Tuesday, September 29, 2015

इस अभियान की सफलता से राजनीतिक दल डरे हुए हैं , वे अभी तरह - तरह से षड्यंत्र क रेंगे -कमल शुक्ला


इस अभियान की सफलता से राजनीतिक दल डरे हुए हैं , वे अभी तरह - तरह से षड्यंत्र करेंगे 





कमल शुक्ला 

इस अभियान की सफलता से राजनीतिक दल डरे हुए हैं , वे अभी तरह - तरह से षड्यंत्र करेंगे | अब तक सभी राजनीतिक दल ने अपने संगठनों में केवल मोहरे के रूप ही आदिवासी नेताओं का प्रयोग कर किया हैं | यहाँ तक कि कम्युनिष्ट पार्टियों ने भी | मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि केवल भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी ( माओवादी ) ही एक मात्र पार्टी रही है जिसने ना केवल आदिवासियों के हाथ में नेत्रित्व सौंपा बल्कि नेता और कार्यकर्ता की संख्या में महिला और पुरुष की संख्या भी लग-भग आधा-आधा है |
आदिवासी अस्मिता और संस्कृति के प्रति जागरूकता ही बस्तर की सबसे बड़ी समस्या का समाधान है | अब नई पीढ़ी को ऐसा नही होने देना है |बस्तर में प्राथमिक शिक्षा अब तक उनकी भाषा और बोली में नही हुई , यह एक षड्यंत्र का ही परिणाम है | जबकि बंगलादेश से लाकर बसाए गए शरणार्थियों तक के लिए सरकार ने यह व्यवस्था की | एक ओर तो पूरे अबुझमाड़ को अलग-थलग रखने के लिए लम्बे समय तक केवल अजायब घर बनाकर रखा गया , वहीँ दूसरी ओर उसी के एक बड़े इलाके में सीधे आदिवासी संस्कृति से सर्वथा अलग बंगलादेश के शरणार्थियों को लाकर बसा दिया गया | इसका बहुत ही घातक परिणाम आज आदिवासी ही झेल रहे हैं | यहाँ इस षड्यंत्र में सभी राजनीतिक दल शामिल रहे | अब आप फिर मुझपर नक्सलियों की तरफदारी का आरोप लगाएंगे , पर सच यही है कि केवल उनके ही राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों के साथ संवाद उनकी भाषा में किया , उनकी भाषा में जनगीत गाये और लोकगीतों को भी अपना हथियार बनाया | और यही कारण है कि सुदूर अंचल का आदिवासी अपने आपके करीब उन्ही को पाता है |
सलवा जुडूम के बहाने दो लाख से ज्यादा आदिवासियों को जब भेड़-बकरी की तरह दौड़ा-दौड़ा कर विस्थापित किया गया था , तो उनमे से अधिकाँश ने आज आंध्र और उड़ीसा में जाकर ईसाई धर्म अपना लिया | इधर कांग्रेस नेता महेंद्रकर्मा के नेत्रित्व में भाजपा कम आरएसएस ने सलवाजुडूम कैम्पों में आदिवासियों को जबरदस्ती कीर्तन , रामायण , आदि का पाठ करने और मूर्ति पूजा करने के लिए मजबूर कर हिन्दू घोषित किया | अपनी नदी , जानवर ,आँगा ,देवगुड़ी छोड़कर अपनी ही धरती में शरणागत आदिवासियों को गणेश , दुर्गा, दशहरा ,दिवाली आदि पर्व मनाने के लिए बाध्य किया गया | अब जाग रहे आदिवासी युवाओं से अपेक्षा है कि वे सरकार और विपक्ष ( चुपचाप तमाशा देख रहे बामपंथियों की भी ) की मिलीभगत से चल रहे खनिज और पानी के दोहन के लिए बड़े सेठों को जल जंगल बेचने के षड्यंत्र के खिलाफ उठ खड़े हों | मै आपको साम्प्रदायिक होने और दंगा करने के लिए आह्वान नही कर रहा , बल्कि बस जागने , एक जुट होने , अपने ही बीच के मुखौटा लगाये वीभीषनों ( कांग्रेस और भाजपा के मोहरे बने आदिवासी नेताओं ) को अलग-थलग करने की बात कर रहा हूँ | एक सशक्त आन्दोलन { चाहे वह संवैधानिक अधिकार की लड़ाई का मामला हो या अलग राज्य का मामला हो } की जरुरत है | आपके इस आन्दोलन में वे गैर आदिवासी भी साथ हो चलेंगे , जिन्होंने बस्तर को अपना घर समझा है, दूकान नही | ( बस्तर पर एक पुस्तक लिखने की कोशिश मै भी कर रहा हूँ , उसी का एक अंश --१ क्रमशः)

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