Monday, September 14, 2015

गरीब होने के कारण कितने सवर्ण बेइज्जत होते हैं? इसलिए मामला गरीबी का नही उनकी जाती का ही है।

गरीब होने के कारण कितने सवर्ण बेइज्जत होते हैं?

इसलिए मामला गरीबी का नही उनकी जाती का ही है।
जो लोग गरीबी के आधार पर आरक्षण की बात करते है वे वास्तव में दलितों से घ्रणा ही करते है
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क्या आपने कभी किसी सवर्ण ब्राह्मण ठाकुर बनिया की बेटी की बारात"गरीब होने के कारण"चढ़ने से रोकने की घटना सुनी है?क्या किसी सवर्ण दूल्हे को"गरीब होने के कारण" घोड़ी से उतारकर पीटने की घटना सुनी है? क्या"गरीब होने के कारण" ब्राह्मण ठाकुर बनिया को मन्दिर जाने से रोका गया?
क्या कोई सवर्ण "गरीब होने के कारण"स्कूल कॉलेज में छुआछूत का शिकार हुआ? क्या किसी सवर्ण शिक्षक को "गरीब होने के कारण" स्कूल कॉलेज में नियुक्ति प्रदान करने से रोका गया?क्या किसी सवर्ण को सार्वजनिक कुंएं से"गरीब होने के कारण" पानी पीने से रोका गया?
क्या किसी सवर्ण ब्राह्मण ठाकुर बनिया को "गरीब होने के कारण शमशान में शव फूंकने से रोका गया?क्या किसी सवर्ण सरपंच-प्रधान को"गरीब होने के कारण"राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा फहराने से रोका गया? क्या किसी सवर्ण मजदूर को "गरीब होने के कारण"मजदूरी के पैसे मांगने पर मौत के घाट उतारा गया?
क्या किसी सवर्ण को "गरीब होने के कारण"सामूहिक भोज में से दावत खाने से रोका गया? क्या किसी सवर्ण महिला को"गरीब होने के कारण"नंगा करके गाँव में घुमाया गया?क्या किसी सवर्ण लड़के को "गरीब होने के कारण"दलित लड़की से प्रेम करने पर मार डाला और सवर्णों की बस्तियां फूंकी गयी ?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक सवर्ण जज ने दलित जज के जाने के बाद कुर्सी को गंगाजल से धोया था यह गरीबी के कारण नहीं बल्कि जातिय घृणा के कारण ही हुआ था।
आप एक उदाहरण बता दें कि फलां ब्राह्मण ठाकुर बनिया का केवल"गरीब होने के कारण"दलित की तरह उत्पीड़न किया गया हो। दलित की तरह रौंदा गया हो और घिनौने तरीके से जलील किया गया हो।
अगर आप भारतीय समाज के चरित्र से अच्छी तरह परिचित होंगे तो आपको मालूम होगा कि कोई ऐसा गरीब ब्राह्मण ठाकुर बनिया नहीं मिलेगा जिसको केवल जाति के आधार पर बेइज्जत होना पड़ा हो,जबकि दलित के लिए आमबात है।यह सचाई है कि दलित"गरीब होने के कारण" बेइज्जत नहीं किया जाता है बल्कि केवल नीची जाति के कारण बेइज्जत किया जाता है।क्या कोई सवर्ण से गरीब होने के कारण घृणा करता है?नहीं न,बल्कि दलित को इस मामले में कोई रियायत नहीं है चाहे वह मुख्यमंत्री रहते बहिन मायावती ही हों या एक आम दलित, घृणा का कारण बनना पड़ता है।
महेन्द्र टिकैत ने मुख्यमंत्री रहते मायावती को चमरिया कहा था।मेरा दृढ़ मत है कि दलितों के विरुद्ध घृणा का कारण गरीबी नहीं बल्कि नीची जाति है,चूँकि घृणा के चलते दलितों को जिस तरह समाज की वर्ण व्यवस्था से भी बाहर निकाल फैंका था अछूत बना दिया था उसी तरह राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था से बाहर निकालने का षडयंत्र जारी है, इसलिए दलितों के संवैधानिक रूप से हिस्सा अर्थात् प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण आवश्यक है।
अगर आपके पास कोई ईमानदार विकल्प हो तो बताएं ताकि सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था में दलितों की पर्याप्त भागीदारी ईमानदारी से सुनिश्चित की जा सके अन्यथा गरीबी अर्थात् आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात को अपने पास ही रखें।यह साम्यपूर्ण नहीं है बल्कि एक मनुवादी झांसा है।
(कलादास जी )

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