हसदेवअरण्य क्षेत्र में समृद्ध वन संपदा एवं ग्रामसभाओं के प्रस्ताव को नजरंदाज करके किया गया कोयला खदानों का आवंटन रद्द किया जाये .
** किसी भी कीमत पर हसदेव की वन संपदा का विनाष होने नहीं देंगे .
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति
***-
रायपुर,/
केन्द्रीय कोयला मंत्रालय के द्वारा छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में मदनपुर साउथ कोल ब्लाक का आवंटन आन्ध्र प्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन को किया गया है, जिसका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन पुरजोर तरीके से विरोध करते हैं और इसके खिलाफ व्यापक आन्दोलन शुरू किया जायेगा l
दिसंबर 2014 में हसदेव अरण्य की 20 ग्रामसभाओ ने प्रस्ताव पारित करके, प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय कोयला मंत्रालय, केन्द्रीय आदिवासी कार्य मंत्रालय और केन्द्रीय वन मंत्रालय को सौंपा था जिसमें कोयला खदानों का आवंटन नहीं किये जाने और समृद्ध वन संपदा व जैव विविधता को बचाने के लिए आह्वान किया गया था l परन्तु मोदी सरकार ने उन प्रस्तावों की धज्जिया उड़ाते हुए हसदेव क्षेत्र में 6 नए कोल ब्लाक का आवंटन राज्य सरकारों को किया है जो की आदिवासी क्षेत्रों के संरक्षण के लिए संविधान में दी गई व्यवस्था पांचवी अनुसूची और पेसा कानून का साफ़ तौर से उल्लंघन है .
ज्ञात हो की सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को सघन वन संपदा, समृद्ध वन जैव विवधता, वन्य प्राणियों का आवास, और हसदेव बांगो बांध का कैचमेंट होने के कारण वर्ष 2009 में खनन के लिए नो गो क्षेत्र घोषित किया गया .
परन्तु इन समस्त तथ्यों को दरकिनार करते हुए मोदी सरकार के द्वारा सम्पूर्ण हसदेव की वन संपदा को कॉरपोरेट मुनाफे के लिए उजाड़ने की तयारी की जा रही हैं l कार्पोरेट मुनाफे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निभाते हुए केंद्र और राज्य सरकार खनिज संसाधनों की लूट के लिए खुला रास्ता तैयार कर रही है जिसमे आदिवासी, किसान, मजदूरो का दमन और पर्यावरण विनाश शामिल हैं l
मदनपुर साउथ कोल ब्लाक का आवंटन भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं जिसमे कोयले का उत्पादन कमर्शियल माइनिंग अर्थात बाजार में बेचने के लिए किया जायेगा | ज्ञात रहे की कोल माइन (विशेष उपबंध) कानून 2015 में ही कमर्शियल माइनिंग के लिए कोयला खनन को मंज़ूरी दी गयी थी इससे पहला कोयला खनन केवल ज़रुरत के अनुरूप कैप्टिव माइनिंग के लिए स्वीकृत था |
मदनपुर साउथ का आवंटन छत्तीसगढ़ में पहली ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंत उपयोग की चिंता किये बिना केवल मुनाफे के लिए कोयला बेचा जा सकेगा .
राज्य सरकारों के नाम पर कॉरपोरेट घरानों को सोंपे जा रहे हैं कोल ब्लाक - मोदी सरकार के द्वारा नीलामी की प्रक्रिया से बचते हुए अप्रत्यक्ष रूप से कॉरपोरेट घरानों को कोयला खदानें दी जा रही हैं l इसका सबसे बड़ा उधारहण हैं परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान जिसे आवंटित तो राजस्थान राज्य विधुत निगम लिमिटेड को किया गया था परन्तु पीछे के रास्ते इसका मालिक अदानी कम्पनी बन गया है l
इसमें विशेष बात यह है की इस प्रक्रिया से आवंटित खदानों को मात्र 100 रूपये प्रति टन की दर से ही राज्य सरकार को रॉयल्टी देनी पड़ेगी जबकि देखा गया है की बगल की ही नीलामी के माध्यम से आवंटित चोटिया खदान को 3025 रूपये प्रति टन से रॉयल्टी देनी पड़ती है |
ऐसी स्थिति में बाज़ार भाव पर बेचे हुए कोयले का पूर मुनाफा कॉरपोरेट घरानों को ही मिलेगा | ऐसी स्थितु में आवंटन के जरिये कोयला उत्पादन से सरकारों को राजस्व की कम प्राप्ति होनी निश्चित है | इसके वाबजूद भी केंद्र सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर कोल ब्लाको का आवंटन किया जा रहा हैं l
वर्तमान में देश में कोयला का उत्पादन कुल मांग से ज्यादा हैं l कोयला मंत्रालय के द्वारा 2020 के लिए 1.5 बिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया हैं जबकि बिजली उत्पादन के लक्ष्य अनुसार इस मात्रा में कोयले की जरुरत सन 2030 में होगी फिर अभी से इतना ज्यादा कोयला उत्पादन सिर्फ कार्पोरेट के मुनाफे के लिए किया जा रहा हैं जिसमे सरकार के कुछ पसंदीदा उधोगपति शामिल हैं l
ऐसे परिपेक्ष में मदनपुर साउथ के आवंटन से कई गंभीर सवाल उत्पन्न होते हैं – पेसा अधिनियम 1996 तथा वनाधिकार कानून 2006 के तहत पारित प्रस्तावों का उल्लंघन क्या कानूनी व्यवस्था का खिलवाड़ और संवैधानिक अधिकारों की अवमानना नहीं है ?
आदिवासी हित के बने महत्वपूर्ण कानूनों की अवहेलना करने वाली मोदी सरकार किस मुंह से खुद को आदिवासी हितैषी बता सकती है ? नो गो क्षेत्र की नीति को तो रद्द कर दिया गया है लेकिन इसकी जगह बनने वाली वायलेट – इनवायलेट नीति को अभी तक क्यूँ नहीं घोषित किया गया है ? और ऐसी स्थिति में समृद्ध वन संपदा वाले क्षेत्रों में कोयला ब्लॉक आवंटन किस हद तक सही है ? क्यूँ हसदेव क्षेत्र में लगातार विभिन्न राज्य सरकारों को आवंटन के माध्यम से ही ब्लॉक दिया जा रहा है और क्यूँ यहाँ नीलामी प्रक्रिया का प्रयोग नहीं किया जाता ? और ऐसी स्थिति में हमेशा अदानी कंपनी जैसे कॉरपोरेट घरानों को ही खनन कार्य क्यों सौंप दिया जाता है ? इस प्रक्रिया से राज्य सरकार को होने वाली हानि के खिलाफ राज्य सरकार कोई विरोध क्यों नहीं करती ? और क्यूँ लगातार ज़रुरत से ज्यादा कोयला खनन कर पर्यावरण और आदिवासी जीवनशैली का विनाश किया जा रहा है ?
भवदीय
आलोक शुक्ला
नन्द कुमार कश्यप
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन
उमेश्वर सिंह अर्मो
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति)
09977634040 08458887358 08959195176
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** किसी भी कीमत पर हसदेव की वन संपदा का विनाष होने नहीं देंगे .
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति
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रायपुर,/
केन्द्रीय कोयला मंत्रालय के द्वारा छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में मदनपुर साउथ कोल ब्लाक का आवंटन आन्ध्र प्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन को किया गया है, जिसका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन पुरजोर तरीके से विरोध करते हैं और इसके खिलाफ व्यापक आन्दोलन शुरू किया जायेगा l
दिसंबर 2014 में हसदेव अरण्य की 20 ग्रामसभाओ ने प्रस्ताव पारित करके, प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय कोयला मंत्रालय, केन्द्रीय आदिवासी कार्य मंत्रालय और केन्द्रीय वन मंत्रालय को सौंपा था जिसमें कोयला खदानों का आवंटन नहीं किये जाने और समृद्ध वन संपदा व जैव विविधता को बचाने के लिए आह्वान किया गया था l परन्तु मोदी सरकार ने उन प्रस्तावों की धज्जिया उड़ाते हुए हसदेव क्षेत्र में 6 नए कोल ब्लाक का आवंटन राज्य सरकारों को किया है जो की आदिवासी क्षेत्रों के संरक्षण के लिए संविधान में दी गई व्यवस्था पांचवी अनुसूची और पेसा कानून का साफ़ तौर से उल्लंघन है .
ज्ञात हो की सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को सघन वन संपदा, समृद्ध वन जैव विवधता, वन्य प्राणियों का आवास, और हसदेव बांगो बांध का कैचमेंट होने के कारण वर्ष 2009 में खनन के लिए नो गो क्षेत्र घोषित किया गया .
परन्तु इन समस्त तथ्यों को दरकिनार करते हुए मोदी सरकार के द्वारा सम्पूर्ण हसदेव की वन संपदा को कॉरपोरेट मुनाफे के लिए उजाड़ने की तयारी की जा रही हैं l कार्पोरेट मुनाफे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निभाते हुए केंद्र और राज्य सरकार खनिज संसाधनों की लूट के लिए खुला रास्ता तैयार कर रही है जिसमे आदिवासी, किसान, मजदूरो का दमन और पर्यावरण विनाश शामिल हैं l
मदनपुर साउथ कोल ब्लाक का आवंटन भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं जिसमे कोयले का उत्पादन कमर्शियल माइनिंग अर्थात बाजार में बेचने के लिए किया जायेगा | ज्ञात रहे की कोल माइन (विशेष उपबंध) कानून 2015 में ही कमर्शियल माइनिंग के लिए कोयला खनन को मंज़ूरी दी गयी थी इससे पहला कोयला खनन केवल ज़रुरत के अनुरूप कैप्टिव माइनिंग के लिए स्वीकृत था |
मदनपुर साउथ का आवंटन छत्तीसगढ़ में पहली ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंत उपयोग की चिंता किये बिना केवल मुनाफे के लिए कोयला बेचा जा सकेगा .
राज्य सरकारों के नाम पर कॉरपोरेट घरानों को सोंपे जा रहे हैं कोल ब्लाक - मोदी सरकार के द्वारा नीलामी की प्रक्रिया से बचते हुए अप्रत्यक्ष रूप से कॉरपोरेट घरानों को कोयला खदानें दी जा रही हैं l इसका सबसे बड़ा उधारहण हैं परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान जिसे आवंटित तो राजस्थान राज्य विधुत निगम लिमिटेड को किया गया था परन्तु पीछे के रास्ते इसका मालिक अदानी कम्पनी बन गया है l
इसमें विशेष बात यह है की इस प्रक्रिया से आवंटित खदानों को मात्र 100 रूपये प्रति टन की दर से ही राज्य सरकार को रॉयल्टी देनी पड़ेगी जबकि देखा गया है की बगल की ही नीलामी के माध्यम से आवंटित चोटिया खदान को 3025 रूपये प्रति टन से रॉयल्टी देनी पड़ती है |
ऐसी स्थिति में बाज़ार भाव पर बेचे हुए कोयले का पूर मुनाफा कॉरपोरेट घरानों को ही मिलेगा | ऐसी स्थितु में आवंटन के जरिये कोयला उत्पादन से सरकारों को राजस्व की कम प्राप्ति होनी निश्चित है | इसके वाबजूद भी केंद्र सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर कोल ब्लाको का आवंटन किया जा रहा हैं l
वर्तमान में देश में कोयला का उत्पादन कुल मांग से ज्यादा हैं l कोयला मंत्रालय के द्वारा 2020 के लिए 1.5 बिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया हैं जबकि बिजली उत्पादन के लक्ष्य अनुसार इस मात्रा में कोयले की जरुरत सन 2030 में होगी फिर अभी से इतना ज्यादा कोयला उत्पादन सिर्फ कार्पोरेट के मुनाफे के लिए किया जा रहा हैं जिसमे सरकार के कुछ पसंदीदा उधोगपति शामिल हैं l
ऐसे परिपेक्ष में मदनपुर साउथ के आवंटन से कई गंभीर सवाल उत्पन्न होते हैं – पेसा अधिनियम 1996 तथा वनाधिकार कानून 2006 के तहत पारित प्रस्तावों का उल्लंघन क्या कानूनी व्यवस्था का खिलवाड़ और संवैधानिक अधिकारों की अवमानना नहीं है ?
आदिवासी हित के बने महत्वपूर्ण कानूनों की अवहेलना करने वाली मोदी सरकार किस मुंह से खुद को आदिवासी हितैषी बता सकती है ? नो गो क्षेत्र की नीति को तो रद्द कर दिया गया है लेकिन इसकी जगह बनने वाली वायलेट – इनवायलेट नीति को अभी तक क्यूँ नहीं घोषित किया गया है ? और ऐसी स्थिति में समृद्ध वन संपदा वाले क्षेत्रों में कोयला ब्लॉक आवंटन किस हद तक सही है ? क्यूँ हसदेव क्षेत्र में लगातार विभिन्न राज्य सरकारों को आवंटन के माध्यम से ही ब्लॉक दिया जा रहा है और क्यूँ यहाँ नीलामी प्रक्रिया का प्रयोग नहीं किया जाता ? और ऐसी स्थिति में हमेशा अदानी कंपनी जैसे कॉरपोरेट घरानों को ही खनन कार्य क्यों सौंप दिया जाता है ? इस प्रक्रिया से राज्य सरकार को होने वाली हानि के खिलाफ राज्य सरकार कोई विरोध क्यों नहीं करती ? और क्यूँ लगातार ज़रुरत से ज्यादा कोयला खनन कर पर्यावरण और आदिवासी जीवनशैली का विनाश किया जा रहा है ?
भवदीय
आलोक शुक्ला
नन्द कुमार कश्यप
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन
उमेश्वर सिंह अर्मो
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति)
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