Tuesday, September 29, 2015

डिजिटल गुलामी का दौर - ललित सुरजन




डिजिटल गुलामी का दौर 
ललित सुरजन 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर अमरीका में अपनी वाहवाही करवा रहे हैं। न्यूयार्क से लेकर कैलिफोर्निया तक। मीडिया मालिक, कार निर्माता, साफ्टवेयर  दिग्गज हर कोई उनकी तारीफों के पुल बांध रहा है। रूपर्ट मर्डोक उन्हें आजादी के बाद से अब तक का सर्वश्रेष्ठ नेता बता रहे हैं, सिस्को प्रमुख जान चैंबर्स उन्हें भारत का बेजोड़ राजदूत बता रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि वे देश को बदल कर रख देंगे। गूगल, माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनियां जिनमें भारतीय अग्रणी भूमिकाओं में हैं, भारत में निवेश करने, काम का विस्तार करने को उत्सुक दिख रहे हैं। फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग ने तो अपनी प्रोफाइल तस्वीर ही तिरंगे के साथ दर्शा दी। न्यूयार्क में दिग्गज कंपनियों के शीर्षस्थ अधिकारियों ने मोदीजी को सलाह दी है कि आर्थिक सुधारों में तेजी लाने के लिए और कदम उठाएं। इन अधिकारियों ने कहा कि आप जो भी कर रहे हैं, करते रहिए। लेकिन थोड़ा तेजी से करिए। इन अधिकारियों की इच्छा, आदेश सिर-माथे पर। माननीय मोदीजी ने भी वादा किया कि भारत सरकार फैसले लेने में तेजी लाएगी। अपनी पूंजीवादी, स्वार्थ केन्द्रित नीतियों के कारण आर्थिक मंदी की बुरी मार खा चुके अमरीकियों के लिए इससे बेहतर अवसर क्या हो सकता है कि सवा सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश का प्रधानमंत्री बार-बार, लगातार विदेशी निवेशकों से मिन्नतें कर रहा है कि आप हमारे देश में आइए, थोड़ी पंूजी लगाकर अधिक मुनाफा कमाइए। हम आपकी सुविधा के हिसाब से योजनाएं प्रारंभ करेंगे, कानूनों में बदलाव करेंगे। इस सारे खेल को मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे शब्दों के आवरण में लपेट कर इस तरह पेश किया जाता है मानो विदेशी निवेशक न आए तो देश में विकास होगा ही नहीं। नरेन्द्र मोदी जब व्यापारियों, सीईओ आदि से मिलते हैं तो लगता है कि कोई व्यापारी बड़ा सौदा करने के लिए निकला है। पिछली बार न्यूयार्क के मैडिसन स्क्वेयर पर मोदीजी की राजनीति का मेगा शो आयोजित हुआ, इस बार सिलिकान वैली में। डिजिटल इंडिया की मंजिल का रास्ता यहां से ही गुजरता है। मालिकान अमरीकी हैं, और कर्मचारी अधिकतर भारतीय। भारत का भविष्य भी कुछ ऐसा ही दिखता है। इतिहास तो हम देख ही चुके हैं। डिजिटल इंडिया से भारत में अभूतपूर्व क्रांति आएगी, ऐसा समझाया जा रहा है। सवाल यह है कि यह क्रांति किन लोगों के लिए होगी और किस स्तर की होगी। यह सही है कि आज की पीढ़ी इंटरनेट, मोबाइल की भाषा ही सबसे ज्यादा समझती है। सबसे ज्यादा वक्त भी उसका इन उपकरणों पर ही बीतता है। श्री मोदी ने फेसबुक मुख्यालय में कहा कि पहले हर पांच साल में चुनाव होते थे, अब सोशल मीडिया पर हर पांच मिनट में चुनाव करा सकते हैं। सच, सोशल मीडिया की महिमा उनसे ज्यादा कौन समझ सकता है। उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनाने में इस सोशल मीडिया का बड़ा योगदान है। लेकिन वे इसके महिमामंडन में एक बड़ी भूल कर गए। याद दिला दें कि भारत में अब भी हर पांच साल में ही चुनाव की व्यवस्था है। जहां तक सोशल मीडिया पर होने वाले चुनाव की बात है तो अब बहुत से भारतीय इंटरनेट बुद्धिजीवी, विचारक, लेखक, क्रांतिकारी बन गए हैं, जो अपनी चंद पंक्तियों की पोस्ट से देश बदलना चाहते हैं। वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री मोदी जरूरी मुद्दों पर बोलते ही नहींहैं या अपनी राय जाहिर करते हैं तो ट्विटर आदि पर। 
डिजिटल इंडिया बनाने के लिए देश में फाइबर आप्टिकल का जाल बिछेगा, वाई-फाई सुविधा होगी, नवीनतम तकनीकी के कंप्यूटर, मोबाइल होंगे। इन्हें उपलब्ध कराने के लिए देसी कंपनियों के साथ विदेशी कंपनियां निवेश करेंगी, भारतीय बाजार पर कब्जा जमाएंगी। व्यापार का यही तकाजा है। लेकिन क्या देश में बिजली, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, कृषि इन तमाम क्षेत्रों की समस्याएं भी डिजिटल इंडिया में हल हो जाएंगी या आभासी दुनिया में इनका कोई वजूद ही नहींरहेगा। हम भारतीयों को यूं भी आभासी दुनिया में जीना अच्छा लगता है। देश में सदियों से गरीबी, भूख, शोषण का बोलबाला रहा, केवल राजघराने उनके जमींदार और सामंत तथा धार्मिक स्थल ही अमीर थे और हमें आभास होता था कि देश सोने की चिडिय़ा है। स्थिति अब भी नहींबदली है। जातिप्रथा, सांप्रदायिकता, अशिक्षा, भूख, बेरोजगारी, बीमारी में लाचारी, किसानों की आत्महत्या ऐसी कई विकराल समस्याओं से गरीब जनता रोज जूझ रही है, इनके जाल में फंसकर दम तोड़ रही है। इस जाल को काटने की जगह सरकार बहादुर इंटरनेट के जाल बिछाने को उत्सुक दिख रहे हैं। दुनिया को बताएंगे कि भारत डिजिटल हो गया है। इसके मालिक दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर बटन दबाकर हमें नियंत्रित कर सकते हैं। साम्राज्यवादी और आर्थिक गुलामी के बाद एक नये किस्म की डिजिटल गुलामी बर्दाश्त करने के लिए सवा सौ करोड़ भाइयो-बहनो तैयार रहो।

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