Friday, October 17, 2014

बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पे सुप्रीम कोर्ट की सरकार को फटकार /आपका बच्चा खो जाए तो क्या करेंगे?

आपका बच्चा खो जाए तो क्या करेंगे?


बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पे सुप्रीम कोर्ट की सरकार को फटकार 

DGP and Chief   , the court summoned 30 October


DGP and Chief Secretary, the court summoned 30 October
10/17/2014 7:56:55 AM
नई दिल्ली/रायपुर प्रदेश में मानव तस्करी और बच्चों की गुमशुदगी के बढ़ते मामले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कार्रवाई नहीं करने के लिए गुरूवार को कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को 30 अक्टूबर को तलब किया है।

मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकारों के ढीले-ढाले रवैये पर सख्त फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा, क्या बच्चों के माता-पिता जितनी चिंता हमें भी होती है? क्या आपके बच्चे भी खो जाएंगे तब भी यही रवैया होगा? सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के अपने निर्देशों का पालन नहीं करने पर कहा कि राज्यों ने इस मामले को अदालत में तमाशा बना दिया है। जस्टिस एच.एल. दत्तू, जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस ए.के.सीकरी की बेंच ने दोनों राज्यों के अधिकारियों को पेश होने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल के आदेश में छत्तीसगढ़ व बिहार सरकार की ओर से जवाब नहीं देनेको लेकर नाराजगी जतायी और मुख्य सचिव को नोटिस भेजा है। कोर्ट नेनोटिस में निर्देश दिए हैं कि पेशी के दिन वे कोर्ट को यह भी बताएं कि उन्होंने लापता बच्चों के मामले में दिए गए निर्देश का पालन क्यों नहीं किया? कोर्ट ने दूसरे राज्यों के भी दो शीर्ष प्रशासनिक औरपुलिस अधिकारियों को तलब करने के संकेत दिए हैं।

देश की सर्वोच्चअदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि बच्चों के लापता होनेपर यांत्रिक तरीके से जवाब दाखिल करने और जमीन पर कुछ नहीं करने का तामाशा बंद होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि वह बच्चों के गायबहोने पर अब राज्य के डीजीपी और मुख्य सचिव से जवाब तलब करेगी।

कोर्ट ने यह आदेश एनजीओ "बचपन बचाओ आंदोलन" कीतरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। एनजीओ नेलापता बच्चों का पता लगाने में राज्य सरकारों की तरफ से उठाए गएअपर्याप्त कदम पर यह याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका : 18 जनवरी 2013 : किसकी याचिका :
बचपन बचाओ आंदोलन
क्या था याचिका में : देश में 2008 से 2010 के बीच 1.70 लाख से अधिक बच्चे गुम हुए हैं। इनमें से अधिकतर का देह व्यापार और बाल मजदूरी के लिए अपहरण किया गया।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने : बच्चों के गुमशुदा होने के हर मामले में अनिवार्य रूप से प्राथमिकी दर्ज हो। प्रत्येक मामले की पुलिस जांच करे।
हर थाने में किशोरों के मामलों को देखने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त हो। मकसद था बाल अपराधियों के मामलों से कारगर तरीके से निपटाना।
किशोरों से जुड़े मामलों के लिए हर जिले में अनिवार्य रूप से विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों की इकाई गठित हो।

बच्चों से जुड़े मामलों की जांच के लिए थानों में तैनात ऎसे अधिकारी सादे कपड़ों में होंगे। वे बाल कल्याण समिति के साथ तालमेल के साथ काम करेंगे।
बेंच में कौन : तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर, न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन।
मौका दर मौका : 16 मार्च 2012 : केंद्र व राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों से सुप्रीम कोर्ट ने जवाब तलब किया। कई राज्यों ने जवाब नहीं दिए । कोर्ट ने अंतिम अवसर देते हुए 5 फरवरी 2013 तक की मोहलत दी।
हिदायत : जवाब दाखिल न करने पर मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होना पड़ेगा।
5 फरवरी 2013 : लापता बच्चों पर राज्य सरकारें स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहीं।
हिदायत : सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, ऎसा लगता है कि किसी को बच्चों की चिंता नहीं है। अदालत को राज्य मूर्ख बना रहे हैं। इन सभी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी करने की धमकी दी।
30 अगस्त 2014 : सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को पूर्व में जारी अपने निर्देशों के अनुपालन में अलग से शपथ-पत्र दायर करने को कहा।
हिदायत : जैसे ही बच्चे के लापता होने की सूचना मिले वैसे ही अनिवार्य प्राथमिकी दर्ज हो।
इसलिए संवेदनशील है यह मामला

छत्तीसगढ़ पूरे देश में मानव तस्करी के लिए बदनाम है। हर साल यहां से हजारों लड़कियां तस्करों के चंगुल में फंस जाती हैं। लेकिन पुलिस के आंकड़ों में सच्चाई सामने नहीं आ पाती। यही वजह है कि वष्ाü 2010 से 2012 के बीच गुमशुदगी की हजारों शिकायतों के बावजूद मानव तस्करी के महज 44 मामले ही दर्ज किए गए। 2010 में 13 शिकायत, 2011 में 18 और 2012 में 13 शिकायतें दर्ज हुई। इस आदेश के बाद भी राज्य पुलिस के रवैये में फर्क नहीं आया है।

बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को कड़ा रूख अपनाना पड़ा

गुमशुदगी के आंकड़े
11536 बच्चों के छत्तीसगढ़
से गायब होने की जानकारी दी थी पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री कृष्णा तीरथ ने पिछले साल।
2986 बच्चों के सम्बंध में
अब तक कोई जानकारी नहीं है।
11225 बच्चे लापता
हैं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड
ब्यूरो के आंकड़ों में।
6525 बच्चों के गायब
होने की शिकायत पहुंची है
छत्तीसगढ़ लोक आयोग में।
(आंकड़े अप्रैल 2011 से मार्च 2014 तक के)

संवेदनशील नहीं है पुलिस प्रशासन

छत्तीसगढ़ के एक बड़े हिस्से से बच्चे लापता होते हैं। लापता बच्चों शिकायतों पर खोजबीन और एफआईआर दर्ज करने के मामले में आयोग लगातार दबाव बनाए हुए है, लेकिन पुलिस प्रशासन जरा भी संवेदनशील नहीं है। यदि ऎसा होता तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से नोटिस जारी नहीं होता। -शताब्दी पांडेय, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग
हालात अच्छे नहीं
प्रदेश के 27 जिलों में से मात्र सात जिले रायगढ़, जशपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर और जगदलपुर में चाइल्ड लाइन स्थापित है। चाइल्ड लाइन के निदेशक कल्लोल घोष इस संख्या पर चिंता जाहिर कर चुके हैं।
प्रदेश में बच्चों की देखरेख के लिए शेल्टर होम का होना भी जरूरी है, लेकिन यह भी मात्र तीन जिलों रायपुर, रायगढ़ और जशपुर में जैसे-तैसे काम कर रही है।
कलक्टर की अध्यक्षता में बाल कल्याण समितियों के कार्य करने का दावा किया जाता है, लेकिन समितियों की बैठक भी निर्धारित अवधि (सप्ताह में तीन बार) में
नहीं होती।
प्रदेश की राजधानी रायपुर में भी अलग से बालिकागृह नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
लापता बच्चों के मामले में हर हाल में दर्ज होनी चाहिए एफआईआर।
लापता बच्चों के सम्बंध में प्रत्येक शिकायतों की जांच अनिवार्य रूप से हो।
पड़ताल के लिए प्रत्येक थाने में बाल कल्याण अधिकारी की पदस्थापना अनिवार्य।
पीडित परिवारों के लिए विधिक सहायता स्वयंसेवक तैयार करें।
प्रभावित बच्चों के आश्रय के लिए बालगृह की स्थापना अनिवार्य।
डीजीपी ए. एन. उपाध्याय का दावा
21 मई 2013 के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक महीने में एफआईआर दर्ज करने को कहा था। प्रदेश के विभिन्न थानों में कुल 1900 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गई है।
बच्चों के लापता हो जाने की शिकायतों को गंभीरता से लिया गया है। जांच एक सतत
प्रक्रिया है। अब भी कई मामलों में जांच-पड़ताल चल रही है।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का कड़ाई से पालन किया है। वर्तमान में प्रदेश के 380 थानों में बाल कल्याण अधिकारी तैनात हैं जो अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
यह मामला न्यायालय से सम्बंधित है। संभवत: छत्तीसगढ़ में इस मुद्दे पर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाई है।
यह कार्य महिला एवं बाल विकास विभाग से जुड़ा है। फिर दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर अम्बिकापुर सहित कुछ अन्य जगहों पर बालगृह हैं।

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