Thursday, March 23, 2017

मोहब्बत से नफरत का एजेंडा, पराजित होता भारतीय लोकतंत्र*

*दैनिक 'छत्तीसगढ़’ का संपादकीय*
23 मार्च 2017
*मोहब्बत से नफरत का एजेंडा, पराजित होता भारतीय लोकतंत्र*
उत्तरप्रदेश में नई योगी सरकार ने अपनी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र और आमसभाओं में किए गए वायदे के मुताबिक पुलिस के रोमियो दस्ते बनाए हैं जो कि लड़कियों को छेडख़ानी और प्रताडऩा से बचाने का काम करेंगे। इस कार्रवाई में दो दिक्कतें हैं। पहली बात तो यह कि रोमियो के नाम को इस तरह की बातों से जोडऩा प्रेम के महत्व को खत्म करना है, और प्रेम को अपमानित करना भी है। शेक्सपियर की कहानी में रोमियो और जूलियट के बीच शुद्ध प्रेम रहता है, किसी तरह की छेडख़ानी या ज्यादती, या जुल्म या बलात्कार जैसी कोई बात नहीं रहती है। लेकिन जिस देश की संस्कृति मूर्खों जैसा बर्ताव करने पर आमादा हो, उन्हें रोमियो-जूलियट की कहानी पढ़ाने से भी उनकी समझ में कुछ नहीं आएगा। जिस तरह प्रेम के प्रतीक वेलेंटाइन डे का विरोध भारत का एक धर्मान्ध तबका इसलिए करता है कि वह एक पश्चिमी परंपरा है, ईसाई परंपरा है, और उसे खत्म करना चाहिए। वेलेंटाइन डे को खत्म करते-करते उसके विरोधी यह भी भूल जाते हैं कि कृष्ण की कहानियों से लेकर कालीदास के साहित्य तक प्रेम और श्रंृगार रस की चाशनी बिखरी हुई है, और उसे धर्मान्ध लोग सारी मेहनत करके भी धो नहीं पाएंगे। इस देश में ऐसा बर्ताव करना कि लड़के-लड़की के बीच प्रेम अनैतिक है, अपराध है, यह एक ऐसा दकियानूसी पाखंड है जो न अपने बीते कल को मानने को तैयार है, न ही आने वाले कल पर इस जिद के बुरे असर को मानने को तैयार है, और वह आज हिंसा पर आमादा महज इसलिए है कि उसके इलाके की सत्ता से उसे ऐसी हिंसा की रियायत मिली हुई है।
हिन्दुस्तान को एक पढ़े-लिखे, जानकार, और सभ्य देश की तरह बर्ताव करना चाहिए, और सरकारों को कहीं रोमियो के नाम पर, तो कहीं मजनूं के नाम पर ऐसे दस्ते बनाने की परले दर्जे की बेवकूफी छोडऩी चाहिए जो कि इतिहास की कहानियों में प्रेम जैसी पवित्र भावना का अपमान भी है, और देश में प्रेम के खिलाफ नफरत पैदा करने का एक जुर्म भी है। एक दूसरी दिक्कत उत्तरप्रदेश में यह हो रही है कि ऐसे रोमियो दस्ते बाग-बगीचे में बैठे लड़के-लड़कियों को पकड़-पकड़कर सड़कों पर उनसे उठक-बैठक करवा रहे हैं, धमका रहे हैं, और उनको बेइज्जत कर रहे हैं। यह पूरा सिलसिला न सिर्फ कानून के खिलाफ है, बल्कि नौजवान पीढ़ी की भावनात्मक जरूरतों के भी खिलाफ है। यह अजीब पत्थरयुग का वक्त आ गया है जब नफरत को तो वाहवाही मिलती है, लेकिन प्रेम को पीछा करके, घेरकर मारा जाता है। हमारे हिसाब से यह मामला तुरंत ही अदालत की दखल का बनता है, और चाहे उत्तरप्रदेश हो, चाहे कोई और राज्य, ऐसी सरकारी हिंसा और अराजकता के खिलाफ अदालत को खुद मामला शुरू करना चाहिए। छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह की नैतिक-चौकीदारी के लिए पुलिस ने ऑपरेशन मजनूं चलाया है, जिनमें पुलिसकर्मी जाकर लड़के-लड़कियों को पकड़कर सजा देने का काम करते हैं। इसमें पुलिस को लड़के-लड़कियों को पीटते हुए भी कैमरे में कैद किया जा चुका है।
यह असभ्य देश अपनी नौजवान पीढ़ी को कुंठा में डालकर उसकी सभी तरह की संभावनाओं को खत्म कर रहा है। आज जब दुनिया के विकसित देश अपने लोगों के बुनियादी अधिकारों का सम्मान करते हुए अधिक से अधिक उदारता की तरफ बढ़ रहे हैं, तब कृष्ण प्रेमकथाओं के इतिहास से संपन्न यह देश यह साबित करने में जुट गया है कि इसके इतिहास में प्रेम कभी रहा ही नहीं। यह शुद्धतावादी, कट्टरतावादी, पवित्रतावादी सोच इतनी हिंसक हो चल रही है कि इसके झांसे में आकर बहुत से मां-बाप अपनी ही आल-औलाद को मारकर फेंक रहे हैं क्योंकि उन्हें किसी से प्रेम हो गया। मोहब्बत के खिलाफ नफरत इस पूरे देश को ऐसा नुकसान पहुंचा रही है जो कि पीढिय़ों तक दूर नहीं हो सकेगा। उत्तरप्रदेश में इस नफरत के पीछे यह सोच भी है कि कोई मुस्लिम लड़का किसी हिन्दू लड़की को मोहब्बत के जाल में फंसाकर मुस्लिम आबादी में इजाफा न कर ले, लेकिन छांट-छांटकर ऐसी निगरानी हो नहीं सकती, और इसके चक्कर में पूरी की पूरी नौजवान पीढ़ी एक ऐसे अंत की तरफ धकेली जा रही है जिसमें वह इस देश-प्रदेश से नफरत करने लगे, और दुनिया के किसी सभ्य देश में जाकर बसने की सोचने लगे। भारत का लोकतंत्र विकसित होने के बजाय पराजित होते चल रहा है।
*-सुनील कुमार*

No comments:

Post a Comment