Monday, March 23, 2015

काश मरने वाले तय कर लेते की मारने वाले कोन हों , हाशिमपुरा में हत्या के लिए कांग्रेस का हिंदुत्व जिम्मेदार था

काश मरने वाले तय कर लेते की मारने वाले  कोन  हों , हाशिमपुरा में हत्या के लिए कांग्रेस  का  दक्षिण पंथी   हिंदुत्व  जिम्मेदार  था 








हाशिमपुरा में पीएसी ने की थी 42  मुसलमानो की हत्या इसमें कोई  शक नहीं ,लेकिन क्या सिर्फ इतना पर्याप्त हैं , क्या गुजरात की घटनाओ के लिए मोदी  जिम्मेदार नहीं  माना  जाता, तो फिर की  क्यों उत्तरप्रदेश में 1987  में हुई इन हत्याओ के लिए राजनैतिक जिम्मेदारी  पर ज्यादातर जनसंघटन या सेकुलर  जमाते  शांत है ? 

क्या मरने वालो को तय करने का अधिकार है की मारने  वाले  कही साम्प्रदायिक जमात के है,  तो ठीक, यदि वे सो   काल्ड  सेकुलर जमात  उनके साथ है ,तो तथा कथित लोग  कई बार सोचेंगे , और कहेंगे की हत्या की आलोचना  तो ठीक यही लेकिन उसकी  राजनेति क मंशा पे बात करने से कतराएंगे ।  तो चलिए उस समय की राजनैतिक स्थितियों की बात करते हैं , जब हाशिमपुरा में हत्याकांड  किया गया  ,

1987  में उत्तरप्रदेश और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी ,ये  वो समय था जब केंद्र में भाजप अपने सबसे बुरे दिनों में थी ,यानी उसके दो सदस्य लोकसभा में थे। ये वही  समय   था जब कांग्रेस हिंदू वोट की तरफ खिसकना चाहती थी ,राजीव गांधी ने रामजन्म भूमि का ताला खुलवा के और अपना चुनाव प्रचार अयोध्या से शुरू करके अपनी मंशा जाहिर कर चुके थे ,उसी समय भाजप अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी ,मेरठ और आसपास दंगे शुरू हो गए थे ,कांग्रेस बिलकुल आज के  मोदी स्टायल में हिन्दूवादियों को सपोर्ट कर रही थी ,दंगो के लिए सबक सिखाने   के  लिए ही पहले से ही साम्प्रदायिक पीएसी  का स्तेमाल किया गया ,यह दिखने के लिए की कांग्रेस हिन्दुओ के साथ खड़ी   है।  

जब हाशिमपुरा में कत्लेआम हुआ ,उसके बाद दो  साल तक राज्य में कांग्रेस ही रही और केंद्र में राजीवगांधी , इन दो सालो में पुलिस ने केस को इतना बिगाड़ा की वो चलने लायक ही नहीं रहा ,गाजियावाद  के  कोर्ट में मानले को सरकार ने चलने ही नहीं दिया , रोज रोज धमकी ,सरकारी वकीलों की आपराधिक साजिश के कारण  पीडितो की वकील वंदना    ग्रोवर को प्रकरण की सुनवाई देहली शिफ्ट करने की अर्जी लगनी पड़ी ,और प्रकरण देहली शिफ्ट हो गया।  सरकार  प्रायोजित  पुलिस ने शवो को जला दिया  ,जिससे की उसके दुबारा पोस्ट मार्टम नहीं हो सके ,जब कि सब जानते  थे की वे सभी मुसलमान  थे ,   राजीव गांधी उन्ही दिनों मेरठ  आये लेकिन हाशिमपुरा न जाके   हिन्दू वादियों को सन्देश दे रहे थे , कांग्रेस सरकार और बाद में सपा ,बसपा  सरकारो ने भी   इन हत्यारे पीएससी सैनिको के न हथियार  जप्त किया और न ही उन्हें सर्विस से निकाला  ,बल्कि जब पीड़ित अपने प्रकरण के लिए कोर्ट जाते तो यही सिपाही हथियार लेके आसपास घूमते थे ,वंदना ग्रोवर का कहना  तो यही है की ,किसी भीसरकार ने पीडितो की लेशमात्र भी मदद नहीं की ,

और तो  और मरने वाले परिवार को भारी आंदोलन और प्रदर्शन के बाद कुल 4 लाख का    मुआवज़ा दिया गया ,आप को शायद विश्वास न ही की ये मुआवज़ा भी मुस्लिम पर्सनल लॉ  के हिसाब से बांटा  गया ,अर्थात उस परिवार में जो बचे है उनमे किस  किस को पर्सनल  लॉ के हिसाब से कितना मुआवज़ा मिलना चाहिए ,  ,चार किश्तों राशि दी गई ,इस  राशि से घर में कुछ सहायत नहीं हो सकी , क्यों की उसकी पत्नी को तो बहुत कम  पैसा  मिल पाया , बांकी पैसा उसके भाई ,बहन ,माता पिता और भाईबंदो में बाँट दिया गया , कम  से कम मुझे तो नहीं  मालूम की कभी पहले मुआवज़ा मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से बंटा  हो, 

पुरे 28  साल तक हाशिमपुरा के लोग वंदना ग्रोवर  के साथ हर राजनैतिक दल  के पास सहायता    के  लिए गए ,लेकिन सब लोग हत्यारों को बचाने  में लगे रहे ,और परिणाम यही हुआ जो पहले से तय था। 

मेरी शिकायत यही है की जब हम  सब गुजरात के कांड में मोदी से लेके पुरे भाजप का पर्दाफाश करते है जो जरुरी भी है ,लेकिन जब बात कांग्रेस या किसी और राजनैतिक दल  की हो तो सिर्फ घटना की निंदा करके ,वास्तविक दोशियो को क्यों मुक्त कर देते हैं ,में जानता  हूँ की ,हम मे से कई लोग     उसी कांग्रेस को  जिताने  के लिए उसी मेरठ में भी  में गए होगे ,आप कह  सकते है कि  तो क्या हमें मोदी कोजितने के लिए  काम करना चाहिए था ,तो भाई देश में और भी राजनीति ताकते भी तो थी ,सपा ,बसपा ,कम्युनिस्ट पार्टियाँ  या आप भी, 

अफ़सोस यही है की हम   सबसे पहले ये देखते  की दोषी कोन  हैं , फिर हम अपनी भूमिका तय करते  है   ,एक छोटी सी घटना से में अपनी बात समाप्त करूँगा की मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के समय जब झाबुआ में कुछ बजरंगियों ने  ईसाई  बच्चियों के साथ बलात्कार किया ,तो सारे  प्रदेश में जायज़ विरोध हुआ ,उन दिनो  में भी भोपाल  में ही था , एक राजनीति दल का पूर्णकलिक कार्यकर्ता ही था , हमारे संघटनो के दल  फैक्ट फाइन्डिन के लिए भी गए और सारी  घटना का  पर्दाफाश भी किया ,लेकिन कुछ दिन बाद  उसी झाबुआ के पास फिर ईसाई  लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ। लेकि अबकी बार दोषी कुछ ईसाई लोग ही थे ,तो  किसी  संघटन ने कुछ नहीं  किया ,जैसे कि उ न्हे बड़ी निराशा हुई की  बलात्कारी बजरंगी क्यों नहीं थे ,

में फिर कहना यही चाहता हूँ की काश पीडितो को यह तय करने का अधिकर होता की पीड़ा देने वाला कोन  है , इसके   बाद ही हम और आप अपनी भूमिका तय करते यही ,ये उतना ही बड़ा जघन्य अपराध है जितना की वास्तविक अपराध। 

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