भ्रष्ट नेताओं के लिए नजीर बने यह सजा
इसके लिए आवश्यक है कि अदालती प्रक्रियाओं को सुधारा जाए। मुकदमों का निपटारा तेजी से हो। पर आज करोड़ों मुकदमे लंबित पड़े हैं। ऐसे में, न्यायिक सुधार चाहे कितने कर लिए जाएं, देश लूटने वालों को जल्दी सजा देना संभव नहीं होगा। इसके लिए जरूरी है कि राजनेताओं के भ्रष्टाचार की शिकायत पर सुनवाई करने वाली अदालतें अलग से गठित की जाएं और ऐसा कानून बने कि कोई मुकदमा दो साल से ज्यादा न खिंचे।
मगर सवाल है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन। कानून बनता है संसद में और संसद में जाते हैं वही राजनेता, जो मंत्री-मुख्यमंत्री के परिवार से जुड़े होते हैं। अब भाई-भतीजे व बेटी-दामादों को टिकट मिलते हैं और वही राजनेता बनते हैं, क्योंकि आज राजनीति सबसे बड़े मुनाफे का कारोबार बन चुकी है।
पर चाह लें, तो चीजें बदल सकती हैं। बीस साल पहले इटली में भ्रष्टाचार चरम पर था। वहां के जागरूक नागरिकों, वकीलों और पत्रकारों ने कमर कस ली और कुछ वर्षों में छह सौ से ज्यादा भ्रष्ट राजनेताओं, न्यायाधीशों व अधिकारियों को जेल जाना पड़ा। ऐसा भारत में भी संभव है, क्योंकि जनता जागरूक हो चुकी है, सूचना तंत्र आधुनिक हो गया है और बेनामी दौलत छिपाना आसान नहीं है। सरकार तय कर ले, तो भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारियों को आसानी से पकड़ा जा सकता है।
पर यहां एक और समस्या है। आज यह सिद्ध करने के लिए कितने ही प्रमाण उपलब्ध हैं कि हमारी न्यायापालिका भी भ्रष्टाचार से अछूती नहीं। जब उच्चतर न्यायपालिका भी इससे बची हुई न हो, तो कैसे माना जाए कि लोकपाल के पद पर बैठने वाला व्यक्ति पूरी तरह ईमानदार होगा? इसलिए शिकायत सुनने, जांच करने, मुकदमा चलाने व सजा देने का अधिकार लोकपाल के हाथों में केंद्रित करने की अरविंद केजरीवाल की मांग का समझदार लोगों ने विरोध किया था। दरअसल एक तरफ कुआं है और दूसरी तरफ खाई। अगर न्यायाधीशों को विशेष अधिकार देकर उच्च पदस्थ लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की छूट दी जाए, तो वे उसका दुरुपयोग भी कर सकते है। ऐसे में कोई कानून बनाना या नया कदम उठाना चुनौती भरा काम है।
इस परिस्थिति का लाभ उठाकर ही राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचार की हदें पार करते जा रहे हैं। इसलिए जागरूक लोगों को कानून में ऐसे बदलाव करने की मांग करनी चाहिए, जिससे बिना प्रशासनिक बोझ बढ़ाए ही भ्रष्ट राजनेताओं को दो साल के भीतर सजा मिल सके। तभी देश.
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