शांति का रास्ता ही दूसरा है
तारीख सात अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा जिले के बुरगुम गाँव में पुलिस और अर्ध सैनिक बल के जवान आये .
आदिवासियों की पिटाई करी .
सिपाहियों ने घरों में छुपी हुई महिलाओं के गहने खींच लिए
सिपाहियों ने आदिवासियों द्वारा घर में महुआ, बकरा बेच कर बचाए हुए रूपये लूट लिए .
सिपाहियों ने महिलाओं और युवकों की बुरी तरह पिटाई करी
सिपाही जाते जाते आदिवासियों के मुर्गे भी लूट कर ले गए .
आपको शायद यह सब सामान्य लगता होगा ?
लेकिन दिल्ली में या आपके शहर में
आपके घर में घुस कर अगर पुलिस आपकी पत्नी या आपकी बहन के कान से सोने के जेवर खींच ले
ओर पुलिस की पिटाई से आपकी बहन की नाक से खून निकलने लगे .
उसके बाद आपको भी बंदूक के कुंदे से पेट में मारा जाय
इसके बाद पुलिस आपसे कहे कि मुहल्ला छोड़ कर चले जाओ नहीं तो फिर से तुम्हारा यही हाल करेंगे क्योंकि तुम्हारे घर पर अम्बानी साहब को कब्ज़ा करना है
तब शायद यह एक खबर बनेगी
लेकिन जब यही सब आदिवासियों के साथ इसी हफ्ते हुआ है तब यह भयानक घटना कोई खबर ही नहीं बनी .
मुझे गाँव वालों के लगातार फोन आ रहे हैं .
गाँव वाले दिल्ली तक आकर अपनी बात मीडिया और अदालत को सुनाना चाहते हैं .
लेकिन आदिवासियों की बातें सुनना ही कौन चाहता है ?
क्या आज़ादी के समय किसी ने यह कल्पना भी करी होगी कि एक दिन भारत के लोग अपने एशो आराम के लिए अपने ही देशवासियों को मारेंगे ?
और इस मार काट को विकास के लिए ज़रूरी मान लिया जाएगा ?
लेकिन यही अंदरूनी साम्राज्यवाद है .
क्योंकि जैसे अँगरेज़ अपने एशो आराम के लिए दूसरे देशों को लूटते थे और उन पर हमला करते थे
ठीक वैसे ही हम भी अपने ही देश के गाँव और जंगलों को लूटने के लिए अपने सिपाहियों का इस्तेमाल कर रहे हैं .
आपकी इस लूट से सिर्फ युद्ध निकलेगा .
इस लूट और आपके हमलों के जारी रहते हुए आप शांति की उम्मीद कर ही नही सकते .
आपसे अगर कोई सरकार कहे कि वह और ज़्यादा सिपाही भेज कर आदिवासी इलाकों में शांती करवा देगी तो उस सरकार पर भरोसा मत कीजियेगा .
क्योंकि सिपाहियों के दम पर कभी शांति आ ही नहीं सकती .
शांति का रास्ता ही दूसरा है .
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