Friday, March 3, 2017

आखिर ऐसा क्या कर दिया शालिनी और ईशा ने कि एसपी उन्हें कुचलकर मार देना चाहते है





** आखिर ऐसा क्या  कर दिया शालिनी और ईशा ने कि एसपी उन्हें कुचलकर मार देना चाहते है और आई जी उनके पुतले जलवाते है

**#सुकमा ज़िले के एसपी आईके एलेसेला ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को कुचल देने की बात कही है
जगदलपुर में ,एक निजी समारोह में सार्वजनिक तौर पर भाषण देते हुये कहा कि मानवाधिकार कार्यकर्ता ईशा खंडेलवाल और शालिनी गेरा जैसों को इन नये बड़े वाहनों से सड़क पर कुचल देना चाहिये.

**उन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादी समर्थक बताते हुये कहा कि उन्हें आधुनिक तकनीकों वाली वाहनों के नीचे सड़कों पर कुचल देना चाहिये. उन्होंने कहा कि लोग पालतु कुत्ते-बिल्ली को लेकर घूमते हुये पुलिस पर आरोप लगाते हैं.

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गुरमेर कौर  की कहानी से बहुत पुरानी बात है शालिनी गेरा और ईशा खंडेलवाल की . पेशे से दोनों वकील है ,चूंकि वे वकील है तो मानवाधिकार के लिये तो काम करना स्वाभाविक ही है .
दोनो अपना सुनहरा कैरीयर छोडकर छत्तीसगढ़ के बसकतर में पीड़ित आदिवासीयो़ को कानूनी सहायता उपलब्ध करने की मंशा से बस्तर में जगदलपुर लीगल एड ग्रुप बना कर काम करने आई़ थी .देश भर  से और  भी  समर्पित महिला वकील (ज्यादातर )आते जाते रहे ,लेकिन आखरी तक यही दोनों टिकी रही .
इनके पास एसे आदिवासियों ने संपर्क किया जिनके के स में वर्षों से कोई सुनवाई नहीं हो रही थी ,बहुतों की चार्जशीट तक दायर नहीं हुई थी तो क ई  जमानत के लिये बहुत साल से भटक रहे थे .
ईशा कहती हैं, "हमने जगदलपुर लीगल एड ग्रुप बनाने के बाद शुरुआती दौर में बड़ी संख्या में न्यायालय और पुलिस के मामलों को लेकर सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाये और जो तथ्य हमारे सामने आये, वो हैरान करने वाले थे. हमने ऐसे मुक़दमे चिन्हांकित किए, जिनमें आदिवासी लंबे समय से जेल में थे."


ऐसे  सैकड़ों मामले अदालत में लंबित थे, जिनमें आदिवासियों की बरसों से पेशी नहीं हुई थी. यहां तक कि कई मामलों में वे सज़ा से अधिक दिन जेल में गुजार चुके थे लेकिन उनकी जमानत नहीं हो पाई थ

अधिकांश मामलों में आदिवासियों को अपने मुक़दमे की स्थिति के बारे में भी कुछ भी पता नहीं था. स्थानीय वक़ीलों की मदद से उन्होंने इन मामलों की पैरवी शुरु की.
पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा कथित रुप से आदिवासियों को फ़र्ज़ी मामलों में जेल भेजने, फर्ज़ी मुठभेड़ और महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसे मामलों को अदालत तक ले जाने वाला जगदलपुर लीगल एड ग्रुप जल्दी ही एक ऐसे संगठन के रुप में आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हो गया, जिसके वकील बिना पैसे लिए आदिवासियों के मुक़दमे लड़ रहे थे.

लेकिन ऐसे मामलों ने पुलिस और सरकार के लिये मुश्किल पैदा कर दी. आरोप लगा कि जगदलपुर लीगल एड ग्रुप मूलतः माओवादियों के मामले अदालत में लेकर आ रहा है और माओवादियों को इससे मदद मिल रही है
.यह वो समय था तब इनके ग्रुप पर हमले शुरू हो गये ,सबसे पहले जगदलपुर जिला कोर्ट में ,तरह तरह से इन्हें काम करने से रोका गया ,स्थानीय स्तर पर संघ के कार्यकर्ता जो पेशे से खराब वकील  माने जाते है वे बारकांसिल के सचिव भी थे ,उन्होंने माहौल बनाया कि वे माओवादी समर्थक के और इनके पास वकालत करने का लायसेंस नहीं है ,इसलिए यह कोर्ट में पेश नहीं हो सकते ,वकीलों ने बायकाट किया और तो और जिला जज भी इनकी भाषा बोलने लगे थे .
बस्तर में फर्जी मुठभेड की बाढ आ गई थी ,गांव के गांव लूटना ,लोगों खासकर महिलाओं के साथ मारपीट और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार के साथ बलात्कार की घटनाएँ आम हो गई थी ,आदिवासियों को घरों से खींच कर गोली मार देना और उनके शव के साथ अमानवीय सलूक की शिकायत मिलने लगी थी ,स्कूली बच्चों तक को घर से घसीट कर मारने की घटनाएँ हुई और महिलाओं के साथ बलात्कार के भी केस उजागर होने लगे .॥
बस्तर में जगदलपुर लीगल एड ग्रुप के लोग गांव जाने लगे उनके बयान और अदालती कागजात पूरे किये जाने लगे और इस आधार पर जिला कोर्ट से लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट तक आदिवासियों को रिलीफ देने लगा.॥
बस यही अपराध था इन दोनों का .
और उसके बाद जगदलपुर से ऐनकेन प्रकरेण इन अधिवक्ताओं को भगाने  के षडयंत्र को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया ,जहाँ कार्यालय और निवास था ,वहाँ रोज कल्लूरी के निर्देशन में जुलूस नारेबाजी पथराव किये गये ,इसका नेतृत्व किया सामाजिक एकता मंच ने जो पुलिस ने ही गैरकानूनी हमलों के लिये तैयार किया था.
जब बात फिर भी नही बनी तो मकान मालिक को धमकाया गया और मजबूर किया गया कि वे अपना कार्यालय बंद करके चले जाये.
ईशा और शालिनी ने अपने वकील मित्रों के साथ बिलासपुर से काम शुरू किया ,थोड़ी परेशानी तो जरूर थी लेकिन फिर भी कानूनी सहायता का काम और इनका आना जाना बदस्तूर जारी रहा .
पुलिस ने पीड़ितों के परिजनों को ,गवाहो और प्रभावितों को डराना धमकाना जारी रखा ,बस्तर में इन्हें आने जाने के लिये गाड़ी किराये पर लेना मुश्किल हो गया ,कभी कभी रास्ते में ड्राइवर इन्हें उतारकर गाड़ी ले कर भाग भी गये .
जैसे तैसे प्रतिबद्ध पत्रकारों के सहयोग से कहानियाँ बाहर आती रही और समय समय पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इनका हौसला बनायें रखा .॥
और एक दांव खेला पुलिस ने ,जब हाईकोर्ट के आदेश पर शव के पोस्टमार्टम की देखरेख के लिये कमिश्नर के निर्देश पर जगदलपुर पहुचे तो शालिनी, प्रियंका  पर नोटबंदी के बाद नोट बदलवाने का हास्यास्पद आरोप लगा कर इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई .

शालिनी और ईशा जैसी कमिटमेंट के साथ काम करने वाले वकील इन सबसे डरे नही है ,वे अभी भी बस्तर वापस लौटना चाहते है,,उनका कहना है कि आदिवासियों को हमारी जरूरत है और हम उनकी सहायता जरूर करेंगे .
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4.3.2017

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