Sunday, February 22, 2015

तीस्ता सीतलवाद और जावेद आनंद पर गैरकानूनी कार्यवाही – मानव अधिकार रक्षकों और पत्रकारों-लेखकों की आजादी पर हमला

तीस्ता सीतलवाद और जावेद आनंद पर गैरकानूनी कार्यवाही –
मानव अधिकार रक्षकों और पत्रकारों-लेखकों की आजादी पर हमला


(छत्तीसगढ़ के जन-संगठनों और प्रगतीशील शक्तियों द्वारा कड़ी निंदा और एकजुटता के बयान)

रायपुर, २२ फरवरी, २०१५


भारत में मानव अधिकारों के लिए संघर्रत महिला पत्रकार तीस्ता सीतलवाद और जाने-पहचाने लेखक जावेद आनंद पर लगातार होने वाले हमलों और उन्हें बेबुनियाद आरोपों के घेरे में लाकर बेवजह कानूनी कार्यवाही कर परेशान करना न केवल गुजारत सरकार की राजनैतिक बदला लेने की बदनीयती उजागर करती है वरन यह केंद्र में सत्तारुद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के फासीवादी-अधिनायकवादी चरित्र का एक नमूना है. यह जग विदित है कि तीस्ता सीतलवाद और जावेद आनंद के संगठनों ने सन २००२ में गुजरात में हुए जनसंहार के तथ्य और उससे जुड़े राजनेताओं और अफसरों के अपराधों में शामिल होने के खिलाफ कानूनी और सामाजिक संघर्ष कर न्याय दिलाया था, जिसके चलते सांप्रदायिक हिंसा में शामिल ११७ लोगों को अदालत ने सजा दी थी, वरन उसमें शामिल राजनेताओं और अफसरों को भी कानून के कटघरे में लाकर घड़ा कर दिया था.

हम छत्तीसगढ़ के जन-संगठन और प्रगतीशील व्यक्ति यह मानते हैं कि वर्तमान अपराधिक कार्यवाही के पीछे गुजरात सरकार की यही मंशा रही है की एक मनाव अधिकार रक्षक के शांतिपूर्ण तरीके से कानूनी दायरे में किये आने वाले कामों पर येन-केन-प्रकरण लगाम लगाई जाए, और गुजरात जनसंहार में शामिल कोटि के राजनेताओं और अफसरों पर न्यायसंगत कार्यवाही न की जाये.

उनके खिलाफ वर्तमान आरोप कि उनकी संस्थानों ने भारी मात्रा में सार्वजनिक धनराशि का निजी स्वार्थ और हितों में दुरूपयोग कर धोखाधड़ी की है, इसी परिवेश में देखने-समझने की ज़रुरत है. सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस और सबरंग ट्रस्ट का गठन मुंबई में १९९२-९३ के सांप्रदायिक हिंसा के दौर में किया गया था, जिसके अभियान के फलस्वरूप सांप्रदायिक संगठन और व्यक्ति विशेष आपराधिक दायरे में आये थे.

उनके द्वारा अहमदाबाद की गुलबर्गा सोसाइटी में सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों की यादगार में एक म्यूजियम बनाने के लिए जमा की गयी धनराशि के दुरूपयोग का आरोप सबसे पहले एक निजी व्यक्ति द्वारा मार्च २०१३ में लायगा गया था, जब तीस्ता सीतलवाद ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और ५९ लोगों के खिलाफ २००२ में सांप्रदायिक हिंसा में लीन होने के लिए मुकदमा चलाने की पैरवी की थी, जिसमें अहमदाबाद क्राइम ब्रांच और अहमदाबाद पुलिस के वरिष्ट अधिकारी शामिल थे. इस मुक़दमे को दंडाधिकारी ने २६ दिसम्बर २०१३ को ख़ारिज कर दिया था. इस बीच जब तीस्ता सीतलवाद अपील में जाने की तैयारी कर रही थीं, कि उनके खिलाफ प्रथम सूचना रपट (ऍफ़.आई.आर.) दर्ज की गयी थी.

हम छत्तीसगढ़ के जन-संगठन और प्रगतीशील व्यक्ति यह मांग करते हैं कि तीस्ता सीतलवाद और जावेद आनंद को न्यायसंगत और कानूनसम्मत सुरक्षा के अधिकार दिए जाएँ, और सिर्फ इसलिए उन्हें परेशान कर सताया न जाए क्योंकि उन्होंने देश के कानून के दायरे में मानव अधिकारों के लिए संघर्ष किया है, और अभी भी कर रहे हैं. हम यह भी मांग करते हैं की भारत के तमाम मानव अधिकार, सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्तायों के लिए बिना किसी डर और परेशानी के काम करने का माहौल और मौका सुनिश्चित करना चाहिए, नकि उन्हें बाधाओं और हिंसक हमलों का सामना करना पड़े.

हम सभी संकल्परत हैं की तीस्ता सीतलवाद और जावेद आनंद जैसे मानव अधिकार रक्षकों और पत्रकारों-लेखकों की आज़ादी और अधिकार के लिए ज़रुरत पड़ने पर सड़क पर संघर्ष करेंगे, और फासीवाद-अधिनायकवादी ताकतों को परस्त करने के लिए एकजुट होकर संघर्षरत रहेंगे.

जिन जन-संगठनों ने इस बयान पर हस्ताक्षर किये हैं उनमें मुख्य रूप से शामिल हैं:



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चित्तरंजन बक्शी                 जनक लाल ठाकुर                        सी.एल. पटेल
(94252-02641)                            (94241-07557)                                             (98266-41016)

डा ,लाखन सिंह                                कॉम. नन्द कुमार कश्यप               राजेंद्र सायल
(77730-60946)                                  (94062-13116)                           (98268-04519==============================

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