Thursday, October 16, 2014

चूल्हा-चौका के साथ सीख रही आरटीआई लगाना

चूल्हा-चौका के साथ सीख रही आरटीआई लगाना

Learning with hearth to RTI


Learning with hearth to RTI
10/15/2014 7:48:05 AM
जयंत कुमार सिंह 
रायगढ़। घूंघट में चेहरा छिपाए हाथ में आवेदन लेकर जब एक महिला ग्रामपंचायत के राशन दुकान में पहुंचती है तो लोग पहले यह समझते हैं कि राशन दिलवाने का आवेदन होगा। बाद में जब उस आवेदन को पढ़ा जाता है तो लोग अपने अगल-बगल झांकने लगते हैं।
क्योंकि वह आवेदन आरटीआई का था जिसमें महिला की ओर से गांव के सामुदायिक दुकान में आने वाले राशन और वितरित किए गए राशन व हितग्राहियों की जानकारी मांगी गई थी। यह महिला तमनार क्षेत्र की मीना सिदार पति जयदयाल सिदर उम्र 30 साल है।
जबकि दूसरा आवेदन जानकी राठिया पति स्व.चेतराम राठिया की ओर से गांव के मितानीन के संबंध में मांगी जाती है। जिसमें मितानीनों के पास कितनी दवाएं आई, कितने का वितरण किया गया और कितनी राशि शासन से मिली इसकी जानकारी मांगी गई है। जब जानकी से आरटीआई लगाने के संबंध में कारण पूछा गया तो उसका कहना था कि उम्र के हिसाब से वह बीमार रहती है ऎसे में उसे मितानीन की ओर से दवा नहीं मिल पाई है।
यहां लगती है क्लास
तमनार क्षेत्र की महिलाओं ने आदिवासी महिला महापंचायत का गठन किया है। इस महापंचायत में लगभग एक दर्जन गांव की महिलाएं शामिल हैं। जिसमें लगभग ढाई से तीन सौ आदिवासी महिलाएं सदस्य हैं। महिलाएं भी क्लास के दौरान चुल्हा, चौका छोड़कर इसमें शामिल होती हैं। इस क्लास को सामाजिक कार्यकर्ता सविता रथ की ओर से लगाया जाता है।
अनपढ़ हैं तो क्या हुआ
खास बात यह भी देखा जा रहा है कि जो महिलाएं अनपढ़ हैं वह अपने आवेदन को घर के अन्य सदस्यों के माध्यम से लिखवाती हैं। ऎसे में क्लास में बताए गए फार्मेट को महिलाएं मुंहजबानी समझाती हैं और क्या सवाल पूछना है यह भी बताती हैं। गांव की महिलाओं में इस प्रकार से आए परिवर्तन के बाद पुरूषों की ओर से इसकी सराहना की जा रही है। उन्हें प्रेरित भी किया जा रहा है।
महिलाओं की ओर से आरटीआई के संबंध में काफी रूचि दिखाई जा रही है। क्लास के दौरान बकायदा एक-एक चीज को महिलाएं पूछती हैं। हाल में ही दो तीन महिलाओं ने अपने गांव में पहली बार आरटीआई आवेदन भी लगाई हैं।
सविता रथ, सामाजिक कार्यकर्ता
गांव में बहुत कम ही लोग आरटीआई का उपयोग करते हैं। महिलाएं आरटीआई लगाएंगी यह कोई सोच भी नहीं सकता। पर अब तो गांव की महिलाएं भी चुल्हा चौका छोड़कर कर आवेदन करना सीख रही है और बकायदा आवेदन लगा भी रही हैं।
हरिहर पटेल, ग्रामीण
नारी सशक्तिकरण की दिशा में यह बेहतर प्रयास हैं। ग्रामीण महिलाएं अपने अधिकारों और गांव के विकास के प्रति जागरूक हो रही हैं यह शुभ संकेत है।
रमेश अग्रवाल, ग्रीन नोबेल विजेता

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