न्यायालय को है इस देश में आरोप तय करने और सजा देने का अधिकार ?
बड़े षड्यंत्र की बू आ रही है | इनके खिलाफ अभी मामला न्यायलय में था , हो सकता है वे निर्दोष साबित होते | जैसा कि अधिकांश मामलों में हो रहा है , पुलिस द्वारा आतंकी बताये जा रहे युवा दस-पंद्रह साल जेल में बर्बाद कर बाईज्जत बरी होते रहे हैं |
हाई टेक सेंट्रलजेल से पहले भी भाग चुके बंदी एक सिपाही की चम्मच और गिलाश से हत्या कर आसानी से दुबारा भाग लेते है | इस जेल में दो बार दो सप्ताह बिता चुके कामरेड बादल सरोज का तो दावा है कि यहाँ से भागना संभव ही नहीं है , अगर यह हुआ है तो तय है कि जेल के बड़े अधिकारी और सिपहियों की मिली भगत से ही संभव हुआ होगा | तब फिर सिपाही की हत्या भी सवालों के घेरे में है |
इन बंदियों के बारे में आधिकारिक रूप से बताया जा रहा है कि इन्हें तीन अलग अलग बैरकों के अलग अलग सेल में रखे गए थे | मतलब लोहे के मजबूत तीन तीन दरवाजे × 3 = 9 दरवाजे एक ही समय में तोड़ डाले गए | यह बात तो हजम होने वाली नहीं है | भागे गए सभी बंदी आठ से दस घंटों में भी मात्र 8 किमी के भीतर और वह भी एक साथ रहे , यह बात भी असंभव प्रतीत होता है | सभी के पैरों में एक ही तरह के नए जूते और नए कपडे भी संदेहास्पद है | इस घटने की वीडियो का भी सोशल मीडिया में जिक्र हो रहा है , जिसमे इनके बिना हथियार के होने और जान बख्स देने के लिए गिड़-गिड़ाने की बात की जा रही है | मुठभेड़ करने वाले पुलिस जवान कहीं बस्तर से तो नहीं गए थे ?
अगर मान लिया जाये कि मुठभेड़ असली था और इनके पास हथियार थे तो क्या सभी के सर में गोली मारना उचित था ? क्या किसी एक को जेल से भागने के तुरंत बाद उन्हें हथियार और अन्य सहयोग करने वालों की जांच के लिए घायल कर जिन्दा पकड़ने की कोशिश नहीं होनी थी ?
क्या रहस्य उजागर होने वाला था जिसके लिए सभी को खामोश करना जरुरी हो गया ? क्या अब भाजपा की सरकारें गुजरात और बस्तर मॉडल सभी जगह लागूं करेंगी ? बस्तर में भी न्यायालय से बाईज्जत बरी होने वाले और जमानत पर निकले आरोपियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा जा रहा है | क्या अब आतंक के मामले बनाकर पकडे जाने वाले सभी आरोपियों न्यायालय के फैसले का इंतजार किये बिना ऐसे ही मार डाला जाएगा ? न्यायपालिका की जैसी हुज्जत देश के मुखिया और सरकार की ओर से हो रही है , उसे देखकर तो ऐसा ही लग रहा है कि अब आरोपियों को सजा देने का काम न्यायालय नहीं खुद आरोप तय करने वाली सरकार करेगी , उसे अब न्यायालय पर भरोसा नही रहा |
हाई टेक सेंट्रलजेल से पहले भी भाग चुके बंदी एक सिपाही की चम्मच और गिलाश से हत्या कर आसानी से दुबारा भाग लेते है | इस जेल में दो बार दो सप्ताह बिता चुके कामरेड बादल सरोज का तो दावा है कि यहाँ से भागना संभव ही नहीं है , अगर यह हुआ है तो तय है कि जेल के बड़े अधिकारी और सिपहियों की मिली भगत से ही संभव हुआ होगा | तब फिर सिपाही की हत्या भी सवालों के घेरे में है |
इन बंदियों के बारे में आधिकारिक रूप से बताया जा रहा है कि इन्हें तीन अलग अलग बैरकों के अलग अलग सेल में रखे गए थे | मतलब लोहे के मजबूत तीन तीन दरवाजे × 3 = 9 दरवाजे एक ही समय में तोड़ डाले गए | यह बात तो हजम होने वाली नहीं है | भागे गए सभी बंदी आठ से दस घंटों में भी मात्र 8 किमी के भीतर और वह भी एक साथ रहे , यह बात भी असंभव प्रतीत होता है | सभी के पैरों में एक ही तरह के नए जूते और नए कपडे भी संदेहास्पद है | इस घटने की वीडियो का भी सोशल मीडिया में जिक्र हो रहा है , जिसमे इनके बिना हथियार के होने और जान बख्स देने के लिए गिड़-गिड़ाने की बात की जा रही है | मुठभेड़ करने वाले पुलिस जवान कहीं बस्तर से तो नहीं गए थे ?
अगर मान लिया जाये कि मुठभेड़ असली था और इनके पास हथियार थे तो क्या सभी के सर में गोली मारना उचित था ? क्या किसी एक को जेल से भागने के तुरंत बाद उन्हें हथियार और अन्य सहयोग करने वालों की जांच के लिए घायल कर जिन्दा पकड़ने की कोशिश नहीं होनी थी ?
क्या रहस्य उजागर होने वाला था जिसके लिए सभी को खामोश करना जरुरी हो गया ? क्या अब भाजपा की सरकारें गुजरात और बस्तर मॉडल सभी जगह लागूं करेंगी ? बस्तर में भी न्यायालय से बाईज्जत बरी होने वाले और जमानत पर निकले आरोपियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा जा रहा है | क्या अब आतंक के मामले बनाकर पकडे जाने वाले सभी आरोपियों न्यायालय के फैसले का इंतजार किये बिना ऐसे ही मार डाला जाएगा ? न्यायपालिका की जैसी हुज्जत देश के मुखिया और सरकार की ओर से हो रही है , उसे देखकर तो ऐसा ही लग रहा है कि अब आरोपियों को सजा देने का काम न्यायालय नहीं खुद आरोप तय करने वाली सरकार करेगी , उसे अब न्यायालय पर भरोसा नही रहा |
इस देश में सजा देने का लोकतान्त्रिक प्रावधान है , न्यायपालिका है , यह देश तानाशाहों का नहीं है | कौन चोर है ? देशद्रोही है ? या हत्यारा है ? ये आप नहीं तय कर सकते |
अभी तो सरकार आपकी है , अगर पुलिस को सजा देने का समर्थन कर रहें है तो क्या जब आपके विरोधियों की सरकार आएगी और राजनितिक कार्यकर्ताओं पर इसी तरह देशद्रोह का आरोप लगाकर बिना न्यायालय की प्रक्रिया के गोली मारने का काम होगा ( जिसमें आपके अपने भी हो सकते हैं लेकिन ) तो क्या आप तब भी समर्थन करेंगे ?
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