Sunday, April 30, 2017

मई दिवस की प्रासंगिकता -- joy kar



मई दिवस की प्रासंगिकता

joy kar

क्या मई दिवस मनाना आज भी प्रासंगिक है? इस सवाल का जवाब आपको खुद ही तय करना होगा. आज भी कर्मचारी संगठन 1 मई को 'मजदूर दिवस' के रूप में मनाते हैं. दरअसल, इसकी शुरुआत 1 मई 1890 से हुई थी. 1 मई 1886 को अमरीका के कामगारों ने काम के समय को 8 घंटे तय करने की मांग को लेकर शिकागो के 'हे मार्केट' में एक बड़ी सभा का आयोजन किया था. इसके बाद रोज ही कामगार 'हे मार्केट' में जमा होकर उनसे 8 घंटे काम कराये जाने की मांग को लेकर सभा करने लगे. 3 मई को कामगारों की सभा में पुलिस ने बिना किसी उसकावे के दमन चलाया था जिसमें 6 कामगार मारे गये थे. 4 मई की सभा में मालिकों के एजेंटों ने बम फेंके जिसमें 1 सार्जेंट तथा 4 कामगार मारे गये. इसके आरोप में पुलिस ने 4 कामगार नेताओं पर झूठा मुकदमा चलाया तथा उन्हें 11 नवंबर 1887 को फांसी पर चढ़ा दिया गया.
उल्लेखनीय है कि 1886 में जिस समय अमरीका के कामगारों ने 8 घंटे काम का समय तय करने के लिये आवाज उठाया था उस समय न तो आज के समान तकनालाजी का विकास हुआ था और न ही इतने विशालकाय फैक्ट्रियां हुआ करती थी. उस समय उनसे सुबह से लेकर सूर्यास्त तक कमा कराया जाता था. वह कमरतोड़ मेहनत के खिलाफ कामगारों का संगठित विरोध था जिसमें आवाज उठाई गई कि 8 घंटे का काम, 8 घंटे का आराम तथा 8 घंटे मनोरंजन तथा अध्ययन के लिये दिये जाये. उस समय कामगारों से ज्यादा से ज्यादा काम कराये जाने तथा उसके बदले उन्हें केवल जीने लायक वेतन देने की समाज व्यवस्था अपने प्रारंभिक चरण में ही थी. आज स्थिति भिन्न है.
भिन्न इस मायने में कि जो काम पहले 100 या 50 कामगार मिलकर किया करते थे उसे अब 1 कामगार से ही मशीनों के जरिये करा लिया जाता है. अब धूप में काम करने की बजाये ठंडे फैक्ट्रियों में मशीन की सहायता से काम किया जाता है. दफ्तरों में या तो कूलर लगे होते हैं या एयर कंडीशनर. लाख टके का सवाल है कि क्या इसके बावजूद 8 घंटे ही काम कराया जाता है या उससे ज्यादा?
आजकल बैंक कर्मचारियों को तब तक छुट्टी नहीं मिलती जब तक उस दिन का एकाउंट अपडेट न हो जाये. रेल्वे में रनिंग स्टाफ से लगातार काम कराया जाता है. पत्रकार दिनभर खटते हैं उसके बाद भी संपादक के मन माफिक काम नहीं हो पाता है. सरकारी दफ्तरों से शाम के 6 या 7 बजे के पहले घर आते नहीं बनता है. सेल्स के क्षेत्र में काम करने वालों के काम करने के समय में यदि यात्रा के समय को जोड़ा जाये तो उन्हें रोज ओवर टाइम देना पड़ेगा.
निजी क्षेत्र के दफ्तरों में सुबह के 9 बजे से शाम के 6 बजे तक काम कराया जाता है. सूची बहुत लंबी है, करीब-करीब सभी से 8 घंटे से ज्यादा काम कराया जाता है इस सूची में सरकारी अफसर से लेकर पुलिस तथा सुरक्षा बलों के जवान भी शामिल हैं. मान लीजिये कि किसी दफ्तर में 50 कर्मचारी काम करते हैं तथा तथा उनसे रोज 1 घंटे ज्यादा काम कराया जाता है तो 1 दिन में 50 घंटे ज्यादा काम कराया जाता है. इस तरह से उनसे 6 कर्मचारियों का काम करा लिया जाता है. दरअसल, 1 मई 1886 को इसी को लेकर आंदोलन की शुरुआत हुई थी.
दरअसल, 'मई दिवस' की शुरुआत काम के घंटे तय करने को लेकर हुई थी. हमारा मानना है कि आज भी यह मांग पूरी नहीं हुई है और 'मई दिवस' प्रासंगिक है. हालांकि यदि 8 घंटे ही काम कराये जाने की मांग है तो इसकी जद में कामगारों के अलावा मध्यमवर्ग भी आ गया है जिसमें वकील से लेकर इंजीनियर तक शामिल हैं. अब आप ही तय कर लीजिये कि आपके लिये मई दिवस आज भी प्रासंगिक है या नहीं?

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