Saturday, March 7, 2015

स्वर्ग और स्त्री - हेमलता महिश्वर

स्वर्ग और स्त्री

हेमलता महिश्वर 

स्वर्ग और स्त्री
सद्कर्म और स्वर्ग
रिश्तेदार हैं पक्के
सहोदर भी
हो सकते हैं शत्रु
पर
अच्छे कर्म और स्वर्ग
सिर्फ सकारात्मक ही है
समीकरण
सद्कर्म करता
आदमी
पा जाता है स्वर्ग
और निर्मल आनंद
फिर आनंद ही
ओढ़ता बिछाता है
न केवल इतना
कुछ और भी तो है ना
कामधेनु
कल्प वृक्ष
दरबार इंद्र का
कि अप्सराएं भी तो
स्वर्ग में
यूं तो दबाती हैं
अप्सराएं पैर इंद्र के
पर
ये सद्कर्म
आदमी के
अप्सराओं को
कर देते हैं विमुख
इंद्र से
और ले जाते हैं
उन्हें करीब
सद्कर्मी आदमी के
इंद्र के दरबार में
बहुत सारी हैं
देवियां भी
देवताओं की तरह
पर क्या कोई है
अप्सर भी
आप्सराओं की तरह
चांपने कोm
चरण देवियों के
पुरुष का भाग्य
सद्कर्म ही करवाता है
पुरुष से
(और जो पुरुष कुकर्म में लगे होते हैं
उनका क्या)
तो क्या त्रिया का चरित्र
कुकर्म के अतिरिक्त
सद्कर्म
करवाता होगा क्या
स्त्रियों से
आदमियों के
स्वार्गिक प्रावधान में
औरतों के लिए
क्या है व्यवस्था
क्या स्वर्ग में भी
औरत
सामान नहीं है
दूर करने का
पुरूष की
शारीरिक
मानसिक
हार्दिक व्यथा
कि तुम रखो
स्वर्ग
अपने पास
तुम्हें मुबारक
डालती हूं मैं
उस पर गारत
कि भाता है मुझको
स्वतंत्र भारत
हेमलता महिश्वर 

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