Wednesday, August 6, 2014

माना की भक्त नादान है ,लेकिन ये जो भगवान है वो किसी के लिये कुछ करते क्यो नहीं हैं

माना की भक्त नादान है ,लेकिन ये जो भगवान है वो किसी के लिये कुछ करते क्यो नहीं हैं 

ये कोई पहली घटना नहीं है की सावन के सोमवार के दिन किसी ने अपनी जीभ काट के चढ़ा दी , कभी कोई भक्त अपनी उंगली काट देता है कोई जीभ काट देता है कोई कोई तो अपनी गर्दन तक काट के चढ़ा देते है ,अभी दो साल पहले उत्तरप्रदेश मे एक परिवार प्रमुख ने अपन् एपुरे परिवार के 8 सदस्यो को ज़हर खिला दिया ,उसका भरोषा थी की भगवान ने उसे कहा ही की मे आखिर मे उसे बचा लूंगा ,लेकिन हुआ वही जो होना ही था ,वे सब लोग मारे गये या घाय्ल हो गये ,कोई भगवान उन्हे बचाने नहीं आये .

आप कह सकते है की लोग घटना के बाद सीख जाते है और दुबारा ऐसा कुछ नहि करते है ,लेकिन आप सत्य नहीं है ,जिस 19 साल की हरिप्रिया चौहान ने अपनी जीभ रायगढ़ के शिव मंदिर मे चढ़ाई ,उसके खास भाई ने भी दो साल पहले इसी मंदिर मे अपनी जीभ चढ़ि थी और उसकी जान चली गई थी , 

आखिर की आदमी ऐसा कैसे करने पे आमादा हो जाता है , मे समझता हूँ की वो वही का रहा है जो उसने अपने धर्म ग्रंथो मे पढ़ा हैं , की किसी भक्त ने अपनी जान जोखिम मे डाली की भगवान प्रॅगट हो गये और उनसे कहा की बोल भक्त क्या मांगता है ,और उसकी आहा पिऊरी भी हो जाती हैं
ये सारे उदाहण शाश्त्र सम्मत भी हैं ,ऐसा ही उन्होने प्रवचनो मे सुना है और तो और धार्मिक फिल्मो मे भी देखा है , तो फिर उसकी गलती कहाँ से हैं ,वो तो वही कर रहा है जो उसे करना चाहिये था , तो फिर सवाल यही उठता है की भगवान नाम का प्राणी या अलोकिक शक्ति करति क्या है .

चलो मान लिया की हमारे जैसे लोग जिन्हे उसमे भरोसा नहीं उनको चमत्‍कार कैसे दिखाई देगा ,बिल्कुल सही है और ठीक भी ,लेकिन भाई मे हमारे जैसे लोगो की बात नहीं कर  रहा हुँ ,मे तो उस बेचारे भक्त की बात कर रहा हूँ जिसकी अपार  श्रधा है उसमे ,तो फिर किसकी गलती है, ,कह तो हम भी यही  रहे है, की ये सब अंधश्रधा है ,लेकिन ये इतना भर नहीं है ,ये तो भगवान मे भरोसा रखने वेल के साथ सरासर चीटिंग हैं , 
क्या इस धोके से जान लेने वाले या अंगभंग करने के लिये जिम्मेदार के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिये ,मे कहता हूँ जरूर होनी चाहीये . 

कार्यवाही कैसे होगी ,अब ये सब हम ही  बताये ? तो फिर भाई आप क्या करांगे ,कुछ आप भी भी दिमाग लड़ाओ .


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