Sunday, March 5, 2017

छत्तीसगढ़: नया कोल ब्लॉक घोटाला--


छत्तीसगढ़: नया कोल ब्लॉक घोटाला

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रायपुर | संवाददाता: कोल ब्लॉक को निजी कंपनियों को देने से भारी नुकसान हो रहा है. सीपीएम के छत्तीसगढ़ राज्य के सचिव संजय पराते ने आरोप लगाया है कि प्रतिस्पर्धी नीलामी की जगह एमडीओ (माइनर डेवलपर-कम-ऑपरेटर) के जरिये छत्तीसगढ़ के 14 कोल ब्लॉकों को, जहां 5305 मिलियन टन कोल रिज़र्व है, को कार्पोरेट कंपनियों को आबंटित किये जाने सरकारी खजाने को 12.5 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का नुकसान और कार्पोरेट कंपनियों को इतना ही फायदा पहुंचाया गया है. उन्होंने इसकी जांच की मांग की है.

गौरतलब है कि यूपीए सरकार द्वारा आबंटित 214 कोयला खदानों का आबंटन रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिस्पर्धी नीलामी के जरिये पुनः इनका आबंटन करने का सरकार को निर्देश दिया था. लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने इन निर्देशों का उल्लंघन करते हुए छत्तीसगढ़ के 14 कोल ब्लाकों सहित देश के 61 कोल ब्लॉक, जहां कुल 17317 मिलियन टन कोयला रिज़र्व है, को उन सरकारी कंपनियों को आबंटित कर दिया है, जिन्होंने निजी कार्पोरेट कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर रखा हुआ है. इससे इन कोल ब्लाकों पर पूरा नियंत्रण ही निजी कंपनियों को मिल गया है, जबकि खनन की पूरी लागत सरकारी कंपनियों को ही लगानी है. ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट की भावना का सीधा-सीधा उल्लंघन है.

संजय पराते ने आरोप लगाया है कि आबंटन के इस तरीके से कार्पोरेट घरानों को रायल्टी में छत्तीसगढ़ में औसतन प्रति टन 2400 रूपये तथा देश में औसतन 3500 रूपये प्रति टन का फायदा मिल रहा है. छत्तीसगढ़ और देश में आबंटित खदानों के कुल रिज़र्व के हिसाब से यह फायदा छत्तीसगढ़ में 12.5 लाख करोड़ और देश के पैमाने पर 60 लाख करोड़ रूपये से अधिक बैठता है. कार्पोरेट कंपनियों को फायदा देश और प्रदेश के राजस्व का सीधा नुकसान है.

उल्लेखनीय है कि जब मई 2016 में मोदी सरकार ने अपने एक वर्षीय कार्य का लेखा जोखा प्रस्तुत किया तो उसमें पारदर्शी एवं निष्पक्ष कोयला खदानों का आवंटन सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक गिनाया गया था. सरकार ने दावा किया था कि 29 खदानों की नीलामी के ज़रिये राज्य सरकारों को 1.72 लाख करोड़ रुपयों का फायदा पहुंचा है. उस समय लगभग सभी मीडिया एवं विशेषज्ञों ने नीलामी प्रक्रिया का स्वागत किया था कि इसके ज़रिये घोटालों और क्रोनी-कैपिटलिज्म का दौर अब पीछे छोड़ दिया गया है जिसके कारण कोलगेट जैसे गंभीर घोटाले हुए थे जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ऐतिहासिक निर्णय में 214 कोयला खदानों का आवंटन निरस्त कर दिया गया था.

उधर, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने भी कहा है कि जिन भी सरकारी कंपनियों को कोयला खदानें आवंटित की गयी हैं, लगभग सभी ने या तो निजी कंपनियों की एम.डी.ओ. के रूप में नियुक्ति कर दी हैं या फिर वो इस प्रक्रिया में हैं. एम.डी.ओ. कोयला खदान के विकास एवं संचालन के लिए ज़िम्मेदार होता है, जिसमें सभी पर्यावरणीय स्वीकृतियां लेना, भूमि अधिग्रहण करना, माइन के संचालन के लिए अन्य कांट्रेक्टर की नियुक्तियां, कोयला परिवहन, इत्यादि सभी खनन सम्बंधित गतिविधियाँ शामिल हैं. अतः इस रास्ते से कोयला खदान का पूरा नियंत्रण निजी कंपनियों के पास पहुँच जाता है, जबकि दस्तावेजों में जिम्मेदारियां सरकारी कंपनी के पास रह जाती हैं.

बता दें कि राजस्थान सरकार की कंपनी को आवंटित तथा अदानी द्वारा संचालित परसा ईस्ट केते बासेन खदान ही अपने आप में पूरी नीलामी हुए 7 खदानों से अधिक क्षमता की है– 15 मिलियन टन का प्रतिवर्ष उत्पादन तथा 450 मिलियन टन के कोयला रिज़र्व. इसी तरह गुजरात राज्य की सरकारी कंपनी को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर – 1 खदान की वार्षिक उत्पादन क्षमता 21 मिलियन टन है और कुल रिज़र्व 900 मिलियन टन से भी अधिक हैं. कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में 14 कोल ब्लॉक विभिन्न राज्य सरकारों को अल्लोटमेंट रूट से आवंटित किये गए हैं जिनकी कुल रिज़र्व 5.3 बिलियन टन से अधिक है.

छत्तीसगढ़ बताओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में दो बड़े कोयला क्षेत्र हैं हसदेव अरण्य एवं मांड रायगढ़. ये दोनों आदिवासी बाहुल्य, सघन वनक्षेत्र हैं जिसमे समृद्ध जैव विविधता वन्य प्राणियों का आवास और कई महत्वपूर्ण जलाशय और नदियों का केचमेंट हैं. पर्यवार्नीय संवेदनशील इन क्षेत्रों के संरक्षण की प्राथमिकता को नजरंदाज कर सिर्फ कार्पोरेट मुनाफे के लिए कोल ब्लॉको का आवंटन किया जा रहा हैं.

आलोक शुक्ला ने आगे कहा कि यहां तक कि अन्य राज्यों को कमर्शियल माइनिंग के लिए कोल ब्लॉक आवंटित किये गए हैं जिनमें अंत-उपयोग को बिलकुल नज़रअंदाज किया गया है, जैसा की मदनपुर साउथ खदान आंध्र प्रदेश की सरकार को कमर्शियल माइनिंग के लिए दी गयी है. ऐसे में यह आश्चर्यजनक है की छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका कुछ विरोध नहीं किया और अन्य राज्य सरकार, जोकि अपने आप में अमीर प्रदेश है, को अपने संसाधन से राजस्व लाभ लेने दिए. इन क्षेत्रों में खनन से उत्पन्न पर्यावरणीय एवं सामाजिक दुष्प्रभाव बहुत ही गंभीर होंगे जिनको राज्य सरकार अनदेखी कर रही हैं.

छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन इस पूरी कोयला खदानों के आवंटन की प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच की मांग करता है जिसमें विशेष रूप से सभी एम.डी.ओ. की नियुक्ति प्रक्रिया शामिल है. छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन की मांग हैं कि CAG इसे संज्ञान में लेकर जांच करे या फिर एक न्यायिक जांच कराई जाये. यह प्रक्रिया ना तो पारदर्शी है बल्कि कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य मात्र से रची गई है जिससे सरकार और देश के बहुमूल्य संसाधनों को व्यर्थ गंवाया जा रहा है. यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के 2014 के निर्णय की मूल भावना के विपरीत है और कोलगेट केस को पुनर्जन्म देती है. छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन का आरोप है कि इसमें ना सिर्फ केन्द्रीय सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य सरकार और रमन सिंह की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगते हैं जोकि इस पूरी प्रक्रिया के बीच राज्य के हितों को नज़रंदाज़ कर प्रक्रिया में पूर्णतया भागीदार बने रहे
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