका दरवाज़ा खटखटाया.
बाहर क़रीब दस लोग खड़े थे.
देर रात इतने सारे लोगों का आना उन्हें पसंद नहीं आया लेकिन उन्हें पता था कि उनके कार्यक्षेत्र में उन्हें आधिकारिक पूछताछ और ऐसी स्थितियों का सामना करना होगा.
छत्तीसगढ़इमेज कॉपीरइटALOK PUTUL
छत्तीसगढ़ में उनसे आधिकारिक पूछताछ की ये पहली घटना थी.
बेला बताती हैं, "अधिकारी का कहना था कि उन्हें किसी बाहरी व्यक्ति के आने की सूचना मिली है. वो मेरे सारे दस्तावेज़ों की जांच कर रहे थे. वो हर बात पर मुझ पर शक कर रहे थे और मेरी बात मानने को तैयार नहीं थे."
ये वो दिन थे जब सभी बाहरी लोगों को शक की निगाह से देखा जाता था.
बेला से ये पूछताछ आधे घंटे चली. उनसे पूछा गया कि वो कितनी दिनों नारायणपुर में रहेंगी, किससे और क्यों मिलेंगी.
बार-बार आने-जाने से बचने के लिए 2015 में बेला ने मुंबई से घर-बिस्तर समेटकर बस्तर का रुख़ किया.
अपने साथ वो अपनी क़रीबी कुतिया सोमारी को साथ लेकर आई थीं.
कभी किसी धर्मशाला में वक़्त बीता, कभी किसी दुकानदार से प्रार्थना की कि वो पास ही एक खाट बिछा दें.
वो कहती हैं, "लोग समझ जाते थे कि मेरे पास रहने की जगह नहीं है. मुझे हर जगह लोगों ने मदद की है."
एक मकान किराए पर मिला लेकिन कुछ महीने बाद अचानक मकान मालिक ने मकान ख़ाली करने को कहा.
नवंबर 2015 में परपा गांव स्थित ताज़ा मकान में पहुंची.
उन्हें बाहर निकालने की कोशिशों पर मार्च 2016 में बेला भाटिया ने एक खुला पत्र लिखा.
'मैं बस्तर नहीं छोडूंगी' नाम से इस लेख में उन्होंने लिखा, "मैंने सलवा जुडुम आंदोलन के दौरान गांव वालों पर कई अत्याचार देखे. हज़ारों लोगों के घरों को आग लगा दी गई, कई सौ आदिवासियों को मार दिया गया, उनकी बेटियों, पत्नियों के साथ बलात्कार किया गया."
छत्तीसगढ़इमेज कॉपीरइटALOK PUTUL
बेला भाटिया बस्तर पर किताब लिख रही हैं लेकिन वो आज भी बस्तर छोड़न को तैयार नहीं हैं.
उन पर हमला करने वाले लोग कौन हैं, इस पर वो कहती हैं, "यहां बहुत कुछ फ़र्ज़ी हो रहा है. इन सबके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना हमारा कर्तव्य है. उन्हें लगता है कि हम ख़िलाफ़ हैं. फिर वो हमारे ऊपर लेबल डालते हैं, कि हम माओवादी हैं, दलाल हैं. सफ़ेदपोश नक्सली हूं. मैं तीस साल से संविधान के दायरे में काम कर रही हूं. ये एक तरह से नीति की तरह है."
बेला के मुताबिक़ वो अपना काम किसी दूसरी जगह से जारी रखेंगी.
(बीबीसी हिन्दी 

No comments:

Post a Comment