लाठियां तोड़ने वाली पुलिस पुतला दहन कर रही है
पत्रिका
- बस्तर के अलग-अलग हिस्सों में पुलिसकर्मियों ने यहां काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों का पुतला फूंका है.
- वर्दी पहनकर पुतला जला रहे इन पुलिसवालों का आरोप है कि सामाजिक कार्यकर्ता माओवादियों के समर्थक हैं.
बस्तर के ताड़मेटला, तिम्मापुर और मोरपल्ली गांवों में आदिवासियों के घर जलाने और बलात्कार के आरोपों से घिरी पुलिस ने सोमवार को जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर और कांकेर में सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत कइयों का पुतला फूंका है. इनमें हिमांशु कुमार, बेला भाटिया, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, आदिवासी नेता मनीष कुंजाम, सोनी सोरी, वकील शालिनी गेरा और पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम शामिल हैं.
पुलिस के सहायक आरक्षक जिस अंदाज़ में पुतला दहन कर रहे थे, ऐसा लग रहा था कि यह पुलिसबल नहीं बल्कि किसी सामाजिक-राजनीतिक रैली में अपने अधिकारों की मांग करते सामान्य प्रदर्शनकारी हैं.
छत्तीसग में पुतला दहन या किसी अन्य रूप में विरोध प्रदर्शन हमेशा सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता किया करते थे. मगर राज्य के इतिहास में यह पहली बार है कि प्रदर्शनकारियों के पुतले छीनने वाली पुलिस ख़ुद वही काम कर रही थीं.
पुतला दहन से पहले सहायक आरक्षकों ने पुलिस लाइन से बाकायदा एक रैली निकाली और सामाजिक कार्यकर्ताओं को माओवादी समर्थक बताते हुए नारेबाजी की. इन प्रदर्शनकारी पुलिसवालों ने अपने बयान में कहा है कि सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार, नंदिनी सुंदर, बेला भाटिया, सोनी सोरी और मनीष कुंजाम, शालिनी गेरा और मालिनी माओवादियों की दलाली करते हैं.
ये लोग माओवादियों को संरक्षण देकर ठेकेदारों से पैसों की उगाही करते हैं जिसके बदले उन्हें तगड़ा कमीशन मिलता है. माओवादी पुलिस के जवानों के साथ-साथ ग्रामीणों को मार रहे हैं और विकास में बाधा डाल रहे हैं. आरक्षकों ने कहा कि वे माओवादियों से पीडि़त हैं और आगे भी माओवादी और उनके समर्थकों का विरोध करते रहेंगे.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद खींझ
आम आदमी पार्टी के नेता संकेत ठाकुर ने पुलिसवालों के इस प्रदर्शन को सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी की प्रतिक्रिया करार दिया है. ठाकुर ने कहा कि ताड़मेटला आगजनी कांड में जिस ढंग से बस्तर आईजी शिवराम कल्लूरी की भूमिका पर सवाल किया है, उसी के जवाब में कल्लूरी ये सारी कसरत करवा रहे हैं.
रविवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में संकेत ने कहा कि कल्लूरी खुद को बस्तर का मुख्यमंत्री साबित करने की जुगत में लग गए हैं. उनकी पूरी कार्यशैली बताती हैं कि वे जल्द ही राजनीति में आ सकते हैं. उन्होंने पुलिसबल का राजनीतिकरण कर दिया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है.
पत्रकार संघर्ष समिति के कमल शुक्ला ने कल्लूरी को लोकतंत्र के लिए घातक कहा है. शुक्ला ने कहा कि पुलिस और फौज का काम नागरिकों की सुरक्षा और शांति व्यवस्था को बरकरार रखना है लेकिन यहां की पुलिस कल्लूरी के इशारे पर गलत काम करती है. शुक्ला ने कहा कि किसी रोज बस्तर का भारी पुलिस बल रायपुर में किसी जनप्रतिनिधि के घर को घेर लें और उनको बंधक बना लें तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.
पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष लाखन सिंह पुतला दहन कार्यक्रम को एक विद्रोह मानते हैं. वे कहते हैं, 'पुतला दहन के जरिए पुलिस ने यह साबित कर दिया है कि वह असहमति को कुचलने की पक्षधर है. बस्तर में लोकतंत्र नहीं रहा यह बात पहले से ही कहीं जाती थी, लेकिन अब पुलिस ने साबित कर दिया कि वह लोकतंत्र का गला घोंट चुकी हैं.
वही सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुतला दहन की पूरी कार्रवाई को गृह विभाग के ओएसडी अरूण देव गौतम ने गलत ठहराया है. गौतम का कहना है कि पुलिस ने अपनी मर्यादा तोड़ी है. जिन लोगों ने यह कार्रवाई की है अगर उनके खिलाफ कोई रिपोर्ट आएगी तो वे कार्रवाई करेंगे.
प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक रामनिवास ने भी इस प्रदर्शन को गलत ठहराया है. उन्होंने कहा कि पुलिस एक्ट में धरना, प्रदर्शन, आंदोलन या संगठन बनाने जैसी गतिविधियों को कोई जगह नहीं है. जिन पुलिस कर्मियों ने भी यह काम किया है, उन पर कार्रवाई होनी ही चाहिए.
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